05 मई 2010
गन्ने की कीमत पर किसानों और मिलों में कड़वाहट के आसार
लखनऊ।। देश में गन्ने के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के किसानों को 2009 के सीजन में मिल मालिकों से अच्छे दाम मिले थे। गन्ने का अगला सीजन शुरू हो रहा है और मिलों का कहना है कि अब वे उन ऊंची कीमतों पर गन्ना नहीं खरीद सकतीं। इस वर्ष चीनी का दाम 44 फीसदी तक गिर चुका है और मिलों का कहना है कि वे 2010-11 के पेराई सीजन में गन्ने के लिए पिछले सीजन जैसा दाम नहीं चुका सकतीं। उत्तर प्रदेश की मिलों ने इस वर्ष 260-270 रुपए प्रति क्विंटल तक दाम चुकाया था जबकि स्टेट एडवाइज्ड प्राइस (एसएपी) इससे कहीं कम 165 रुपए का था। गन्ना उत्पादन में कमी आने के शुरुआती अनुमान की वजह से मिलों ने एसएपी से ऊपर गन्ने के लिए 100 रुपए प्रति क्विंटल तक का प्रीमियम चुकाया था। कुछ जगहों पर तो मिलों के बीच होड़ के चलते किसानों को 290 रुपए प्रति क्विंटल तक की कीमत मिली थी। उस समय बाजार में चीनी के लगातार बढ़ते दाम की वजह से मिलें किसानों को गन्ने के लिए अच्छा भुगतान करने से नहीं हिचक रही थीं। जनवरी में खुदरा बाजार में चीनी की कीमत 50 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई थी जो अब 40 फीसदी से अधिक गिर चुकी है। एक चीनी कंपनी के अधिकारी ने कहा, 'चीनी की मौजूदा कीमत को देखते हुए गन्ने के लिए अधिक प्रीमियम नहीं चुकाया जा सकता। अगर अक्टूबर-नवंबर में पेराई का अगला सीजन शुरू होने के समय चीनी के दाम 25 रुपए प्रति किलोग्राम के आसपास रहते हैं तो हमें गन्ने के लिए 200 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत चुकानी भी मुश्किल होगी।' अधिकारी ने कहा कि अगले सीजन के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 140 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि एसएपी इससे कहीं अधिक है और मायावती सरकार ने एफआरपी का विरोध किया है। मिलांे का कहना है कि एफआरपी से देशभर में गन्ने की कीमतों मंे समानता लाई जा सकती थी, लेकिन उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के विरोध की वजह से इसे सफलता नहीं मिल पाई। (ई टी हिंदी)
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