मुंबई May 14, 2010
चीनी के उत्पादन अनुमानों में दोबारा बदलाव किए जाने के बावजूद चीनी का अग्रिम भंडार 2010-11 के पेराई सत्र में पिछले सात सालों में सबसे निचले स्तर पर रह सकता है।
एडलवाइस रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर 2010 में शुरू होने वाले पेराई सत्र की शुरुआत में चीनी का अग्रिम भंडार 29 लाख टन होगा जो पिछले सात सालों में सबसे कम होगा। हालांकि इसके अगले साल यानी अक्टूबर 2011 में अग्रिम भंडार में मामूली बढ़त हो सकती है और यह 33 लाख टन रहा सकता है।
भारतीय चीनी उत्पादक संघ (इस्मा) ने चालू पेराई सत्र के लिए भारत का चीनी उत्पादन अनुमान 1.85 करोड़ टन लगाया है। सत्र की शुरुआत में संघ का अनुमान 1.58 करोड़ टन था।
इसी तरह पिछले सत्र में 30 लाख टन आयात के मुकाबले चालू सत्र में 50 लाख टन आयात का अनुमान है। लेकिन सरकार की ओर से 15-25 फीसदी सीमा शुल्क लगाने पर विचार किया जा रहा है, लिहाजा अगले साल आयात शून्य हो सकता है।
विदेशों से सस्ते आयात पर प्रतिबंध लगाने के बजाए सरकार भारी आयात शुल्क लगाने का मन बना रही है ताकि आयात निरर्थक हो जाए। विश्लेषकों के मुताबिक कृषि मंत्री शरद पवार ने ने संकेत दिए हैं कि आने वाले दो-तीन हफ्तों में इस सिलसिले में अंतिम फैसला ले लिया जाएगा।
द्वारकेश शुगर इंडस्ट्रीज लिमिटेड के पूर्णकालिक निदेशक बी जे माहेश्वरी ने स्वीकार किया कि इस साल कम उत्पादन के चलते चीनी का भंडार कम रहेगा, पर उन्होंने कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं दिया। एडलवाइस रिसर्च के मुताबिक 2011 में भारत चीनी के मामले में आत्मनिर्भर होगा और चीनी आयात की जरूरत नहीं होगी।
सरकार सफेद चीनी के आयात पर फिर से आयात शुल्क लगा सकती है जिससे घरेलू कीमतों को समर्थन मिलेगा। 2012 तक भारत में मांग के मुकाबले चीनी उत्पादन अधिक होगा। 2011 के 2.5 करोड़ टन के मुकाबले 2012 में 2.9 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन होगा।
मौजूदा समय में घरेलू चीनी मिलों द्वारा तैयार सफेद चीनी भंडारों में 25-27 रुपये किलो उतपादन लागत पर रखी जा रही है। अगर चीनी के भाव इससे नीचे जाते हैं, तो मिलों को घाटा होगा लिहाजा किसानों को बकाए का भुगतान मुश्किल होगा।
सरकार किसानों की सुरक्षा के लिए चीनी के भाव इस स्तर से ऊपर बनाए रखने की कोशिश करेगी। जब चीनी के भाव 25 रुपये किलो तक गिरे, तब सरकार ने चीनी के साप्ताहिक कोटा को पाक्षिक और फिलहाल मासिक में बदला है। इसे चीनी की कीमतों को 29 रुपये किलो तक चढ़ने में मदद मिली है। साथ ही सरकार बड़े उपभोक्ताओं के लिए भंडार सीमा में भी छूट देने की योजना बना रही है।
दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक ब्राजील में भी ज्यादा आपूर्ति की स्थिति है, लिहाजा चीनी की कीमतों में गिरावट का रुख आ चुका है। आने वाले महीनों में सरकार की ओर से उठाए जाने वाले कदमों से होने वाले उतार-चढ़ाव को छोड़ दें, तो चीनी के भाव सीमित दायरे में ही रहने की संभावना है।
ब्राजील में चीनी और एथेनॉल उत्पादन उद्योग के बीच समान गन्ने के लिए खींच-तान होती रहती है, लिहाजा उनकी कीमतें एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। पिछले कुछ सालों में एथेनॉल की मांग में भारी बढ़ोतरी हुई है।
भारत की चीनी परिशोधन इकाइयां जो बड़े पैमाने पर आयातित कच्ची चीनी पर निर्भर करती हैं, घटते मुनाफे से प्रभावित होंगी। पिछले दो महीनों में चीनी के भाव में 35 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। (बीएस हिंदी)
16 मई 2010
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