मुंबई May 14, 2010
देश से मूंगफली निर्यात को लेकर कड़े नियम बन रहे हैं। 1500 करोड़ रुपये सालाना के मूंगफली निर्यात कारोबार पर कड़ी नियामक प्रकिया के चलते हिस्सेदारी कम होने के आसार हैं।
केंद्र सरकार की कृषि और संबध्द उत्पादों के प्रोत्साहन और विकास का काम देखने वाली संस्था एग्रीकल्चरल प्रमोशन ऐंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) इसके लिए कड़े कानून बना रहा है।
एपीडा ने जून 2009 में पहली बार यूरोपीय संघ को मूंगफली निर्यात को लेकर दिशानिर्देशों में संशोधन किया था। इस क्षेत्र के आयातकों ने आरोप लगाया था कि मूंगफली के दाने बड़ी मात्रा में कवक संक्रमित हैं। इसके चलते बड़े पैमाने पर पिछले साल माल वापस भेज दिया गया था।
पिछले साल दो अलग-अलग प्रतिनिधिमंडल भारत आए थे और उन्होंने प्रयोगशालाओं, छिल्का यूनिट्स, परिवहन सुविधाओं, गोदामों आदि का निरीक्षण किया था, जिससे अच्छी गुणवत्ता वाले दानों की आपूर्ति हो सके।
इन दो प्रतिनिधिमंडल ने एपीडा को सलाह दी थी कि पूरी आपूर्ति श्रृंखला- जिसमें प्रसंस्करण इकाइयां, छिल्का फैक्टरीज आदि हैं, को आवश्वक रूप से पंजीकृत किया जाना चाहिए। इसे देखते हुए मार्च 2010 में अथॉरिटी ने इसे लागू कर दिया। अब अथॉरिटी गैर यूरोपियन यूनियन में निर्यात को लेकर रूपरेखा तैयार कर रहा है, जो जल्द ही सामने आ जाएगी।
एपीडा के निदेशक एस दवे ने इस बात की पुष्टि की है कि नियामक रूपरेखा तैयार की जा रही है, लेकिन इसकी समयसीमा के बारे में कुछ भी कहने से इनकार किया है। उद्योग जगत के दिग्गज संजय शाह ने कहा कि यह मानक जल्द ही सामने आ सकते हैं।
दिलचस्प है कि यूरोपीय संघ भारतीय निर्यातकों से सौदे करने से पहले आपूर्ति श्रृंखला को देखता है, वहीं अन्य देश सिर्फ उत्पादों को देखते हैं और वे उसे उत्पाद के मूल स्थान और आपूर्ति श्रृंखला से नहीं जोड़ते।
एपीडा ने उच्च स्तर के एफ्लाटॉक्सिन स्तर की समस्या से निपटने के लिए शेलिंग यूनिट, गोदामों और अन्य रखरखाव की सुविधाओं का आवश्यक रूप से पंजीकरण करवाना जरूरी कर दिया है, जिससे पूरी आपूर्ति श्रृंखला पर नजर रखी जा सके।
इसका परिणाम यह हुआ कि यूरोपियन यूनियन को किया जाने वाला निर्यात अप्रैल 2009 से जनवरी 2010 के बीच 94 प्रतिशत घटकर 664 टन रह गया, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 12589 टन मूंगफली का निर्यात हुआ था।
वहीं यूरोपीय संघ के अलावा अन्य देशों को किए जाने वाले निर्यात में 25.8 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह पिछले साल के 2,34,890 टन की तुलना में घटकर इस अवधि के दौरान 1,74,215 टन रह गया है। इससे संकेत मिलते हैं कि 24 देशों वाले यूरोपियन यूनियन द्वारा मानकों को कड़ा किए जाने के बाद से भारत से होने वाले मूंगफली निर्यात में ठहराव आ गया है।
इंडियन ऑयलसीड्स ऐंड प्रोडयूस एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (आईओपीईपीसी) के सीईओ सुरेश रामरखियानी ने कहा- डब्ल्यूटीओ ने हर देश को किए जाने वाले कारोबार के लिए एक दिशानिर्देश तैयार किया है, जो जिंसों का वैश्विक मानक तय करती है। भारत को भी इस मानक का पालन देर-सबेर करना ही है।
एपीडा बना रहा है कड़े कानून
1500 करोड़ रुपये सालाना के मूंगफली निर्यात कारोबार पर होगा असर पहली बार जून 2009 में निर्यात दिशानिर्देशों में किए गए थे बदलाव आयातकों की ओर से दानों में कवकसंक्रमण की शिकायत के बाद एपीडा उठा रहा है कड़े कदम (बीएस हिंदी)
16 मई 2010
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