मुंबई May 20, 2010
बाजार में मांग न के बराबर होने के बावजूद सोयाबीन और सोया खली की कीमतें पिछले एक महीने से स्थिर बनी हुई हैं, जबकि मांग कम होने की वजह से कीमतों में भारी गिरावट होने का अनुमान लगाया जाता रहा है।
कीमतों में गिरावट न होने की मुख्य वजह डॉलर में आ रही मजबूती को माना जा रहा है। डॉलर की चाल को देखते हुए कारोबारी थोड़ी और मजबूती का इंतजार कर रहे हैं जिससे मुनाफे का बटुआ आसानी से भरा जा सके। सोयाबीन का कारोबार 19 अप्रैल 2010 को प्रति क्विंटल 1930 रुपये के हिसाब हुआ।
बाजार में मांग न होने के बावजूद एक महीने बाद 19 मई को 1924 रुपये प्रति क्विंटल पर सोयाबीन बना हुआ है। यही हाल सोयाखली का है। 19 अप्रैल को 16,500 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाली सोया खली 19 मई को महज 200 रुपये की गिरावट केसाथ 16,300 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार कर रही है। जबकि अप्रैल महीने में खली के निर्यात में करीबन 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ घरेलू बाजार में भी सोया तेल और सोया खली की मांग में कमी दिखाई दे रही है। बाजार के नियामानुसार मांग न होने पर कीमतों में गिरावट होना तय माना जाता है, लेकिन यहां मांग होने के बाद भी कीमतें स्थिर बनी हुई हैं, क्योंकि इस कीमत पर कोई अपना माल बेचना नहीं चाह रहा है।
कीमतों में गिरावट न होने की वजह बताते हुए शेयरखान कमोडिटी के हेड मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि दरअसल कारोबारियों को लग रहा है कि मौजूदा वैश्विक हालातों को देखते हुए डॉलर में अभी और मजबूती आएगी। डॉलर की मजबूती का फायदा उनको भी मिलेगा। इसलिए सोया कारोबारी बाजार में माल उतारने की अपेक्षा गोदामों में जमा करना ज्यादा बेहतर समझ रहे हैं।
कारोबारियों के नक्शेकदम पर चलते हुए किसान भी वर्तमान भाव पर बिक्री करना घाटे का सौदा मान रहे हैं। इसीलिए घरेलू मंडियों में भी इस समय आवक बहुत कम है, जबकि इस साल सोयाबीन की पैदावार अच्छी बताई जा रही है।
मेहुल कहते हैं कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल करीबन 85 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ है,जो पिछले साल की अपेक्षा अधिक है। इसके बावजूद बाजार में आवक की कमी होना दो बातों को दर्शाता है या तो उत्पादन का सरकारी अनुमान गलत है या फिर इस दर पर किसान अपना माल बेचना नहीं चाह रहे हैं। गौरतलब है कि घरेलू खपत करीबन 30 लाख टन ही है।
सोयाखली के निर्यात में कमी की वजह कारोबारी वर्तमान कीमत को मान रहे हैं। परिचालन मार्जिन में कमी होने के कारण सोयाबीन क्रशिंग में काफी गिरावट आई है। इसके अलावा सोयाबीन की आवक भी कमजोर है जिसका सीधा असर निर्यात पर दिखाई पड़ रहा है।
सोया निर्यातकों का कहना है कि वर्तमान वैश्विक हालतों को देखते हुए साफतौर पर दिखाई दे रहा है कि डॉलर की कीमत 48 रुपये तक पहुंच सकती है जिसका फायदा उनको भी मिलेगा। इस समय अमेरिका और ब्राजील से आने वाली खली भारत की अपेक्षा सस्ती है जिसके चलते इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में माल बेचना भारतीय कारोबारियों के लिए घाटे का सौदा है।
अंतरराष्ट्रीय हलचल और मांग को देखते हुए फिलहाल कुछ दिन माल को रोककर रखना ही समझदारी का काम है। (बीएस हींदी)
20 मई 2010
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