24 मई 2010
चीनी सेक्टर पर सरकारी नियंत्रण खत्म करने की मांग
नई दिल्ली : चीनी उत्पादन से जुड़े संशोधित अनुमान में इस साल और अगले वर्ष प्रोडक्शन ज्यादा रहने की उम्मीद जताई गई है, जिसके बाद कमोडिटी के दामों में गिरावट आनी शुरू हो गई है और चीनी उद्योग नियंत्रण खत्म करने को लेकर आक्रामक कोशिश कर रहा है। हालांकि, उद्योग बाजार से जुड़ी प्राइसिंग और नियंत्रण को पूरी तरह खत्म करना चाहता है, लेकिन उसने सरकार से चीनी मिलों के बीच गन्ने के खेतों में 15 किलोमीटर के फासले से जुड़ी प्रक्रिया जारी रखने को कहा है, ताकि आंतरिक तौर पर उन्हें प्रतिस्पर्धा का सामना न करना पड़े। नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज (एनएफसीएसएफ) और इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए), दोनों ने फरवरी के बाद खाद्य मंत्रालय को सुझाव दिया था कि यह सेक्टरवार डीकंट्रोल पर आगे कदम बढ़ाने और उद्योग पर लगी तमाम तरह की पाबंदियां हटाने का माकूल वक्त है। उस वक्त चीनी के दाम 50 रुपए प्रति किलोग्राम के स्तर से टूटकर 35 रुपए प्रति किलोग्राम पर आ गए थे। मामले की जानकारी रखने वाले मंत्रालय के एक अधिकारी ने ईटी से कहा, 'प्रभावी रूप से वे उद्योग को डीकंट्रोल से मिलने वाला फायदा चाहते हैं।' मवाना शुगर्स के प्रबंध निदेशक सुनील ककरिया ने ईटी से कहा, 'नियंत्रण हटाने का सबसे अच्छा वक्त अभी है। यह चीनी की कीमतों में गिरावट आने से जुड़े चक्र की शुरुआत है और इस वक्त सरकार पर भी दबाव काफी कम है। आज, मैं गन्ने से भी कम दाम पर चीनी बेच रहा हूं, क्योंकि गन्ने की औसत कीमत 245 रुपए प्रति क्विंटल है।' उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, 'किसान के पास अपना गन्ना उसे बेचने की आजादी मिलनी चाहिए, जो उसे सबसे बेहतर दाम दे।' बीएचएल के सीईओ कुशाग्र बजाज उद्योग के डीकंट्रोल और गन्ने के रकबा का आरक्षण खत्म करने के बारे में खुले बाजार का फलसफा रखते हैं, जबकि आईएसएमए और बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ज्यादा सतर्क रुख अपना रहे हैं। हालांकि, आईएसएमए में शामिल दूसरे लोगों को डर है कि अगर गन्ना खेती का क्षेत्र आरक्षित न रखा गया तो सभी के हाथ खुल सकते हैं। इसके बाद गन्ने को लेकर मिलों के बीच जबरदस्त प्रतिस्पर्धा देखने को मिल सकती है। गन्ना खेती के लिए आरक्षित क्षेत्र के मुद्दे पर उद्योग के भीतर कायम भारी मतभेदों से सरकार भी वाकिफ है, जिसने पिछली बार उद्योग के सामने संकट खड़ा होने के वक्त 5,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का आर्थिक राहत पैकेज दिया था। सेक्टर एक और बड़ी गिरावट के लिए तैयार नहीं दिख रहा। (ई टी हिंदी)
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