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01 अक्टूबर 2009

10 प्रतिशत बढ़ सकता है तिलहन का क्षेत्रफल

मुंबई September 30, 2009
बेहतर तापमान और बुआई के लिए खेतों में उचित नमी के कारण रबी मौसम के दौरान तिलहन और सरसों के उत्पादन में 10 प्रतिशत की उम्मीद है।
देरी से मॉनसून आने की वजह से रबी के दौरान तिलहन की बेहतर उत्पादकता का अनुमान लगाया जा रहा है। उद्योग जगत के जाने माने विशेषज्ञ और जीजी पटेल ऐंड निखिल रिसर्च कंपनी के प्रबंध सहभागी गोविंद भाई पटेल के हालिया अनुमानों के मुताबिक रबी की प्रमुख तिलहन फसल की बुआई के क्षेत्रफल में 7 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हो सकती है।
अक्टूबर 2009 में शुरू होने वाले अगले रबी सत्र के दौरान तिलहन की बुआई का क्षेत्रफल पिछले सत्र के 66 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 73 लाख हेक्टेयर पर पहुंचने का अनुमान है। क्षेत्रफल में इस बढ़ोतरी का असर उत्पादन पर पड़ेगा। अनुमान है कि उत्पादन 12 प्रतिशत बढ़कर पिछले साल के 60 लाख टन से बढ़कर आगामी सत्र में 67 लाख टन हो जाएगा।
पटेल का तर्क है कि जून और जुलाई महीने में उत्पादन वाले क्षेत्रों में कम बारिश होने की वजह से खरीफ की फसलों की बुआई बड़े भूभाग में नहीं हो पाई। इस तरह के राज्यों में राजस्थान और मध्य प्रदेश प्रमुख हैं। इसका परिणाम यह होगा कि इन खेतों का प्रयोग तिलहनी फसलों की बुआई के लिए होगा।
तिलहन में गेहूं और चने जितना पानी की जरूरत नहीं होती है और जमीन में नमी मौजूद है। तापमान भी मध्यम है, जिसके चलते उम्मीद की जा रही है कि किसान तिलहन की बुआई को प्राथमिकता देंगे। देश के सबसे बड़े तिलहन पेराई कारोबारी केएस ऑयल के प्रबंध निदेशक संजय अग्रवाल ने कहा, 'किसानों को उम्मीद है कि उन्हें साल 2008 की तुलना में इस साल तिलहन की कीमतें 7 प्रतिशत के करीब ज्यादा मिलेंगी।
इस साल पहले सत्र के 2350 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में तिलहन की कीमतें 2500 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं। कीमतों में बढ़ोतरी के चलते किसान तिलहन फसल के प्रति ज्यादा उत्साहित हैं और वे ज्यादा क्षेत्रफल में तिलहन की बुआई करेंगे।' बहरहाल उनका कहना है कि अक्टूबर में होने वाली बुआई के बारे में अभी से दावा करना असामयिक होगा।
बहरहाल यह उम्मीद की जा रही है कि खरीफ सत्र के दौरान मूंगफली की बुआई में आई कमी की कुछ भरपाई रबी की तिलहनी फसलों से हो सकेगी। रबी के दौरान मूंगफली की बुआई के क्षेत्रफल में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है। यह रबी सत्र में 2-3 लाख हेक्टेयर बढ़कर 17-18 लाख हेक्टेयर हो सकता है, जबकि पिछले साल बुआई का क्षेत्रफल 15 लाख हेक्टेयर था।
खरीफ की दूसरी प्रमुख तिलहनी फसल सोयाबीन की बुआई के क्षेत्रफल में अनुमानित रूप से 16.81 प्रतिशत की कमी आई है और यह पिछले साल के 52.89 लाख हेक्टेयर से घटकर 2009-10 में 44 लाख हेक्टेयर रह गया है। देश में तिलहन उत्पादन की स्थिति में तेजी से बदलाव आ रहा है।
अदानी विल्मर लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि 2009 के दौरान खरीफ मौसम में तिलहन का कुल उत्पादन 131 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के 137 लाख टन उत्पादन से 6 लाख टन कम रहेगा। बुआई की स्थिति में बदलाव आने से ऐसा हुआ है।
लंदन स्थित गोदरेज इंटरनैशनल लिमिटेड के निदेशक दोराब मिस्त्री ने सरकार से कहा है कि तिलहन उत्पादन के लिए प्रवर्धित बीज (जीएम बीज) के इस्तेमाल की इजाजत दी जानी चाहिए, जिसके प्रयोग से तमाम देशों में उत्पादकता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने सरकार को यह भी राय दी है कि पाम आयल को बागवानी फसल घोषित करना चाहिए।
साथ ही निजी कंपनियों को तिलहन की बुआई के लिए भूमि अधिग्रहण की अनुमति दी जानी चाहिए। निजी कंपनियां कम से कम सामान्य जमीन को कृषि के अनुकूल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने कहा कि किसान किसान उतनी ही जमीन पर तिलहन की बुआई कर 30,000 रुपये सालाना कमा सकते हैं, जितनी जमीन पर उन्हें आम या अन्य पेंड़ों से प्रति साल 5,000 रुपये कमाई होती है। (बीएस हिन्दी)

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