मुंबई May 02, 2010
जिंस बाजार नियामक, वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) इस साल के दौरान पहले चरण में अपने 'सीधे कीमत प्रसारण कार्यक्रम' योजना के तहत 800 टिकर बोर्ड लगाएगा।
इस योजना पर करीब 10 करोड़ रुपये के निवेश की योजना है। इस कार्यक्रम का उद्धाटन कृषि मंत्री शरद पवार 12 मई को दिल्ली की आजादपुर मंडी में करेंगे। इसमें देश की 800 मंडियों को पहले चरण में जोड़ने की योजना है। साल के अंत तक दूसरे चरण में 200 मंडियां इस योजना से जुड़ जाएंगी।
एफएमसी के सदस्य राजीव अग्रवाल ने कहा, 'इस योजना का मकसद है कि देश की 1000 मंडियों को टिकरबोर्ड और इंटरनेट के माध्यम से जिंसों के वायदा भाव से जोड़ा जाए, जिससे विभिन्न इलाकों के किसानों को कीमतों की जानकारी मिल सके और वे इसके अनुरूप फैसले कर सकें।'
जिंस एक्सचेंजों और नियामक ने अभी 183 मंडियों को टिकर बोर्ड के माध्यम से कीमतों के सीधे प्रसारण की व्यवस्था की है। इसकी देख-रेख एक्सचेंज करेंगे। अग्रवाल ने कहा, 'इस चरण में हम उन मंडियों से संपर्क कर रहे हैं, जिनके पास बिजली, केबल और कंप्यूटर जैसी न्यूनतम बुनियादी सुविधाएं हैं। इसके बाद हम इस कार्यक्रम का विस्तार अन्य मंडियों तक भी करेंगे।'
भारत में 8000 से ज्यादा मंडियों में रोजाना कृषि जिंसों का कारोबार होता है, जिनका कारोबार 1,15,000 करोड़ रुपये प्रतिदिन का है। लेकिन ऐसी ज्यादातर मंडियों, खासकर पिछड़े इलाकों की मंडियों में बिजली, सड़क और रेल जैसी सामान्य बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। एक टिकर बोर्ड की लागत 1-1.5 लाख रुपये आएगी, जिसमें इसे लगाने का शुल्क भी शामिल है।
शुरुआत में इस पर आने वाले खर्च का 65 प्रतिशत हिस्सा नियामक करेगा और शेष 35 प्रतिशत खर्च का वहन एक निश्चित अनुपात में जिंस एक्सचेंज करेंगे। रखरखाव के लिए नियामक एक स्थानीय एजेंसी को नियुक्त करने की योजना बना रहा है, जो हर मंडी के टिकर बोर्ड की देखरेख करेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि टिकर बोर्ड लगाने का फायदा किसानों को मिलेगा और वे अपने उत्पाद बेचने के पहले कीमतों को लेकर फैसले कर सकेंगे। अगर किसी जिंस की कीमत का वायदा भाव एक्सचेंज में कम रहता है तो किसान हाजिर बाजार में अपनी जिंस, फसल की कटाई के समय ही बेच सकेंगे।
अगर आने वाले महीने की वायदा कीमतें ज्यादा रहती हैं तो किसान अपनी जिंस को बाद में बेचने के लिए रोक सकते हैं। जानकारों का मानना है कि इस व्यवस्था से किसान एक्सचेंज के प्लेटफार्म का इस्तेमाल बेहतर तरीके से कर सकेंगे और एक्सचेंज के कारोबार में उनकी भागीदारी बढ़ेगी।
कीमतों के बारे में पता नहीं होने के चलते किसान अपने उत्पाद को कम दाम पर बेच देते हैं और बाद में कीमतें दोगुनी या और ज्यादा हो जाती हैं। स्थानीय आढ़तिए इससे मोटी कमाई करते हैं। (बीएस हिंदी)
03 मई 2010
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