मुंबई May 08, 2010
देश के विभिन्न बंदरगाहों पर अटकी करीब 2.5 लाख टन चीनी के लिए आयातक दावा करने पर विचार कर रहे हैं।
चीनी के दाम पहले ही काफी गिर चुके हैं और चालू सत्र में इनमें कोई सुधार की उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है। लिहाजा आयातक और ज्यादा नुकसान का जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। आयातक थोक उपभोक्ताओं के साथ घाटे को साझा करने के लिए सौदे हासिल करने की काशिश कर रहे हैं।
फिलहाल हाजिर बाजार में चीनी का भाव 28,000-29,000 रुपये प्रति टन चल रहा है, जबकि चीनी का आयात इससे ऊंचे दाम पर किया गया था। ऐसे में आयातकों को प्रति टन कम से कम 4,000 रुपये का नुकसान हो रहा है।
आयातकों ने मुख्य रूप से ब्राजील से 32,000-33,000 रुपये प्रति टन के भाव पर चीनी खरीदी थी। चीनी के भाव गिरने के बाद आयातकों ने भंडारण के ऊंचे खर्चे उठाने के बजाए चीनी की खेप को बंदरगाहों पर ही रोक दिया। बड़े उपभोक्ताओं की ओर से आयातित कीमत पर चीनी उठाने से इनकार किए जाने की वजह से आयातित चीनी बिना दावे के पड़ी है। वे मौजूदा भाव पर चीनी खरीदना चाहते हैं।
चीलू सत्र में देश के चीनी उत्पादन अनुमानों को 1.5 करोड़ टन के शुरुआती स्तर से बढ़ाकर 1.85 करोड़ टन कर दिया गया जिसके बाद घरेलू बाजार में चीनी के भाव में भारी कमी देखने को मिली। चीनी के भाव में कमी में सरकारी प्रयासों का भी योगदान रहा है।
सरकार ने चीनी की आसमान छूती कीमतों को कम करने के लिए शुल्क मुक्त आयात और साप्ताहिक कोटा जैसे कदम उठाए जिनका असर चीनी के भाव पर पड़ा। चीनी के व्यापार से जुड़ी एक कंपनी के प्रमुख ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'हमें शुरुआत में लगा था कि चीनी के दाम पूरे साल ऊंचे बने रहेंगे।
लिहाजा, हमने ज्यादा कीमतों पर भारी मात्रा में चीनी का आयात किया। लेकिन, कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिली है। हम इस नुकसान को बांटने के लिए अपने ग्राहकों से बात-चीत कर रहे हैं। हम जल्दी ही आयातित चीनी के लिए दावा करेंगे।'
अगले साल ज्यादा चीनी उत्पादन की संभावना है। 2011-12 के पेराई सत्र में चीनी उत्पादन का अनुमान 2.25 करोड़ टन रखा गया है जो इसके बाद के साल में 3 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। इसका मतलब है कि आने वाले सालों में चीनी के भाव में नरमी बनी रहेगी।
अधिकारियों का कहना है, 'भारत में चीनी का भंडारण खर्च कारोबारी मार्जिन से ज्यादा है। लिहाजा बंदरगाहों पर चीनी को रोक के रखने में कोई समझदारी नहीं है।' बाजार सूत्रों के मुताबिक अलग-अलग बंदरगाहों पर फंसी 2.5 लाख टन चीनी में से सबसे ज्यादा हिस्सा श्री रेणुका शुगर्स का है, पर एक ईमेल के जवाब में कंपनी ने इससे इनकार किया है।
कारोबारी सूत्रों के मुताबिक इस आयातित चीनी में खाद्यान्नों और कृषि उत्पादों के कारोबार से जुड़ी कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भी हिस्सेदारी है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने 15,000 टन परिशोधित चीनी का आयात किया था, पर इसके ग्राहक ने आधी चीनी ही उठाई है। अब कंपनी बंदरगाहों पर अटकी आधी चीनी को उठाने का मन बना रही है।
देश में कारोबारी गाहकों की ओर से कच्ची और परिशोधित चीनी का आयात करते हैं। आयात का काम कारोबारियों द्वारा किया जाता है, ऐसे में भाव गिरने की स्थिति में जब आयातित माल की खेप बंदरगाहों पर होती है, तो आमतौर पर ग्राहक सौदे से पीछे हट जाते हैं। अब कयास हैं कि सरकार चीनी पर 60 फीसदी आयात शुल्क लगा सकती है। (बीएस हिंदी)
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