May 24, 2010
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अप्रैल 2011 से लागू करने के अपने वादे को पूरा करने में सरकार के सामने राज्य की वित्तीय स्वायत्तता और संतुलन एक चुनौती बनी हुई है जिसे सरकार पूरी कोशिशों के साथ दूर करने में लगी हुई है।
प्रस्तावित जीएसटी का मुख्य बिंदु केंद्र और राज्यों के करों के बीच मौजूदा असंतुलन को दूर करना और एक समान बाजार विकसित करना है। संसद में वित्त मंत्री के एक हालिया वक्तव्य में कहा गया है कि जीएसटी लागू होने के शुरुआती वर्षों में केंद्र राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई करने का इच्छुक है।
केंद्र सरकार समान सीमा रेखा, समान छूट सूची और विचलन रोकने के लिए समान व्यवस्था के लिए राजी है। इससे संतुलित जीएसटी व्यवस्था को लेकर केंद्र की इच्छाशक्ति नजर आती है। हालांकि, राज्यों को लगता है कि यह ताल-मेल उनके कर अधिकारों के लिए बाधक है और वे अपने सामाजिक और आर्थिक नीतिगत उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कुछ हद तक नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं।
जीएसटी को लागू करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की जरूरत है और सरकार इस मसले को हल करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है। इस संबंध में तेरहवें वित्त आयोग (टीएफसी) ने संविधान के पहले के अनुच्छेद 278 के समान राज्यों और केंद्र के बीच एक कर समझौते के आधार पर जीएसटी मॉडल तैयार करने की संभावना का सुझाव दिया है।
कर लागू करने के लिए राज्यों और केंद्र के कानून बनाने की शक्ति इस समझौते की शर्तों की विषय वस्तु होगी। विकल्प के तौर पर, चौथी सूची लाने के लिए संविधान में संशोधन पर विचार किया जा रहा है जो केंद्र और राज्यों को जीएसटी लगाने और वसूल करने की समान शक्ति देगा।
इन दोनों विकल्पों के साथ जो मुख्य समस्या है वह यह है कि दोनों में अप्रत्यक्ष कर लेने के राज्यों के अधिकार सीमित होंगे। मतभेदों को दूर करने और एक राय बनाने का एक तरीका संतुलित जीएसटी लाना हो सकता है जिसमें राज्यों को कुछ पूरक कर लगाने की इजाजत हो।
मसलन, तंबाकू, पेट्रोलियम या किसी भी दूसरे उत्पाद पर पूरक उत्पाद कर लगाने का अधिकार है ताकि सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को पूरा किया जा सके। टीएफसी की ओर से प्रस्तावित संवैधनिक इकाई वित्त मंत्रियों की समिति जीएसटी की शुरुआती संरचना में किसी भी तरह के बदलाव का निर्णय लेने के लिए उत्तरदायी होगी।
साथ ही अगर राज्य कोई पूरक कर लगाना चाहता है, तो इसका मूल्यांकन करना भी इस समिति की जिम्मेदारी होगी। पूरक कर के मूल्यांकन की शर्त या तो भारतीय बाजार के लिए कर की उपयुक्तता या फिर जीएसटी की संरचना पर कोई समानांतर असर होगी। कनाडा में कर वसूली के संबंध में केंद्र-राज्य समझौते में इस व्यवस्था को शामिल किया गया है और इसने अच्छे से काम भी किया है।
बिना किसी चूक की जीएसटी व्यवस्था मे किसी कसर की उम्मीद नहीं है। हालांकि, अगर पूरक कर लगाने का अधिकार राज्यों को आवश्यक राहत देता है और हितों के बीच का नाजुक संतुलन हासिल करता है, तो इससे मिलने वाला आर्थिक लाभ महत्वपूर्ण होगा और आदर्श संरचना में सुधार होगा। (बीएस हिंदी)
25 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें