मुंबई May 22, 2010
अनाज, फलों और सब्जियों के बाद मसालों का बाजार भी गर्म हो गया है।
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में इसकी हिस्सेदारी नगण्य है, जिसके चलते इस सेक्टर पर सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है। कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से उपभोक्ताओं की जेब जरूर हल्की हो रही है।
पिछले पांच महीने में हल्दी और इलायची सहित तमाम मसाले पहुंच से बाहर जा चुके हैं। घनिए और जीरे की कीमतें भी अब बढ़ने लगी हैं और कीमतों में आई कमी से इन्हें निजात मिल रही है। जानकारों का मानना है कि जीरा और धनिया की कीमतें भी आने वाले सप्ताहों के दौरान बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगी।
पिछले 5 महीने में हल्दी की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं। इसकी वजह है कि इस साल उत्पादन में गिरावट के अनुमान आ रहे हैं। इस सत्र में हल्दी का उत्पादन 42-43 लाख बोरी (एक बोरी 80 किलो) रहने का अनुमान है, जबकि पिछले सत्र में उत्पादन 49-50 लाख बोरी था। भारत में हल्दी की वार्षिक खपत 45-46 लाख टन है।
आंध्र प्रदेश में फसल होने की खबर से भी कारोबारियों की धारणा पर असर पड़ा और उन्होंने आने वाले महीनों में अच्छे दाम मिलने की वजह से हल्दी की जमाखोरी की। हाजिर बाजार का हाल देखें तो सांगली में इस साल हल्दी की कीमतों में 60 प्रतिशत की तेजी आ चुकी है।
कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह हल्दी की कमी को बताते हुए सांगली के श्री हलद व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष शरद शाह ने कहा कि चालू सत्र के अंत में इसकी कीमतें 200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएंगी। हल्दी की बुआई जून और अगस्त के बीच होती है, जबकि फसल दिसंबर और मार्च में तैयार होती है।
विश्लेषकों का अनुमान है कि मॉनसून के सामान्य रहने पर हल्दी की बुआई का क्षेत्रफल कम से कम 35 से 40 प्रतिशत बढ़ सकता है। शाह ने कहा, 'पिछले साल की शुरुआत में जब हाजिर बाजार में हल्दी की कीमतें 150 रुपये किलो पर पहुंच गई थीं, तो वायदा बाजार में दाम कम थे। ऐसे में या तो हाजिर बाजार में कीमतें कम होतीं या वायदा बाजार में कीमतें बढ़तीं।'
भारत में इलायची का उत्पादन अनुमान से कम होने वजह से पिछले एक साल में कीमतें दोगुनी हो गई हैं। कीमतों में बढ़ोतरी की एक वजह विदेशी मांग भी है। मुंबई के इलायची के एक बड़े निर्यातक मूलराज रूपारेल ने कहा, 'हमने जिस दाम पर इलायची की बिक्री की, विदेशी खरीदारों ने माल उठा लिया। इसका मतलब यह है कि खरीदार पूरे सत्र के दौरान कीमतों के बजाय उपलब्धता सुनिश्चित करने में लगे रहे और पूरे सत्र के दौरान कीमतों में तेजी बनी रही।'
इलायची की औसत किस्म की कीमतें इस समय 1300 रुपये प्रति किलो हैं, जबकि एक साल पहले इसकी बिक्री 650-700 रुपये प्रति किलो के भाव हुई। भारत का कुल निर्यात इस साल तेजी से बढ़कर 2000 टन हो गया, जो एक साल पहले 1500 टन था। भारत में इलायची की सालाना घरेलू खपत 11,000-12,000 टन है। घरेलू मांग को ग्वाटेमाला से निर्यात के माध्यम से पूरा किया जाता है।
बहरहाल धनिए की कीमतें इस समय 30 रुपये प्रति किलो हैं, जिसमें इस साल 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। हालांकि इसकी कीमतों में भी तेजी के आसार हैं और उम्मीद की जा रही है कि दीपावली तक इसकी कीमतें 35 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाएंगी। कोटा (राजस्थान) के रामसूरज-जुगलकिशोर के साझेदार रामसूरज अग्रवाल ने कहा कि स्टॉकिस्टों के पास धनिया बहुत कम मात्रा में है।
ऊंझा के जीरा के प्रमुख कारोबारी प्रवीण पटेल ने कहा कि इसकी कीमतें साल के अंत तक 150 रुपये प्रति किलो तक जा सकती हैं। वर्तमान में जीरे का कारोबार 120 रुपये प्रति किलो के भाव हो रहा है। इस जिंस की कीमतें चालू साल के दौरान 3-4 रुपये प्रति किलो कम हुई हैं।
मुंबई की ट्रेडिंग फर्म कोटक कमोडिटी सर्विसेज की मसाला विश्लेषक सुधा आचार्य ने कहा कि आने वाले महीनों में मिर्च की कीमतें भी बढ़ सकती हैं। पिछले साल खरीफ की फसलों में आई गिरावट की भरपाई रबी के मौसम में हुए ज्यादा उत्पादन से हो गई है। काली मिर्च की आपूर्ति कम हुई है। घरेलू और विदेशी बाजारों में इसकी मांग ज्यादा है।
मसाले हुए बजट से बाहर
पिछले 5 महीने में हल्दी की कीमतें दोगुनी हुईंइस साल हल्दी का रकबा बढ़ने की उम्मीदइलायची की कीमतें 1 साल में दोगुनी, विदेशी खरीदारों ने पसंद कियाधनिया और जीरा स्थिर, भविष्य में कीमतों में तेजी के आसार (बीएस हिंदी)
24 मई 2010
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