नई दिल्ली May 24, 2010
दिन गए जब किसान केवल हल चलाने और फसल काटकर उसे बेचने में मशगूल रहता था।
अब तो किसान भी कारोबारी बन रहे हैं और उत्तर भारत में हजारों किसानों की जिंदगी में यह बदलाव नई दिल्ली का भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी पूसा इंस्टीटयूट ला रहा है। यह संस्थान किसानों को अपने यहां विकसित हुई फसलों के बीज उगाने का काम दे रहा है।
अनाज उगाने वालों को एक खास कार्यक्रम के तहत बड़े पैमाने पर बीज उगाने के शानदार कारोबार का हिस्सा बनाया जा रहा है। इससे किसानों की आमदनी में ही इजाफा नहीं हुआ है, बेहतर किस्म के बीज भी आराम से उपलब्ध हो रहे हैं।
संस्थान के निदेशक एच एस गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'नए और अच्छे बीजों के इस्तेमाल से फसल की पैदावार आम तौर पर 20 से 30 फीसदी बढ़ जाती है। बीज उगाने वाले किसानों को भी 1 लाख रुपये प्रति हेक्टेअर तक का शुद्ध मुनाफा मिलता है।'
यह अनूठा कार्यक्रम पहले दिल्ली के आसपास के इलाकों में ही सीमित था, लेकिन अब दायरा लांघकर यह हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दूसरे इलाकों में भी पहुंच गया है। पूसा इंस्टीटयूट के वैज्ञानिक अच्छे बीज पैदा करने के लिए जरूरी सबक किसानों को पढ़ाते हैं।
डॉ. गुप्ता ने बताया, 'किसानों से इसके एवज में कुछ नहीं लिया जा रहा है। हां, जो निजी कंपनियां पूसा की किस्मों के बीज का कारोबार करती हैं, उनसे कुछ रकम और रॉयल्टी वसूली जाती है। बीज उगाने में किसानों को शामिल करने का मकसद तकनीक को फैलाना और बेहतरीन पूसा बीज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराना है।'
ऐसे कई किसानों ने तो छोटे उद्यम या सहकारी संस्थाएं ही शुरू कर दी हैं। हरियाणा के करनाल और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और गाजियाबाद में ऐसे उद्यम चालू हो गए हैं और यह चलन तेज हो रहा है। ऐसे हरेक उद्यम में हर साल गेहूं और धान के 300 से 500 क्विंटल बीज उगाए जा रहे हैं और आसपास के किसानों को बेचे जा रहे हैं। पूसा इंस्टीटयूट के वैज्ञानिक दिल्ली परिसर में ही इन बीजों की जांच करते हैं।
इस कार्यक्रम की मदद से पूसा किस्मों के बीजों का उत्पादन 2005-06 के 5,000 क्विंटल से बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में 11,000 क्विंटल से भी ज्यादा हो गया। इनमें से तकरीबन आधा उत्पादन ये किसान ही कर रहे हैं।
मुनाफे के बीज
पूसा इंस्टीटयूट की मदद से किसान उद्यम या सहकारी संगठन के तहत खेतों में बेहतरीन किस्म के बीज उगा रहे हैं, जिनकी बिक्री के ज़रिये उन्हें हो रहा है सालाना लाखों रुपये का मुनाफा (बीएस हिंदी)
24 मई 2010
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