नई दिल्ली May 05, 2010
मौसम विभाग के मॉनसून सामान्य रहने के अनुमानों और अनाज के अतिरिक्त भंडार की खबरों से उम्मीद की जा रही है कि खाद्यान्न महंगाई दर में आने वाले महीनों में कमी आएगी।
हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि 2010-11 में महंगाई का दबाव बना रहेगा, क्योंकि भारत में आथक सुधार और तेल की कीमतें बढ़ने की वजह से विनिर्मित उत्पादों में तेजी रहेगी। 2008-09 में महंगाई दर बढ़ने की प्रमुख वजह ईंधन की कीमतों में तेजी थी, जबकि 2009-10 में पिछले साल के उच्च आधार के चलते महंगाई दर शून्य से भी नीचे चली गई।
खाद्यान्न महंगाई दर अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं के लिए चिंता का कारण बनी रही, क्योंकि जुलाई 2008 में यह 9-10 प्रतिशत पर पहुंची और दिसंबर 2009 आते आते यह 19.17 प्रतिशत पर पहुंचते हुए दशक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई। इसकी वजह यह रही कि सूखे के चलते आपूर्ति में कमी आई और कीमतें बढ़ती गईं।
खाद्यान्न की मौजूदा कीमतों से महंगाई दर में गिरावट के संकेत मिल रहे हैं, क्योंकि अनाज, दालों, चावल और चीनी की कीमतों में जनवरी 2010 के बाद से गिरावट आई है। अप्रैल में रबी की फसलों के बाजार में आने के बाद से उम्मीद की जा रही है कि खाद्यान्न की कीमतों में तेज गिरावट आएगी।
बहरहाल, गिरावट मामूली है। गेहूं, आटा और अरहर दाल की कीमतों में 1 से 5 रुपये प्रति किलो की गिरावट आई है, वहीं चीनी की कीमतों में पिछले तीन महीनों के दौरान अप्रैल के अंत तक 10 रुपये प्रति किलो तक की गिरावट हुई है।
इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीच्यूट के एशिया के निदेशक अशोक गुलाटी ने कहा, 'हम उम्मीद कर रहे थे कि खाद्यान्न महंगाई दर में 1 अप्रैल से तेज गिरावट होगी, क्योंकि रबी की फसल बाजार में पहुंच जाएगी।
बहरहाल रबी की फसल बेहतर रहने के बावजूद कीमतों में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। हमारे पास बड़ी मात्रा में अतिरिक्त अनाज का भंडार है, लेकिन उसकी तुलना में कीमतें ज्यादा हैं। यह चिंता का विषय है। उच्च कीमतों की वजह यह है कि बाजार में नकदी ज्यादा है।
अभी नकदी कम किए जाने के लिए मानक कड़े किए जाने की जरूरत है। साथ ही समर्थन मूल्य ज्यादा होने की वजह से भी कीमतों को बल मिला है।' गुलाटी ने कहा कि दालों के मामले में चिंताजनक स्थिति है, जहां असली कमी है। जहां तक चीनी की बात है, तो अब उत्पादन के संसोधित अनुमानों के बाद कमी की स्थिति नहीं रह गई है।
1 अप्रैल तक के आंकड़ों के मुताबिक केंद्रीय पूल में गेहूं का भंडार 190 लाख टन और चावल का भंडार 287 लाख टन था। भारतीय खाद्य निगम ने 1 अप्रैल तक करीब 200 लाख टन गेहूं की खरीदारी की थी, जिसकी वजह से केंद्रीय पूल में गेहूं की मात्रा 370 लाख टन हो गई है। बफर स्टॉक की जरूरतों की तुलना में स्टॉक बहुत ज्यादा है।
बावजूद इसके, गेहूं की कीमतों में मामूली गिरावट आई है, जबकि चावल की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं। जानकारों को उम्मीद है कि आने वाले सितंबर में तैयार होने वाली खरीफ की फसल के बाद कीमतों में और कमी आएगी।
बैंक ऑफ बड़ौदा की मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे नित्सुरे ने बताया, 'खाद्यान्न को लेकर तमाम सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं, रबी की फसल अच्छी रही है और मॉनसून बेहतर रहने की भी आस है। इस साल मॉनसून सामान्य रहने से खरीफ की प्रमुख फसलों जैसे चावल, दालों और तिलहन के उत्पादन में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।'
विभाग के अनुमानों से बंधी उम्मीद
मौसम विभाग का कहना है इस साल सामान्य रहेगा मॉनसूनदेश का मौजूदा अतिरिक्त अनाज भंडार भी डाल रहा है कीमतों पर असरदिसंबर 2009 में खाद्य महंगाई दर रिकॉर्ड 19।17 प्रतिशत रही थीअनाज, चावल, दाल और चीनी के भाव हुए हैं कम (बीएस हिंदी)
05 मई 2010
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