नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। गन्ना उत्पादक राज्यों में जबर्दस्त विरोध से निश्चिंत रहते हुए गन्ने की नई मूल्य प्रणाली को केंद्रीय कैबिनेट ने गुरुवार को मंजूरी दे दी। अब राज्यों में इसी आधार पर गन्ने का मूल्य तय किया जाएगा, जो चालू पेराई सत्र से लागू होगा। वहीं दूसरी तरफ धान पर 50 रुपये का बोनस घोषित कर धान उत्पादक किसानों को खुश करने की कोशिश की गई है। हालांकि यह फैसला भी धान की सरकारी खरीद में गिरावट को देखते हुए लिया गया है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक समिति [सीसीईए] की बैठक में गन्ने का मूल्य तय करने की नई मूल्य प्रणाली एफएंडआर को मंजूरी मिल गई। इस नई मूल्य प्रणाली को लागू करने के लिए सरकार ने एक सप्ताह पहले ही अध्यादेश जारी कर दिया है। सीसीईए के फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने बताया कि नई मूल्य प्रणाली संबंधी विधेयक संसद के आगामी शीत सत्र में पेश किया जाएगा। इसमें आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया जाएगा।
चालू पेराई सत्र 2009-10 [अक्टूबर से सितंबर] में एफएंडआर की नई मूल्य प्रणाली में गन्ने का न्यूनतम मूल्य 129.84 रुपये प्रति क्िवटल तय किया गया है। यह मूल्य 9.50 प्रतिशत की न्यूनतम चीनी रिकवरी की दर पर लागू होगा। इससे अधिक की चीनी रिकवरी पर प्रति एक प्वाइंट पर 1.37 रुपये का मूल्य दिया जाएगा। केंद्र सरकार से निर्धारित यह मूल्य सभी राज्यों पर समान रूप से लागू होगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 25 जून, 09 को न्यूनतम वैधानिक मूल्य [एसएमपी] 107.76 रुपये प्रति क्िवटल घोषित किया था, जो अब नए मूल्य की घोषणा के साथ ही समाप्त हो जाएगा।
नई मूल्य प्रणाली से राज्य सरकारों पर भी राज्य समर्थित मूल्य [एसएपी] के नाम पर बेहिसाब गन्ने का मूल्य बढ़ाने पर परोक्ष रूप से बंदिश लग जाएगी। वहीं इस प्रणाली का सबसे अधिक फायदा चीनी मिलों को होगा। और इसका तत्काल फायदा केंद्र सरकार को, जो शीर्ष अदालत में अपनी नीतियों के चलते फंसी हुई है। तथ्य यह है कि लेवी चीनी मूल्य की दर को लेकर शुरू हुआ विवाद यहां तक पहुंचा है। अब इस फैसले से राशन की चीनी के दाम भी खुद-ब-खुद बढ़ जाएंगे।
वहीं दूसरी ओर धान किसानों के लिए खुशखबरी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य [एमएसपी] पर बोनस घोषित करने की उनकी मांग को सरकार ने मान लिया है। अब धान की सरकारी खरीद बढ़े हुए बोनस के साथ होगी। यानी, सामान्य धान 950 रुपये की जगह 1000 रुपये और ग्रेड ए धान 980 रुपये से बढ़कर 1030 रुपये प्रति क्िवटल पर पहुंच जाएगा। खरीदे जा चुके धान पर भी किसानों को बोनस की राशि का भुगतान किया जाएगा। (जागरण)
31 अक्तूबर 2009
आभूषण निर्यातक हुए खुश
मुंबई October 30, 2009
अमेरिका में आर्थिक सुधार से भारतीय आभूषण कारोबार को बल मिला है।
क्रिसमस और नए साल के अवसर पर भारतीय हीरा प्रसंस्करणकर्ता निर्यात में 25-30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। आभूषण के वार्षिक कारोबार में इन दो अवसरों पर निर्यात की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत के करीब है।
पिछले साल अमेरिका में आभूषण की बिक्री में 20 प्रतिशत की गिरावट इस दौरान आई थी। इसकी प्रमुख वजह मंदी रही, जो लीमन ब्रदर्स के धराशायी होने के बाद शुरू हो गई थी। हाउसिंग और ऑटोमोबाइल क्षेत्र को प्रोत्साहन पैकेज दिए जाने के बाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आश्चर्यजनक सुधार देखा गया। जुलाई-सितंबर 2009 के दौरान विकास दर 3.5 प्रतिशत हो गई।
अमेरिका में आर्थिक सुधार भारत के आभूषण कारोबारियों के लिए अहम है। इसकी वजह यह है कि भारत के कुल आभूषण निर्यात कारोबार में अमेरिका की हिस्सेदारी प्रत्यक्ष रूप से 30 प्रतिशत और परोक्ष रूप से 50 प्रतिशत तक है।
भारत के आभूषण कारोबारी मंदी की निराशा में दूसरे बाजारों की ओर देखने लगे थे। इसमें स्थानीय बाजार और बढ़ता हुआ चीन का बाजार शामिल है। लेकिन इन बाजारों से अमेरिकी बाजार में हुए नुकसान की भरपाई होती नजर नहीं आ रही थी।
डॉयमंड इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन और रेवाशंकर जेम्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रवीण शंकर पंडया ने कहा कि भारतीय आभूषण कारोबारी फिर अमेरिकी बाजार का रुख करने लगे हैं। जेम्स ऐंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल के वाइस चेयरमैन राजू जैन ने कहा कि क्रिसमस के नजदीक आते ही आभूषणों के बारे में जानकारी लेने वालों में तेजी आई है, साथ ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी एक शुभ संकेत है, भले ही इस समय बिक्री कम हो रही है।
पिछले 5 दिनों में गीतांजलि जेम्स, जिसकी 150 रिटेल चेन हैं, ने बिक्री में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है। कंपनी ने अधिग्रहण योजनाओं को छोड़ दिया था, लेकिन अब वह अमेरिका में संभावनाएं देखने लगी है।
गीजांजलि के कुल कारोबार में अमेरिका से होने वाले कारोबार की हिस्सेदारी 15-20 प्रतिशत है। बहरहाल क्रिसमस के लिए निर्यात ऑर्डर, जो अगस्त से शुरू होता है और अक्टूबर अंत तक चलता है, में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सामान्यतया तैयार आभूषणों की डिलिवरी ऑर्डर के 45 दिन के भीतर कर दी जाती है। (बी स हिन्दी)
अमेरिका में आर्थिक सुधार से भारतीय आभूषण कारोबार को बल मिला है।
क्रिसमस और नए साल के अवसर पर भारतीय हीरा प्रसंस्करणकर्ता निर्यात में 25-30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। आभूषण के वार्षिक कारोबार में इन दो अवसरों पर निर्यात की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत के करीब है।
पिछले साल अमेरिका में आभूषण की बिक्री में 20 प्रतिशत की गिरावट इस दौरान आई थी। इसकी प्रमुख वजह मंदी रही, जो लीमन ब्रदर्स के धराशायी होने के बाद शुरू हो गई थी। हाउसिंग और ऑटोमोबाइल क्षेत्र को प्रोत्साहन पैकेज दिए जाने के बाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आश्चर्यजनक सुधार देखा गया। जुलाई-सितंबर 2009 के दौरान विकास दर 3.5 प्रतिशत हो गई।
अमेरिका में आर्थिक सुधार भारत के आभूषण कारोबारियों के लिए अहम है। इसकी वजह यह है कि भारत के कुल आभूषण निर्यात कारोबार में अमेरिका की हिस्सेदारी प्रत्यक्ष रूप से 30 प्रतिशत और परोक्ष रूप से 50 प्रतिशत तक है।
भारत के आभूषण कारोबारी मंदी की निराशा में दूसरे बाजारों की ओर देखने लगे थे। इसमें स्थानीय बाजार और बढ़ता हुआ चीन का बाजार शामिल है। लेकिन इन बाजारों से अमेरिकी बाजार में हुए नुकसान की भरपाई होती नजर नहीं आ रही थी।
डॉयमंड इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन और रेवाशंकर जेम्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रवीण शंकर पंडया ने कहा कि भारतीय आभूषण कारोबारी फिर अमेरिकी बाजार का रुख करने लगे हैं। जेम्स ऐंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल के वाइस चेयरमैन राजू जैन ने कहा कि क्रिसमस के नजदीक आते ही आभूषणों के बारे में जानकारी लेने वालों में तेजी आई है, साथ ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी एक शुभ संकेत है, भले ही इस समय बिक्री कम हो रही है।
पिछले 5 दिनों में गीतांजलि जेम्स, जिसकी 150 रिटेल चेन हैं, ने बिक्री में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है। कंपनी ने अधिग्रहण योजनाओं को छोड़ दिया था, लेकिन अब वह अमेरिका में संभावनाएं देखने लगी है।
गीजांजलि के कुल कारोबार में अमेरिका से होने वाले कारोबार की हिस्सेदारी 15-20 प्रतिशत है। बहरहाल क्रिसमस के लिए निर्यात ऑर्डर, जो अगस्त से शुरू होता है और अक्टूबर अंत तक चलता है, में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सामान्यतया तैयार आभूषणों की डिलिवरी ऑर्डर के 45 दिन के भीतर कर दी जाती है। (बी स हिन्दी)
बलराम चीनी को खरीदेगी बजाज हिंदुस्तान
मुंबई : देश की सबसे बड़ी चीनी कंपनी बजाज हिंदुस्तान इस क्षेत्र की दूसरी बड़ी कंपनी बलरामपुर चीनी को खरीदने के लिए उससे बातचीत कर रही है। बजाज हिंदुस्तान डील के लिए लेवरेज बायआउट तरीके का इस्तेमाल कर सकती है। इसमें खरीदी जाने वाली कंपनी की संपत्ति के बदले सौदे के लिए कर्ज लिया जाता है। यह सौदा 1,600 करोड़ का हो सकता है। यह डील दो चरणों में होगी। पहले बजाज हिंदुस्तान बलरामपुर चीनी में इसके प्रमोटर सरावगी परिवार की पूरी 36।5 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी। इसके बाद वह कंपनी की 20 फीसदी हिस्से के लिए ओपन ऑफर लाएगी। इस अखबार के टीवी चैनल ईटी नाउ ने गुरुवार दोपहर को इस डील का खुलासा किया। इस मामले से जुड़े कई सूत्रों ने बताया कि बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी इस सौदे को आखिरी रूप दे रही हैं। उनके मुताबिक डील का एलान अगले 10 दिनों में हो सकता है। बलरामपुर चीनी को इसके लिए बजाज हिंदुस्तान की ओर से नॉन-कम्पीट फीस भी मिल सकती है। भारत में कंपनी बिकने की सूरत में प्रमोटर 25 फीसदी तक नॉन-कम्पीट फीस वसूल सकते हैं।
इस सौदे में मर्चेंट बैंकर शामिल नहीं हैं। माना जा रहा है कि चार्टर्ड एकाउंटेंसी फर्म लोढ़ा एंड कंपनी सरावगी परिवार की मदद कर रही है। हालांकि ईटी इसकी अलग से पुष्टि नहीं कर पाया। सौदे पर बजाज हिंदुस्तान के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। बलरामपुर चीनी मिल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर विवेक सरावगी ने पिछले हफ्ते ऐसी किसी बातचीत से इनकार किया था, लेकिन शुक्रवार को उनका रुख नरम नजर आया। ईटी के संपर्क करने पर उन्होंने न ही डील को लेकर चल रही बातचीत की पुष्टि की और ना ही इससे इनकार किया। उन्होंने कहा, 'मैं सौदे के लिए बातचीत पर ना ही हां कह रहा हूं और ना ही नहीं।' आगे पूछने पर उन्होंने कहा, 'दो बिजनेस घरानों के बीच कारोबारी रणनीति पर बातचीत हो सकती है। हालांकि अब तक कुछ भी नहीं हुआ है।'सौदे की जानकारी रखने वाले सूत्र ने बताया कि बलरामपुर चीनी पर कोई कर्ज नहीं है। ऐसे में लेवरेज डील के लिए कंपनी की बैलेंस शीट का इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरी ओर बजाज हिंदुस्तान की आर्थिक मुश्किलें हाल ही में खत्म हुई हैं। चीनी की कीमतों और वैश्विक शेयर बाजार में एक साथ आई मजबूती से वह कर्ज का बोझ कम करने में कामयाब हुई। इस साल जुलाई में बजाज हिंदुस्तान ने शेयर बेचकर 723 करोड़ रुपए जुटाए थे। इसका इस्तेमाल उसने कर्ज चुकाने में किया। इसके बाद बजाज हिंदुस्तान का डेट इक्विटी रेशियो 2.5:1 से घटकर 1:1 हो गया है। ऐसे में सौदे के लिए खुद कर्ज लेकर बजाज हिंदुस्तान अपनी बैलेंस शीट पर दबाव नहीं बढ़ाना चाहेगी। कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के रिसर्च एनालिस्ट विक्रम सूर्यवंशी ने बताया कि बजाज हिंदुस्तान की उत्तर प्रदेश के प्रतापपुर जिले में तीन मिलें हैं। ये मिलें बलरामपुर चीनी की मिलों के पास हैं। ऐसे में अधिग्रहण से बजाज हिंदुस्तान को मामूली फायदा हो सकता है। एक इनवेस्टमेंट बैंकर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अगर सौदे के लिए दुरुस्त वित्तीय इंतजाम नहीं होते तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। (ई टी हिन्दी)
इस सौदे में मर्चेंट बैंकर शामिल नहीं हैं। माना जा रहा है कि चार्टर्ड एकाउंटेंसी फर्म लोढ़ा एंड कंपनी सरावगी परिवार की मदद कर रही है। हालांकि ईटी इसकी अलग से पुष्टि नहीं कर पाया। सौदे पर बजाज हिंदुस्तान के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। बलरामपुर चीनी मिल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर विवेक सरावगी ने पिछले हफ्ते ऐसी किसी बातचीत से इनकार किया था, लेकिन शुक्रवार को उनका रुख नरम नजर आया। ईटी के संपर्क करने पर उन्होंने न ही डील को लेकर चल रही बातचीत की पुष्टि की और ना ही इससे इनकार किया। उन्होंने कहा, 'मैं सौदे के लिए बातचीत पर ना ही हां कह रहा हूं और ना ही नहीं।' आगे पूछने पर उन्होंने कहा, 'दो बिजनेस घरानों के बीच कारोबारी रणनीति पर बातचीत हो सकती है। हालांकि अब तक कुछ भी नहीं हुआ है।'सौदे की जानकारी रखने वाले सूत्र ने बताया कि बलरामपुर चीनी पर कोई कर्ज नहीं है। ऐसे में लेवरेज डील के लिए कंपनी की बैलेंस शीट का इस्तेमाल किया जा सकता है। दूसरी ओर बजाज हिंदुस्तान की आर्थिक मुश्किलें हाल ही में खत्म हुई हैं। चीनी की कीमतों और वैश्विक शेयर बाजार में एक साथ आई मजबूती से वह कर्ज का बोझ कम करने में कामयाब हुई। इस साल जुलाई में बजाज हिंदुस्तान ने शेयर बेचकर 723 करोड़ रुपए जुटाए थे। इसका इस्तेमाल उसने कर्ज चुकाने में किया। इसके बाद बजाज हिंदुस्तान का डेट इक्विटी रेशियो 2.5:1 से घटकर 1:1 हो गया है। ऐसे में सौदे के लिए खुद कर्ज लेकर बजाज हिंदुस्तान अपनी बैलेंस शीट पर दबाव नहीं बढ़ाना चाहेगी। कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के रिसर्च एनालिस्ट विक्रम सूर्यवंशी ने बताया कि बजाज हिंदुस्तान की उत्तर प्रदेश के प्रतापपुर जिले में तीन मिलें हैं। ये मिलें बलरामपुर चीनी की मिलों के पास हैं। ऐसे में अधिग्रहण से बजाज हिंदुस्तान को मामूली फायदा हो सकता है। एक इनवेस्टमेंट बैंकर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अगर सौदे के लिए दुरुस्त वित्तीय इंतजाम नहीं होते तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। (ई टी हिन्दी)
इस साल 60 हजार करोड़ के पार जा सकता है फूड सब्सिडी बिल
नई दिल्ली : देश में धान की फसल पर सूखा और बाढ़ की दोहरी मार पड़ने के कारण इस साल खाद्य सब्सिडी बिल 60,000 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर सकता है। यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2009-10 के लिए तय बजटीय अनुमान 52,145.44 करोड़ रुपए से कहीं ज्यादा है। किसानों को धान पर 50 रुपए का बोनस देने और बाद में ऊंची कीमत पर चावल आयात की आशंका को देखते हुए इस साल खाद्य सब्सिडी बिल में उछाल तय दिख रही है। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने संकेत दिए कि चावल उत्पादन में करीब 1.70 करोड़ टन की गिरावट की आशंका और बाजार में सप्लाई के मोर्चे पर लगभग 50 लाख टन की कमी को देखते हुए 20-30 लाख टन चावल आयात की जरूरत होगी। कारोबारी विश्लेषकों के मुताबिक, 'मध्यम अवधि में इसका मतलब कम से कम 10 लाख टन चावल का आयात है।'
पिछले कुछ साल से खाद्य सब्सिडी बिल का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। चावल, गेहूं, तिलहन और दाल जैसी प्रमुख कमोडिटी की पैदावार कम होने के बाद प्रमुख अनाजों का समर्थन मूल्य बढ़ाने और ऊंची कीमत पर अनाज आयात करने से खाद्य सब्सिडी बिल बढ़ता जा रहा है। 9 सितंबर तक सरकार ने खाद्य सब्सिडी के लिए 29,604।21 करोड़ रुपए जारी किए थे। समर्थन मूल्य की ऊंची दर बरकरार रखने की वजह से 2001-01 और 2002-03 के बीच खाद्य सब्सिडी बिल में सालाना 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज की गई। कुछ समय इसकी रफ्तार थमी, लेकिन फिर 2007-08 में इसमें 31.2 फीसदी सालाना वृद्धि देखी गई। वहीं 2008-09 में खाद्य सब्सिडी बिल की वृद्धि दर 40 फीसदी रही। 2008-09 में फूड सब्सिडी बिल 50,000 करोड़ तक पहुंच गया था। यह आंकड़ा 2007-08 के 31,546 करोड़ रुपए से 51 फीसदी यानी 18,454 करोड़ रुपए ज्यादा है। यह उस साल के लिए 17,333 करोड़ रुपए के बजटीय प्रावधान को भी पार कर गया। कुछ ऐसी ही सूरत इस साल के फूड बजट के साथ भी दिख रही है क्योंकि सरकार ने धान के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए धान की सभी किस्मों की खरीद पर 50 रुपए के बोनस की घोषणा कर दी है। यह बोनस एसएमपी के अतिरिक्त होगा। यह कदम सरकारी खरीद बढ़ाने के लिहाज से उठाया गया है। अगस्त के अंत में सरकार ने धान की ग्रेड ए और आम किस्मों के लिए क्रमश: 980 रुपए और 950 रुपए प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य घोषित किया था। पिछले साल ये क्रमश: 880 रुपए और 850 रुपए प्रति क्विंटल थे। बोनस का अर्थ यह है कि चावल की आर्थिक लागत (खरीद, भंडारण एवं परिवहन) बढ़ जाएगी। (ई टी हिन्दी)
पिछले कुछ साल से खाद्य सब्सिडी बिल का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। चावल, गेहूं, तिलहन और दाल जैसी प्रमुख कमोडिटी की पैदावार कम होने के बाद प्रमुख अनाजों का समर्थन मूल्य बढ़ाने और ऊंची कीमत पर अनाज आयात करने से खाद्य सब्सिडी बिल बढ़ता जा रहा है। 9 सितंबर तक सरकार ने खाद्य सब्सिडी के लिए 29,604।21 करोड़ रुपए जारी किए थे। समर्थन मूल्य की ऊंची दर बरकरार रखने की वजह से 2001-01 और 2002-03 के बीच खाद्य सब्सिडी बिल में सालाना 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज की गई। कुछ समय इसकी रफ्तार थमी, लेकिन फिर 2007-08 में इसमें 31.2 फीसदी सालाना वृद्धि देखी गई। वहीं 2008-09 में खाद्य सब्सिडी बिल की वृद्धि दर 40 फीसदी रही। 2008-09 में फूड सब्सिडी बिल 50,000 करोड़ तक पहुंच गया था। यह आंकड़ा 2007-08 के 31,546 करोड़ रुपए से 51 फीसदी यानी 18,454 करोड़ रुपए ज्यादा है। यह उस साल के लिए 17,333 करोड़ रुपए के बजटीय प्रावधान को भी पार कर गया। कुछ ऐसी ही सूरत इस साल के फूड बजट के साथ भी दिख रही है क्योंकि सरकार ने धान के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए धान की सभी किस्मों की खरीद पर 50 रुपए के बोनस की घोषणा कर दी है। यह बोनस एसएमपी के अतिरिक्त होगा। यह कदम सरकारी खरीद बढ़ाने के लिहाज से उठाया गया है। अगस्त के अंत में सरकार ने धान की ग्रेड ए और आम किस्मों के लिए क्रमश: 980 रुपए और 950 रुपए प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य घोषित किया था। पिछले साल ये क्रमश: 880 रुपए और 850 रुपए प्रति क्विंटल थे। बोनस का अर्थ यह है कि चावल की आर्थिक लागत (खरीद, भंडारण एवं परिवहन) बढ़ जाएगी। (ई टी हिन्दी)
गन्ने की एफआरपी पर मायावती आगबबूला
केंद्र सरकार द्वारा गन्ने की नई मूल्य व्यवस्था, उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के तहत 129.86 रुपये प्रति क्विंटल का दाम तय करने के अगले ही दिन उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने इस व्यवस्था को गन्ना किसानों और राज्य दोनों के खिलाफ बताते हुए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर राज्य द्वारा गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) तय करने की पुरानी व्यवस्था को बरकरार रखने की मांग की है। साथ ही साफ किया है कि नई व्यवस्था के तहत एफआरपी और एसएपी के अंतर का भुगतान राज्य सरकार नहीं करेगी। यही नहीं, गन्ने के कम दाम को लेकर राज्य में किसानों के आंदोलन को जायज ठहराते हुए मायावती ने कहा कि इस मुद्दे पर राज्य के 40 लाख गन्ना किसानों का आंदोलित होना स्वाभाविक है।
केंद्र की नई व्यवस्था में एफआरपी से अधिक एसएपी तय करने पर राज्यों पर ही इस अंतर के भुगतान की शर्त लागू होने के बाद मायावती पहली मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने इस व्यवस्था पर केंद्र से पुनर्विचार करने के लिए कहा है। उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों के मुताबिक मायावती ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में यह बातें कही हैं। यूपी में राज्य सरकार द्वारा तय 165 और 170 रुपये प्रति क्विंटल के एसएपी के खिलाफ भी किसान आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र द्वारा एफआरपी तय करने के अगले ही दिन मायावती द्वारा इस मुद्दे पर सीधे प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप के लिए कहने से यह बात भी साबित हो रही है कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर भारी राजनीतिक दबाव में है। इसलिए केंद्र की कांग्रेस सरकार को घेरने में वह देर नहीं करना चाहती है।
मायावती ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि वह एफआरपी और एसएपी का अंतर राज्यों द्वारा वहन किए जाने की व्यवस्था पर पुनर्विचार करें। पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा एसएपी तय करने के अधिकार को उच्चतम न्यायलय की भी मान्यता प्राप्त है। राज्य सरकार को विश्वास में लिए बगैर केंद्र द्वारा एफआरपी तय करने पर भी मायावती ने नाराजगी जाहिर की है। प्रदेश में गन्ना किसानों के आंदोलन को भी उन्होंने जायज ठहराया।
देश के तमाम किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत सरकार ने गन्ने का एफआरपी निर्धारित करने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम और शुगर केन कंट्रोल ऑर्डर-1966 में संशोधन कर अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकारों के एसएपी निर्धारण करने के अधिकार को समाप्त कर दिया है। मायावती ने कहा कि पेराई सत्र 2009-10 के लिए भारत सरकार ने गन्ने के लिए 9.50 फीसदी रिकवरी के आधार पर 129.86 रुपये प्रति क्विंटल की एफआरपी निर्धारित की है। वहीं, 9 फीसदी रिकवरी के आधार पर पेराई सत्र 2009-10 के लिए एफआरपी महज 123 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है।
राज्य सरकार ने गन्ने की सामान्य प्रजाति के लिए 165 रुपये प्रति क्विंटल और अगेति प्रजाति के लिए 170 रुपये प्रति क्विंटल का भाव निर्धारित किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की इस नीति से प्रदेश के किसानों में जबरदस्त रोष है और उनका आंदोलित होना स्वाभाविक है। (बिज़नस भास्कर)
केंद्र की नई व्यवस्था में एफआरपी से अधिक एसएपी तय करने पर राज्यों पर ही इस अंतर के भुगतान की शर्त लागू होने के बाद मायावती पहली मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने इस व्यवस्था पर केंद्र से पुनर्विचार करने के लिए कहा है। उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों के मुताबिक मायावती ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में यह बातें कही हैं। यूपी में राज्य सरकार द्वारा तय 165 और 170 रुपये प्रति क्विंटल के एसएपी के खिलाफ भी किसान आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र द्वारा एफआरपी तय करने के अगले ही दिन मायावती द्वारा इस मुद्दे पर सीधे प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप के लिए कहने से यह बात भी साबित हो रही है कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर भारी राजनीतिक दबाव में है। इसलिए केंद्र की कांग्रेस सरकार को घेरने में वह देर नहीं करना चाहती है।
मायावती ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि वह एफआरपी और एसएपी का अंतर राज्यों द्वारा वहन किए जाने की व्यवस्था पर पुनर्विचार करें। पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा एसएपी तय करने के अधिकार को उच्चतम न्यायलय की भी मान्यता प्राप्त है। राज्य सरकार को विश्वास में लिए बगैर केंद्र द्वारा एफआरपी तय करने पर भी मायावती ने नाराजगी जाहिर की है। प्रदेश में गन्ना किसानों के आंदोलन को भी उन्होंने जायज ठहराया।
देश के तमाम किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत सरकार ने गन्ने का एफआरपी निर्धारित करने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम और शुगर केन कंट्रोल ऑर्डर-1966 में संशोधन कर अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकारों के एसएपी निर्धारण करने के अधिकार को समाप्त कर दिया है। मायावती ने कहा कि पेराई सत्र 2009-10 के लिए भारत सरकार ने गन्ने के लिए 9.50 फीसदी रिकवरी के आधार पर 129.86 रुपये प्रति क्विंटल की एफआरपी निर्धारित की है। वहीं, 9 फीसदी रिकवरी के आधार पर पेराई सत्र 2009-10 के लिए एफआरपी महज 123 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है।
राज्य सरकार ने गन्ने की सामान्य प्रजाति के लिए 165 रुपये प्रति क्विंटल और अगेति प्रजाति के लिए 170 रुपये प्रति क्विंटल का भाव निर्धारित किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की इस नीति से प्रदेश के किसानों में जबरदस्त रोष है और उनका आंदोलित होना स्वाभाविक है। (बिज़नस भास्कर)
बलरामपुर चीनी को खरीद सकती है बजाज हिंदुस्थान
देश की सबसे बड़ी चीनी उत्पादक कंपनी बजाज हिंदुस्थान लिमिटेड, उत्तर प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी चीनी उत्पादक कंपनी बलरामपुर चीनी मिल्स में प्रमोटरों की हिस्सेदारी खरीद सकती है। बलरामपुर चीनी में इस समय प्रमोटरों की हिस्सेदारी 36.67 फीसदी है। उद्योग सूत्रों का कहना है कि यह सौदा 180 रुपये प्रति शेयर के भाव पर हो सकता है। सूत्रों ने बताया कि पूरी डील 1,500 से 2,000 करोड़ रुपये के बीच हो सकती है। इस बारे में संपर्क किए जाने पर बजाज हिंदुस्थान ने आधिकारिक तौर पर कुछ भी कहने से मना कर दिया।
घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बलरामपुर चीनी के प्रमोटर अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए पिछले तीन-चार महीने से प्रयास में हैं। इस दौरान अमेरिका की कमोडिटी कंपनी बुंगी, सिंगापुर की ओलम इंटरनेशनल, रेणुका शुगर्स और बजाज हिंदुस्थान से उनकी बातचीत चल रही थी। उद्योग सूत्र बलरामपुर चीनी को एक बेहतरीन कंपनी के रूप में मान रहे हैं। उनका कहना है कि इसीलिए कई कंपनियां इसे खरीदने में लगी हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि बजाज हिंदुस्थान के साथ सौदे की बातचीत अभी शुरूआती दौर में ही है। इस सौदे की खबर शुक्रवार को टीवी चैनल सीएनबीसी टीवी 18 ने भी प्रसारित की थी।
बलरामपुर चीनी मिल्स में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 36.67 फीसदी है। इसमें सबसे ज्यादा 13.57 फीसदी होल्डिंग कमल नयन सरावगी के पास है। कंपनी के मौजूदा एमडी विवेक सरावगी की होल्डिंग 3.48 फीसदी है। संस्थागत निवेशकों के पास 40.37 फीसदी और गैर संस्थागत निवेशकों के पास 22.95 फीसदी शेयर हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में कंपनी की नौ चीनी मिलें हैं, जिनकी कुल पेराई क्षमता करीब 90 हजार टन प्रतिदिन है। दूसरी ओर बजाज हिंदुस्थान की 14 मिलों की कुल क्षमता 1,36,000 टन रोजाना है।
बजाज हिंदुस्थान में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 37।07 फीसदी है। बाकी होल्डिंग में संस्थागत निवेशकों के पास 29.34 फीसदी गैर संस्थागत निवेशकों के पास 32.66 फीसदी शेयर हैं। जहां तक कंपनी की वित्तीय स्थिति की बात है तो अभी कंपनी पर करीब 3,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। कुछ ही दिनों पहले इसने 723 करोड़ रुपये क्यूआईपी के जरिए जुटाए थे। अगर यह डील हो जाती है तो दो लाख टन से अधिक की क्षमता के साथ उत्तर प्रदेश के चीनी बाजार में इसकी हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी के आसपास हो जाएगी। बीएसई में शुक्रवार को बजाज हिंदुस्थान के शेयर 6.08 फीसदी गिरावट के साथ 196.25 रुपये पर बंद हुए। बलरामपुर चीनी मिल्स के शेयर 2.13 फीसदी गिरावट के साथ 149.30 रुपये पर बंद हुए। (बिज़नस भास्कर)
घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बलरामपुर चीनी के प्रमोटर अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए पिछले तीन-चार महीने से प्रयास में हैं। इस दौरान अमेरिका की कमोडिटी कंपनी बुंगी, सिंगापुर की ओलम इंटरनेशनल, रेणुका शुगर्स और बजाज हिंदुस्थान से उनकी बातचीत चल रही थी। उद्योग सूत्र बलरामपुर चीनी को एक बेहतरीन कंपनी के रूप में मान रहे हैं। उनका कहना है कि इसीलिए कई कंपनियां इसे खरीदने में लगी हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि बजाज हिंदुस्थान के साथ सौदे की बातचीत अभी शुरूआती दौर में ही है। इस सौदे की खबर शुक्रवार को टीवी चैनल सीएनबीसी टीवी 18 ने भी प्रसारित की थी।
बलरामपुर चीनी मिल्स में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 36.67 फीसदी है। इसमें सबसे ज्यादा 13.57 फीसदी होल्डिंग कमल नयन सरावगी के पास है। कंपनी के मौजूदा एमडी विवेक सरावगी की होल्डिंग 3.48 फीसदी है। संस्थागत निवेशकों के पास 40.37 फीसदी और गैर संस्थागत निवेशकों के पास 22.95 फीसदी शेयर हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में कंपनी की नौ चीनी मिलें हैं, जिनकी कुल पेराई क्षमता करीब 90 हजार टन प्रतिदिन है। दूसरी ओर बजाज हिंदुस्थान की 14 मिलों की कुल क्षमता 1,36,000 टन रोजाना है।
बजाज हिंदुस्थान में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 37।07 फीसदी है। बाकी होल्डिंग में संस्थागत निवेशकों के पास 29.34 फीसदी गैर संस्थागत निवेशकों के पास 32.66 फीसदी शेयर हैं। जहां तक कंपनी की वित्तीय स्थिति की बात है तो अभी कंपनी पर करीब 3,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। कुछ ही दिनों पहले इसने 723 करोड़ रुपये क्यूआईपी के जरिए जुटाए थे। अगर यह डील हो जाती है तो दो लाख टन से अधिक की क्षमता के साथ उत्तर प्रदेश के चीनी बाजार में इसकी हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी के आसपास हो जाएगी। बीएसई में शुक्रवार को बजाज हिंदुस्थान के शेयर 6.08 फीसदी गिरावट के साथ 196.25 रुपये पर बंद हुए। बलरामपुर चीनी मिल्स के शेयर 2.13 फीसदी गिरावट के साथ 149.30 रुपये पर बंद हुए। (बिज़नस भास्कर)
मिलों की मांग बढ़ने से कच्चे जूट के दाम 20 फीसदी बढ़े
मिलों की मांग बढ़ने के कारण कच्चे जूट (टीडी-5 किस्म) के दाम 1900-2000 रुपये से बढ़कर 2350-2450 रुपये प्रति क्विंटल हो चुके हैं। खरीफ सीजन के अनाज के लिए जूट बैग की मांग बढ़ने की वजह से जूट मिलों ने कच्चे जूट की खरीदारी बढ़ा दी हैं। वहीं चालू सीजन के दौरान जूट का उत्पादन पिछले सीजन के मुकाबले बढ़कर करीब एक करोड़ गांठ (180 किलोग्राम) होने का अनुमान हैं।गेंगेज जूट प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर अभिषेक पोद्दार ने बिजनेस भास्कर को बताया कि खरीफ विपणन सीजन में सरकारी खरीद के लिए जरूरी जूट बैग की पूर्ति करने के लिए जूट मिलों ने कच्चे जूट की खरीदारी बढ़ा दी है। इस वजह से कच्चे जूट के दाम पिछले दो माह के दौरान करीब 20 फीसदी बढ़ चुके हैं। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन के चैयरमेन संजय कजरिया का कहना है कि मिलों की मांग के अलावा जूट वायदा कारोबार में सट्टेबाजी के चलते भी इसके मूल्यों में तेजी को बल मिला हैं। आने वाले दिनों में इसकी कीमतों में गिरावट आ सकती हैं।पोद्दार का कहना है कि जूट वायदा कारोबार में नवंबर अनुबंध न होने के कारण इसके मूल्यों में कमी आ सकती हैं। उनका कहना है पिछले चार दिनों के दौरान ही जूट के मूल्यों में 50 रुपये प्रति क्विंटल की कमी आई हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में जूट अक्टूबर वायदा के दाम पिछले चार दिनों के दौरान 2404.50 रुपये से घटकर 2369 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। हालांकि पिछले दो माह के दौरान एमसीएक्स में अक्टूबर वायदा के दाम 1992.50 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2369 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं।सरकार ने जूट के उत्पादन में आ रही कमी के मद्देनजर जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की है। सीजन 2009-10 के लिए सरकार ने एमएसपी को दस फीसदी बढ़ाकर 1375 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। चालू सीजन के दौरान देश में जूट का उत्पादन एक करोड़ गांठ से अधिक होने की संभावना है। सीजन 2008-09 के दौरान देश में 99 लाख गांठ जूट का उत्पादन हुआ था।उल्लेखनीय है कि नई फसल के पहले जुलाई में पिछली समान अवधि के मुकाबले जूट के दाम दोगुने बढ़कर 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक चले गए थे। इसकी कीमतों में वृद्धि का कारण वायदा कारोबार में सट्टेबाजी था। (बिज़नस भास्कर)
नई सप्लाई की कमी से फिर बढ़ने लगे प्याज के दाम
महाराष्ट्र से नई फसल के प्याज की आवक बहुत धीमी होने के कारण इसके दाम फिर से बढ़ने लगे हैं। इसके दाम पिछले दस दिनों के दौरान दिल्ली में 25 फीसदी बढ़कर 2100 रुपये प्रति क्विंटल तक हो चुके हैं। जबकि नासिक में इसके दाम 600-1000 रुपये से बढ़कर 800- 1400 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी को देखते हुए भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) ने इसके न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को 145 डॉलर बढ़ाने की तैयारी कर ली है।पीएम ऑनियन कंपनी आजादपुर के मालिक पीएम शर्मा ने बिजनेस भास्कर को बताया कि प्याज की नई सप्लाई के जोर नहीं पकड़ने के कारण इसके मूल्यों में इजाफा हो रहा हैं। उनका कहना है कि इस बार प्याज की नई आवक 20-25 दिन की देरी से शुरू हुई हैं। जो अभी भी धीमी चल रही है। मंडी में नई प्याज के महज 20 ट्रक आ रहे हैं। मंडी में इसकी कुल सप्लाई 100 ट्रकों की है। नाफेड के एक अधिकारी ने अनुसार इसके मूल्यों को नियंत्रित हेतु घरेलू बाजार में उपलब्धता बढ़ाने के लिए एमईपी को 145 डॉलर से बढ़ाकर 445 डॉलर प्रति टन करने पर सहमति बन गई है। जल्दी ही इस बारे में फैसला हो जाएगा। एमईपी बढ़ाने की घोषणा तीन नवंबर को होने की संभावना है।प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह फसल कमजोर होना हैं। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के अनुसार प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में सितंबर माह के अंत में भारी बारिश होने के कारण 15-25 फीसदी प्याज की फसल को नुकसान होने की आशंका हैं। आंध्र प्रदेश में 25 फीसदी और कर्नाटक में 35 फीसदी प्याज की फसल खराब हो गई है। हालांकि मध्य प्रदेश और राजस्थान में प्याज का अधिक उत्पादन होने की संभावना हैं। वर्तमान में खरीफ प्याज की सप्लाई राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से हो रही है। नई प्याज के अलावा अधिक मात्रा में स्टोर प्याज की सप्लाई मंडियों में हो रही हैं। देश में प्याज का स्टॉक घटकर 25 फीसदी यानि 5 लाख टन ही रह गया है। गौरतलब है कि चालू माह के शुरूआत में अचानक प्याज के दाम दोगुने होने के कारण नेफेड ने अक्टूबर माह के लिए एमईपी में 85 डॉलर प्रति टन का इजाफा किया था। इससे पहले अक्टूबर माह के लिए इसे सितंबर के स्तर पर रखा गया था। अक्टूबर में एमईपी बढ़ने के बाद प्याज के मूल्यों में गिरावट भी आई थी। (बिज़नस भासकर)
चिली में बीएचपी की खदान में हड़ताल से कॉपर उत्पादन गिरा
चिली में स्पेंस कॉपर माइन में कर्मचारियों की हड़ताल जारी रहने से कॉपर की वैश्विक आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। खदान में उत्पादन घटकर काफी कम रह गया है। वहीं कर्मचारियों का कहना है कि इससे बीएचपी बिलीटन के प्रबंधन पर विवाद सुलझाने का दबाव बढ़ गया है। कंपनी केअधिकारियों ने बताया कि हड़ताल के कारण स्पेंस में उत्पादन घटकर न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है, ऐसे में कॉपर सप्लाई पर संकट मंडराने लगा है। इससे कॉपर की वैश्विक आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है। गत वर्ष इस खदान से 1,65,000 टन कॉपर कैथोड का उत्पादन किया गया था। कंपनी के 560 कर्मचारियों की यूनियन के प्रेसीडेंट अंद्रेस रमिरेज ने कहा कि वे अपने रुख पर अडिग हैं और बातचीत के लिए कंपनी के रुख का इंतजार कर रहे हैं।हालांकि बीएचपी के अधिकारियों ने उत्पादन और विवाद को लेकर बातचीत की मौजूदा स्थिति पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। रमिरेज ने कहा कि खदान के 1,000 से भी ज्यादा अप्रत्यक्ष कर्मचारियों ने भी हड़ताल पर जाने की धमकी दी है, यदि कंपनी ने उनका पूरा भुगतान नहीं किया। ये कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं। हालांकि हड़ताल के चलते उनकी सेवाओं की जरूरत कंपनी को कम हो गई है। उन्होंने कहा कि उन्हें सोमवार तक कॉन्ट्रेक्टर्स को लेकर कंपनी अपनी राय की घोषणा कर देगी। कंपनी के मुताबिक खदान में 954 प्रत्यक्ष कर्मचारी हैं, जबकि 1,000 से ज्यादा कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारी हैं। स्पेंस में कॉन्ट्रैक्ट को लेकर बातचीत जल्द ही शुरू होने की संभावना दिखाई दे रही है क्योंकि चिली की अन्य खदानों में इसी वर्ष के आखिर तक या अगले वर्ष के शुरू में इस पर बातचीत शुरू हो सकती है। (बिज़नस भास्कर)
अमेरिका में मौसम सुधरने से सीबॉट में सोयाबीन वायदा नरम
अमेरिका में सोयाबीन और मक्का के उत्पादक क्षेत्र मिडवेस्ट क्षेत्र में मौसम सुधरने से इनके दाम फ्यूचर बाजार में नरम दिखाई दिए। गुरुवार को तेजी आने के बाद बिकवाली का दबाव आ गया। अमेरिका में आर्थिक सुधार संबंधी चिंता उस समय कुछ कम हो गई जब तीसरी तिमाही के आंकड़ों ने अनुमान से कहीं बेहतर तस्वीर पेश की। अमेरिका में तीसरी तिमाही की आर्थिक विकास दर 3.5 फीसदी रही। इससे अनाज समेत सभी बाजारों में तेजी का रुख बना। कच्चा तेल महंगा होने से भी अनाजों की तेजी को बल मिला। नेशनल आस्ट्रेलिया बैंक के कमोडिटी प्रमुख टिम ग्लास ने कहा कि कई फसलों के लिए अभी भी आवश्यकता से ज्यादा नमी है। अभी भी बारिश हो रही है। हालांकि हालत पहले जैसे नहीं हैं। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) में गेहूं के दिसंबर डिलीवरी भाव 0.5 फीसदी गिरकर 5.03 डॉलर प्रति बुशेल रह गए। गुरुवार को इसमें 1.8 फीसदी की तेजी आई थी। इससे पहले चार दिन तक इसमें लगातार गिरावट रही थी। आज की गिरावट के बाद गेहूं दिसंबर वायदा एक सप्ताह में 7 फीसदी गिर चुका है। नवंबर डिलीवरी सोयाबीन 0.61 फीसदी गिरकर 9.80 सेंट प्रति बुशेल रह गई। सोयाबीन की सप्लाई में सुधार होने के कारण इसकी तेजी थमी है। आज के माहौल में कोई खरीदार बड़ा सौदा करने से बच रहा है। नवंबर डिलीवरी सोयाबीन में अगले एक सप्ताह में 2 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। सीबॉट में दिसंबर डिलीवरी मक्का 0.25 फीसदी नरमी के साथ 3.79 डॉलर प्रति बुशेल रह गया। इसमें गुरुवार को 2.8 फीसदी की तेजी आई थी। मिसीसिपी क्षेत्र में बाढ़ आने से फसल को नुकसान होने की आशंका में तेजी का दौर बना था। लेकिन शुक्रवार को इसमें बिकवाली का दबाव आने से गिरावट का रुख बन गया। (बिज़नस भास्कर)
भारी आवक से थम नहीं रही है पूसा धान के भाव में गिरावट
चालू खरीफ सीजन में पूसा-1121 धान की कीमतों में गिरावट से किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। पिछले एक सप्ताह में इसकी कीमतों में करीब 400 रुपये गिरावट आकर भाव 1850-1900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। भारतीय बासमती को ईरान द्वारा क्लीन चिट मिलने के बावजूद भाव में गिरावट चिंताजनक है। भारत में पूसा-1121 की पैदावार में बढ़ोतरी को देखते हुए विदेशी आयातक अभी इंतजार करों व देखों की नीति अपना रहे हैं। साथ ही घरेलू बाजार में पुराने माल का स्टॉक ज्यादा है जिससे गिरावट को बल मिला है।मैसर्स ट्राईस्टार ओवरसीज के डायरेक्टर अमित गर्ग ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू खरीफ सीजन में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पूसा-1121 धान की बुवाई 40-50 फीसदी ज्यादा क्षेत्रफल में की गई है क्योंकि पिछले साल पिछले साल किसानों को इसका अच्छा दाम मिला था। उत्पादक मंडियों में नवंबर महीने के शुरू में इसके भाव 2400-2500 रुपये प्रति क्विंटल थे। लेकिन इस साल स्टॉकिस्टों के पास पूसा-1121 चावल का बकाया स्टॉक भी ज्यादा बचा हुआ है तथा उनकी बिकवाली का दबाव होने से भी पूसा-1121 धान की कीमतें घट रही है। ईरान ने भारतीय बासमती में आर्सेनिक, कैडमियम और लेड की हानिकारक मात्रा की मौजूदगी का जो आरोप लगाया था, उसे वहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने खारिज कर दिया है। लेकिन भारत में पैदावार में बढ़ोतरी होने के कारण अभी विदेशी आयातक नए सौदे नहीं कर रहे हैं। फसल आठ-दस दिन लेट होने से नवंबर में पूसा-1121 धान की आवक का दबाव बनना शुरू हो जाएगा, जिससे मौजूदा कीमतों में और भी 50-75 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। लेकिन नवंबर-दिसंबर महीने में निर्यात सौदे में बढ़ोतरी होने से भाव तेज होने की संभावना है। वर्तमान में पूसा-1121 चावल के भाव विदेशी बाजार में 1200- 1300 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं। कैथल मंडी स्थित मैसर्स खुरानिया एग्रो के प्रोपराइटर राम विलास खुरानिया ने बताया कि हरियाणा और पंजाब की मंडियों में पूसा-1121 धान की आवक बढ़नी शुरू हो गई है लेकिन चावल मिलों और स्टॉकिस्टों की मांग न होने से भाव घट रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में इसकी कीमतों में 400 रुपये की गिरावट आकर भाव 1850-1900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। जून-जुलाई और अगस्त महीने के मध्य तक बारिश की भारी कमी से किसानों की लागत तो बढ़ी है लेकिन भाव पिछले साल के मुकाबले 500-600 रुपये प्रति क्विंटल नीचे चल रहा है जिससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। उत्पादक मंडियों में स्टॉकिस्टों के पास पुराना स्टॉक भी बचा हुआ है जिससे स्टॉकिस्ट अभी खरीद नहीं कर रहे हैं। अगले आठ-दस दिनों में हरियाणा और पंजाब की मंडियों में आवक का दबाव बनेगा ही, साथ ही उत्तर प्रदेश की मंडियों में भी आवक शुरू हो जाएगी जिससे मौजूदा भाव में और भी 50-75 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। rana@businessbhaskar।netधान पर 50 रुपये बोनस को किसानों ने नकारा लुधियाना। केंद्र सरकार द्वारा धान पर 50 रुपए बोनस दिए जाने की घोषणा से पंजाब के किसान खुश नहीं हैं। भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) ने किसानों को अपील की है कि वे पंजाब में धान व गेहूं का रकबा कम कर दें। अनाज की कमी होने के बाद ही केंद्र सरकार अनाज का सही मूल्य पहचानेगी। भारतीय किसान यूनियन (लक्खोवाल) के अध्यक्ष एवं मंडी बोर्ड के चेयरमैन अजमेर सिंह लक्खोवाल के मुताबिक केंद्र ने सिर्फ 50 रुपए बोनस देकर किसानों को निराश किया है। किसान 200 रुपए प्रति क्विंटल बोनस की उम्मीद लगाए हुए थे। केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने भी यहां दौर में अच्छा बोनस देने का आश्वासन दिया था। (ब्यूरो) (बिज़नस भास्कर)
रात मे ट्रेडिंग का समय बढ़ाया जाए : एमसीएक्स
देश के सबसे बड़े कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स ने वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) से सराफा और ऊर्जा क्षेत्र की कमोडिटी में फ्यूचर ट्रेडिंग की अवधि मध्य रात्रि से भी आगे बढ़ाने की अनुमति मांगी है। एमसीएक्स का कहना है कि सराफा और ऊर्जा कमोडिटी के वैश्विक संदर्भ को देखते हुए ऐसा किया जाना चाहिए। फिलहाल घरेलू कमोडिटी एक्सचेंज गर्मियों में सुबह 10 बजे खुलते हैं और रात 11.30 तक कारोबार होता है। सर्दियों में रात को 11.55 बजे तक कारोबार होता है। मालूम हो कि न्यूयॉर्क मर्केटाइल एक्सचेंज (नायमैक्स) जैसे वैश्विक एक्सचेंजों और उसके क्षेत्रीय कमोडिटी एक्सचेंजों में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग 24 घंटे जारी रहती है। एमसीएक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ लैमोन रुटेन ने शुक्रवार को बताया कि उन्होंने एफएमसी को पत्र लिखकर सोने और चांदी जैसी अंतरराष्ट्रीय संदर्भ वाली कमोडिटी में कारोबार मध्य रात्रि के बाद भी करने की अनुमति मांगी है। उन्होंने कहा कि एमसीएक्स में सोने और क्रूड ऑयल के भाव वैश्विक संकेतकों से प्रभावित होते हैं, ऐसे में कोई कारण नहीं बनता कि इन कमोडिटीज में कारोबार की अवधि रात 11.55 के बाद न बढ़ाई जाए। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि एमसीएक्स सराफा और ऊर्जा के कारोबार में कितने घंटों की बढ़ोतरी चाहता है। रुटेन ने कहा कि कारोबार के घंटे बढ़ाए जाने से भारतीय कारोबारियों को फायदा होगा। वे वैश्विक बाजार में जारी उतार-चढ़ाव का लाभ उठा सकेंगे। इससे कीमतें तय करते समय घरेलू और वैश्विक बाजार की कीमतों में भी बेहतर तालमेल हो सकेगा। इंडिया बुल्स और एमएमटीसी द्वारा स्थापित किए गए इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज (आईसीईएक्स) ने हाल ही में एफएमसी से मांग की थी कि ट्रेडिंग की टाइमिंग को अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी एक्सचेंजों के मुताबिक तय की जाए। एमसीएक्स की वायदा बाजार में हिस्सेदारी 80 फीसदी है और वर्ष 2009-10 की पहली छमाही में उसका टर्नओवर 28,38,399 करोड़ रुपये रहा है। (बिसनेस भास्कर)
30 अक्तूबर 2009
भारत में ड्यूटी फ्री चावल आयात की मंजूरी से विश्व बाजार सक्रिय
बाढ़ और सूखे से भारत ही नहीं चीन और थाईलैंड में भी लाखों टन चावल की पैदावार प्रभावित हुई है। इससे दुनिया के सबसे गरीब देशों के सामने चावल की अत्यधिक ऊंची कीमत और कमी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। बड़े उत्पादक देश उत्पादन में कमी को पूरा करने के लिए क्या कदम उठाते हैं, इसी से गरीब देशों को संकट से राहत मिल पाएगी। भारत ने पिछले दिनों ड्यूटी फ्री चावल आयात की अनुमति दे दी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार इस फैसले खासा प्रभावित होता दिख रहा है।परंपरागत रूप से विश्व के शीर्ष चावल निर्यातकों में शामिल भारत पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्रों में सूखे से भारी नुकसान के कारण उत्पादन में होने वाली कमी पूरा करने के लिए भारत अगले वर्ष 11 से 38 लाख टन तक चावल आयात कर सकता है। अमेरिकी चावल फेडरेशन के वाइस प्रेसीडेंट जिम गुइन के अनुसार विश्व के चावल बाजार के लिए भारत में उत्पादन गिरना बहुत महत्वपूर्ण घटना है। भारत अपने यहां सुलभता बढ़ाने के लिए चावल का आयात शुरू कर चुका है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार का समीकरण ही बदल गया है। एक प्रमुख निर्यातक देश (भारत) अब आयातक बन चुका है। भारत का आयात बाजार में उतरना इसलिए भी परेशान करने वाली बात है क्योंकि थाईलैंड के ग्रेड बी चावल में तेजी आ चुकी थी। पिछले महीने इसके भाव 530 डॉलर प्रति टन थे। हालांकि पिछले वर्ष के खाद्यान्न संकट के दौरान थाई राइस के भाव 1,000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गए थे। मौजूदा भाव उससे काफी कम हैं। गुइन ने कहा कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिहाज से दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चीन निर्यात करेगा या नहीं। थाईलैंड के बंपर स्टॉक की विश्व बाजार में बिक्री पर भी काफी निर्भरता है। चीन के पास विश्व के चावल का करीब 50 फीसदी स्टॉक है और वह बीच-बीच में निर्यात करता रहता है। यूएस राइस प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट और सीईओ वाट रॉबट्र्स ने एक अंतरराष्ट्रीय चावल सम्मेलन के दौरान कहा कि वैश्विक बाजार में खाद्यान्न संकट हालात एक बार फिर बनते दिखाई दे रहे हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि चावल के कम उत्पादन का तात्कालिक हल ढूंढने के लिए भारत गेहूं के ज्यादा उपभोग की ओर लौट सकता है। हालांकि गेहूं का उपभोग बढ़ाने से भी वह चावल आयात को नहीं रोक पाएगा। (बिज़नस भास्कर)
सरकारी गेहूं बिक्री मूल्य ऊंचा तय होने से तेजी
केंद्र सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं का रिजर्व मूल्य 1380.75 रुपये प्रति क्विंटल (लुधियाना में) तय किया है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार लुधियाना में गेहूं के रिजर्व मूल्य के आधार पर हर राज्य का रिजर्व बिक्री मूल्य भाड़ा व टैक्स जोड़कर तय होगा। लुधियाना में रिजर्व बिक्री मूल्य तय करने के लिए गेहूं खरीद लागत के अलावा भाड़ा, टैक्स और मासिक स्टोरेज चार्ज शामिल किया गया है। सरकार खुले बाजार में अक्टूबर से दिसंबर तक पांच लाख टन गेहूं की बिक्री करेगी। सरकार रिजर्व मूल्य के ऊपर निविदा में मिले भाव पर गेहूं की बिक्री करेगी। खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार 30 अक्टूबर को निविदा मांगे जाने की संभावना है क्योंकि नवंबर महीने के लिए इन भावों में 17 रुपये प्रति क्विंटल कैरी-ओवर कॉस्ट और जुड़ जाएगी। रोलर फ्लोर मिलर्स फैडरेशन ऑफ इंडिया की सचिव वीणा शर्मा ने बताया कि अक्टूबर महीने के लिए दिल्ली में गेहूं के दाम 1404 रुपये प्रति क्विंटल होंगे। निविदा के माध्यम से दिल्ली की फ्लोर मिलों में अन्य खर्चे जोड़कर गेहूं के पहुंच भाव लगभग 1450 रुपये प्रति क्विंटल होंगे।लुधियाना की मिलों को खुले बाजार बिक्री योजना का गेहूं 1460-1475 रुपये और हरियाणा की मिलों में 1460 से 1480 रुपये प्रति क्विंटल (स्थानीय कर मिलाकर) होगा। इसी तरह से बंगलुरू की फ्लोर मिलों में ओएमएसएस का गेहूं लोकल भाड़ा जोड़कर करीब 1600 रुपये क्विंटल होगा। केंद्र सरकार द्वारा ओएमएसएस के तहत गेहूं का ऊंचा दाम तय किए जाने के कारण गुरुवार को गेहूं की कीमतों में 80-100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज गई। दिल्ली थोक बाजार में गेहूं के दाम बढ़कर 1390-1400 रुपये और बंगलुरू में 1540-1550 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। एनसीडीईएक्स में फरवरी वायदा अनुबंध चार फीसदी की तेजी के साथ 1,367 रुपये प्रति क्विंटल रहे। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
नए गुड़ की सप्लाई बढ़ने व मांग घटने से भाव 20 फीसदी गिरे
उत्पादक मंडियों में गुड़ की दैनिक आवक बढ़ने और गुजरात, राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा की मांग कमजोर होने से पिछले पंद्रह दिनों में करीब 450-500 रुपये प्रति क्विंटल (करीब 20 फीसदी) की गिरावट दर्ज की गई। दिल्ली थोक बाजार में बुधवार को गुड़ चाकू के भाव घटकर 2500-2550 रुपये और पेड़ी के भाव 2450-2500 रुपये प्रति क्विंटल रह गये। उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें चलने में देरी होने की संभावना से गुड़ में गिरावट की धारणा मजबूत हुई है। वहां किसान गन्ने की नई मूल्य प्रणाली फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) का विरोध कर रहे हैं। मैसर्स देशराज राजेंद्र कुमार के प्रोपराइटर देशराज ने बताया कि उत्पादक मंडियों में गुड़ की दैनिक आवक बढ़ रही है लेकिन प्रमुख खपत राज्यों गुजरात, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की मांग कमजोर है। जिससे कीमतों में गिरावट आ रही है। उत्तर प्रदेश जो कि गुड़ उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य है, में गन्ने की नई मूल्य प्रणाली एफआरपी का किसानों द्वारा विरोध किया जा रहा है। ऐसे में वर्ष 2009-10 में चीनी का पेराई सीजन देर से शुरू होने की संभावना है। पहले उम्मीद थी कि चीनी मिलें नवंबर के प्रथम सप्ताह में पेराई शुरू करेगी लेकिन अब इसमें और 15-20 दिन की देरी हो सकती है। ऐसे में कोल्हू संचालकों को गन्ने की उपलब्धता अच्छी रहेगी। जिससे गुड़ के मौजूदा भाव में और भी 50-100 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। मुजफ्फरनगर के गुड़ व्यापारी हरिशंकर मुंदड़ा ने बताया कि मंडी में गुड़ की दैनिक आवक बढ़कर 15-17 हजार कट्टों (एक कट्टा 40 किलो) की हो गई है। मंडी में गुड़ चाकू के भाव घटकर बुधवार को 900-950 रुपये, पेड़ी के भाव 830-840 रुपये और खुरपापाड़ गुड़ के भाव घटकर 800-810 रुपये प्रति 40 किलो रह गए। पिछले दो दिनों में ही इसकी कीमतों में करीब 100-125 रुपये प्रति 40 किलो की गिरावट आ चुकी है। हालांकि गन्ने की बुवाई पिछले साल से कम है लेकिन जब तक चीनी मिलों में गन्ने की पेराई शुरू नहीं होती है, तब तक कोल्हुओं में गन्ने की आवक का दबाव रहेगा। जिससे गुड़ की मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। उन्होंने बताया कि अभी जो गुड़ आ रहा है, वह स्टॉक में रखने लायक नहीं है इसलिए बिकवाली भी बराबर आ रही है। नवंबर महीने के आखिर में गुड़ में स्टॉकिस्टों की खरीद बननी शुरू होगी तथा तब तक चीनी मिलों में भी गन्ने की पेराई शुरू हो जाएगी। जिससे दिसंबर महीने में गुड़ की कीमतों में तेजी की संभावना है।rana@businessbhaskar।net (आर अस राणा)
धान पर 50 रुपये बोनस व गन्ने का एफआरपी तय
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने चालू विपणन सीजन में धान की सरकारी खरीद पर 50 रुपये का बोनस देने का फैसला किया है। चालू सीजन के लिए सरकार ने धान की सामान्य किस्म का न्यू्नतम समर्थन मूल्य 950 रुपये और ग्रेड ए के लिए 980 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। किसानों को 50 रुपये का बोनस एमएसपी के ऊपर मिलेगा। पहली अक्टूबर से शुरू हुए खरीद सीजन में बोनस के बाद किसानों को ग्रेड ए धान का भाव 1,030 रुपये और सामान्य धान का 1,000 रुपये प्रति क्विंटल मिलेगा। (बिज़नस भास्कर)
गन्ना मूल्य पर किसान व सरकार आमने-सामने
चालू पेराई सीजन (2009-10) में गन्ने की कीमतों को लेकर उत्तर प्रदेश के किसानों ने आंदोलन तेज कर दिया है। केंद्र सरकार की नई मूल्य प्रणाली फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) को किसानों ने नकार दिया है। किसान संगठनों ने गुरुवार को बरेली में बैठक कर एकमत से निर्णय लिया कि वे चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों को 280 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कम भाव पर गन्ना नहीं देंगे। ऐसा नहीं करने पर किसान गन्ना विकास सहकारी समिति से अपनी सदस्यता छोड़ने की हद तक जाने को तैयार हैं। एक नवंबर को किसान संगठन गढ़ मुक्तेश्वर में बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे।लंबे समय से गन्ना किसानों के हितों की लड़ाई लड़ रहे राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वी एम सिंह ने बरेली से बिजनेस भास्कर को फोन पर बताया कि किसानों ने गन्ने का बिक्री मूल्य 280 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इस भाव पर अगर चीनी मिलें गन्ने की खरीद करती हैं तब तो ठीक है, नहीं तो किसान चीनी मिलों को गन्ना नहीं बेचेंगे। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष महेंद्र टिकैत ने फोन पर बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो किसान गन्ना विकास सहकारी समिति की सदस्यता को भी छोड़ देंगे। गन्ना किसानों और मिलों के बीच गतिरोध बनने से चीनी मिलों में गन्ने की पेराई देर से शुरू होने की आशंका बन गई है। इसका असर चीनी की कीमतों पर पड़ना शुरू हो गया है। चीनी के एक्स-फैक्ट्री मूल्य बढ़कर 3100 रुपये और थोक बाजार में 3200 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर हो गए हैं। फुटकर बाजार में भी चीनी के दाम 34-35 रुपये प्रति किलो से ज्यादा हो गए हैं।चालू खरीद सीजन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 162।50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। वहीं, पंजाब और हरियाणा में राज्य सरकारों ने एसएपी 170-180 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। एफआरपी के तहत गन्ने का समर्थन मूल्य 129.84 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। केंद्र सरकार ने तय किया है कि एफआरपी से अधिक दाम तय करने की स्थिति में राज्य सरकारों को ही यह अधिक कीमत किसानों को देनी होगी। गुरुवार को ही केंद्र ने गन्ने का एफआरपी 129.84 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। ऐसे में इन राज्यों को 50 रुपये प्रति क्विंटल तक किसानों को देना होगा जिसके लिए राज्य तैयार नहीं हैं। इसके चलते आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर किसानों और चीनी मिलों के बीच भी टकराव बढ़ने की आशंका है क्योंकि कुछ मिलें एफआरपी से ज्यादा दाम देने की इच्छुक नहीं हैं। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
वैश्विक संकेतों से सोने में मजबूती, चांदी पस्त
नई दिल्ली : शादी-विवाह के मौजूदा सीजन को देखते हुए स्टॉकिस्टों और ज्वैलरी निर्माताओं की तरफ से जोरदार खरीदारी के कारण गुरुवार को सोने में अच्छी तेजी देखने को मिली। मजबूत वैश्विक संकेतों से भी सोने को समर्थन मिला और सोने की कीमतें 105 रुपए उछलकर 16,165 रुपए प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुंच गईं जबकि दूसरी तरफ गुरुवार को भी चांदी पर दबाव बना रहा और इसमें 300 रुपए की गिरावट आई। ताजा आवक और सिक्का निर्माताओं तथा औद्योगिक इकाइयों की ओर से कमजोर मांग के कारण गुरुवार को चांदी 26,350 रुपए प्रति किलो पर आ गई। पिछले तीन सत्रों में चांदी में 900 रुपए से अधिक की गिरावट आ चुकी है। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक बाजार में सोने की कीमत अपने तीन सप्ताह के न्यूनतम स्तर पर जाने के बाद गुरुवार को तेज बनी रही, इससे निवेशकों का रुझान सोने की तरफ बढ़ा। एशिया में सोना 0.4 फीसदी उछलकर 1,031.68 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। इसका असर घरेलू बाजार में देखने को स्टैंडर्ड गोल्ड और ऑर्नामेंट्स, दोनों में 105-105 रुपए की तेजी आई। स्टैंडर्ड गोल्ड 16,165 रुपए प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया जबकि ऑर्नामेंट्स 16,015 रुपए प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। सॉवरेन की कीमतों में 25 रुपए की तेजी आई और वह 13,025 रुपए प्रति आठ ग्राम पर पहुंच गया। चांदी तैयार की कीमतों पर दबाव बनने से उसमें 300 रुपए की गिरावट आई। चांदी तैयार 26,350 रुपए प्रति किलो तो साप्ताहिक डिलीवरी वाली चांदी के भाव 370 रुपए गिरकर 26,000 रुपए प्रति किलो पर आ गए। हालांकि चांदी के सिक्कों में कोई उतार-चढ़ाव नहीं हुआ। (ई टी हिन्दी)
कम मिठास से होगा यूपी का गन्ना राख!
लखनऊ October 29, 2009
उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान राज्य में गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) के खिलाफ आंदोलन चलाने की तैयारी कर रहे हैं।
किसानों का कहना है कि पेराई सत्र 2009-10 के लिए वे इतनी 'कम कीमत' पर मिलों को गन्ने की आपूर्ति नहीं करेंगे। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता महेंद्र सिंह टिकैत और राष्ट्रीय किसान मजूदर संगठन (आरकेएमएस) के नेता वी एम सिंह की अगुआई में बरेली शहर में आज गन्ना किसान लामबंद हुए।
भाकियू नेता राकेश टिकैत ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हमने तय किया है कि राज्य में कच्ची चीनी नहीं आने देंगे और ऐसी चीनी को जला दिया जाएगा।' राज्य सरकार ने गन्ने के एसएपी में पिछले साल के मुकाबले 25 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया है।
लेकिन गन्ना किसानों को यह नाकाफी लगा और गन्ना किसान गन्ने की कीमत 280 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग कर रहे हैं। वी एम सिंह ने कहा, 'हम इस कीमत पर मिलों को गन्ने की आपूर्ति नहीं कर सकते। चाहे हमें खेतों में तैयार खड़ी फसल को ही आग क्यों न लगानी पड़े।'
कड़वा हुआ गन्ना
जला देंगे पर मिलों को इस कीमत पर गन्ना नहीं देंगे280 रुपये प्रति क्विंटल मांग रहे हैं गन्ने की कीमत (बीएस हिन्दी)
उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान राज्य में गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) के खिलाफ आंदोलन चलाने की तैयारी कर रहे हैं।
किसानों का कहना है कि पेराई सत्र 2009-10 के लिए वे इतनी 'कम कीमत' पर मिलों को गन्ने की आपूर्ति नहीं करेंगे। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता महेंद्र सिंह टिकैत और राष्ट्रीय किसान मजूदर संगठन (आरकेएमएस) के नेता वी एम सिंह की अगुआई में बरेली शहर में आज गन्ना किसान लामबंद हुए।
भाकियू नेता राकेश टिकैत ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हमने तय किया है कि राज्य में कच्ची चीनी नहीं आने देंगे और ऐसी चीनी को जला दिया जाएगा।' राज्य सरकार ने गन्ने के एसएपी में पिछले साल के मुकाबले 25 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया है।
लेकिन गन्ना किसानों को यह नाकाफी लगा और गन्ना किसान गन्ने की कीमत 280 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग कर रहे हैं। वी एम सिंह ने कहा, 'हम इस कीमत पर मिलों को गन्ने की आपूर्ति नहीं कर सकते। चाहे हमें खेतों में तैयार खड़ी फसल को ही आग क्यों न लगानी पड़े।'
कड़वा हुआ गन्ना
जला देंगे पर मिलों को इस कीमत पर गन्ना नहीं देंगे280 रुपये प्रति क्विंटल मांग रहे हैं गन्ने की कीमत (बीएस हिन्दी)
दालों में बनी रहेगी मजबूती : खटुआ
हैदराबाद October 29, 2009
दालों की कीमतें, खासकर अरहर और उड़द में तेजी अभी भी बनी रहेगी। वायदा बाजार आयोग के अध्यक्ष बीसी खटुआ ने कहा कि इसकी प्रमुख वजह यह है कि सूखे और बाढ़ से फसलें प्रभावित हुई हैं।
बहरहाल इस समय थोक बाजार में अरहर दाल 55 रुपये किलो और खुदरा बाजार में 90 रुपये किलो के ऊपर बिक रही है। संवाददाताओं से बातचीत करते हुए खटुआ ने कहा कि अनाज के मामले में ऐसा होने की उम्मीद नहीं है क्योंकि चावल उत्पादन में आई कमी की भरपाई गेहूं की फसल से हो जाएगी। दालों का कोई विकल्प नहीं है।
उन्होंने कहा कि इन सबका अलग अलग महत्व है और दालों का कोई विकल्प नहीं है। फसलों की कटाई शुरू हो गई है, लेकिन अभी भी सही स्थिति सामने नहीं आ रही है। खासकर अरहर दाल के मामले में।
उन्होंने कहा कि अगर उत्पादन पिछले साल के 25 लाख टन के बराबर रहता है तो कीमतों में तेजी बनी रहेगी। हाजिर बाजार का असर वायदा बाजार पर पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर पिछले साल रबी के दौरान चने की बंपर पैदावार हुई थी। इसकी कीमतें खुदरा बाजार में 35 रुपये किलो चल रही हैं।
खटुआ ने कहा कि इस साल खरीफ के मौसम में 60 लाख हेक्टेयर कृषि प्रभावित हुई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि इस साल चावल का उत्पादन गिरने के आसार हैं। पिछले साल बंपर उत्पादन के चलते इसका अग्रिम स्टॉक है, जिससे उत्पादन में कमी की भरपाई कुछ हद तक हो जाएगी और कीमतें नियंत्रण में रहेंगी।
रबी की शुरुआत के पहले हुई बारिश के चलते गेहूं की फसल प्रभावित नहीं होगी और शायद इसकी पैदावार पहले के वर्षों से कुछ ज्यादा ही रहे। खटुआ ने कहा कि एफएमसी लंबी अवधि के सौदों के खिलाफ नहीं है, खासकर कॉफी के मामले में। लेकिन आयोग इस मामले में बहुत सावधानी से कदम बढाना चाहता है।
खटुआ ने उम्मीद जाहिर की कि एफसीआर संशोधन विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में आ जाएगा। इस संशोधन के बाद से ऑप्शंस, इंडेक्स ट्रेडिंग और अन्य डेरिवेटि्व्स के लिए रास्ते खुलेंगे। पिछले साल विधेयक नहीं लाया जा सका क्योंकि कीमतों में बढ़ोतरी और महंगाई दर अधिक होने के चलते कुछ पक्षों ने इसका विरोध किया। (बीएस हिन्दी)
दालों की कीमतें, खासकर अरहर और उड़द में तेजी अभी भी बनी रहेगी। वायदा बाजार आयोग के अध्यक्ष बीसी खटुआ ने कहा कि इसकी प्रमुख वजह यह है कि सूखे और बाढ़ से फसलें प्रभावित हुई हैं।
बहरहाल इस समय थोक बाजार में अरहर दाल 55 रुपये किलो और खुदरा बाजार में 90 रुपये किलो के ऊपर बिक रही है। संवाददाताओं से बातचीत करते हुए खटुआ ने कहा कि अनाज के मामले में ऐसा होने की उम्मीद नहीं है क्योंकि चावल उत्पादन में आई कमी की भरपाई गेहूं की फसल से हो जाएगी। दालों का कोई विकल्प नहीं है।
उन्होंने कहा कि इन सबका अलग अलग महत्व है और दालों का कोई विकल्प नहीं है। फसलों की कटाई शुरू हो गई है, लेकिन अभी भी सही स्थिति सामने नहीं आ रही है। खासकर अरहर दाल के मामले में।
उन्होंने कहा कि अगर उत्पादन पिछले साल के 25 लाख टन के बराबर रहता है तो कीमतों में तेजी बनी रहेगी। हाजिर बाजार का असर वायदा बाजार पर पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर पिछले साल रबी के दौरान चने की बंपर पैदावार हुई थी। इसकी कीमतें खुदरा बाजार में 35 रुपये किलो चल रही हैं।
खटुआ ने कहा कि इस साल खरीफ के मौसम में 60 लाख हेक्टेयर कृषि प्रभावित हुई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि इस साल चावल का उत्पादन गिरने के आसार हैं। पिछले साल बंपर उत्पादन के चलते इसका अग्रिम स्टॉक है, जिससे उत्पादन में कमी की भरपाई कुछ हद तक हो जाएगी और कीमतें नियंत्रण में रहेंगी।
रबी की शुरुआत के पहले हुई बारिश के चलते गेहूं की फसल प्रभावित नहीं होगी और शायद इसकी पैदावार पहले के वर्षों से कुछ ज्यादा ही रहे। खटुआ ने कहा कि एफएमसी लंबी अवधि के सौदों के खिलाफ नहीं है, खासकर कॉफी के मामले में। लेकिन आयोग इस मामले में बहुत सावधानी से कदम बढाना चाहता है।
खटुआ ने उम्मीद जाहिर की कि एफसीआर संशोधन विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में आ जाएगा। इस संशोधन के बाद से ऑप्शंस, इंडेक्स ट्रेडिंग और अन्य डेरिवेटि्व्स के लिए रास्ते खुलेंगे। पिछले साल विधेयक नहीं लाया जा सका क्योंकि कीमतों में बढ़ोतरी और महंगाई दर अधिक होने के चलते कुछ पक्षों ने इसका विरोध किया। (बीएस हिन्दी)
29 अक्तूबर 2009
डॉलर कमजोर होने से निकिल के मूल्य में 5 फीसदी सुधार
यूरो समेत विभिन्न मुद्राओं के मुकाबले डॉलर कमजोर होने से निकिल की कीमतों में तेजी का रुख दिखाई दे रहा है। पिछले एक माह के दौरान इसके दाम करीब पांच फीसदी बढ़ चुके हैं। जानकारों के अनुसार फिलहाल निकिल की मांग औसत ही है। लेकिन अगले साल इसकी मांग और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी होने की संभावना है।लंदन मेटल एक्सचेंज में एक माह के दौरान निकिल तीन माह अनुबंध के दाम करीब 17,600 डॉलर से बढ़कर ख्8,8त्तम् डॉलर प्रति टन हो गए। वहीं घरेलू बाजार में इस दौरान निकिल के दाम 825 रुपये से बढ़कर 874 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं। मेटल विश्लेषक अभिषेक शर्मा ने बिजनेस भास्कर को बताया कि डॉलर के मुकाबले यूरो मजबूत होने के कारण एलएमई में निकिल की कीमतों में तेजी आई है। उनका कहना है कि इस दौरान यूरो का एक्सचेंज रेट 1.421 डॉलर से बढ़कर 1.500 डॉलर हो गया। हालांकि एलएमई में इस दौरान निकिल का स्टॉक 1.16 लाख टन से बढ़कर 1.23 लाख टन हो गया हैं। उनके अनुसार निकिल का स्टॉक पर्याप्त होने के कारण आने दिनों में इसके मूल्यों में गिरावट आ सकती है। निसर्ग इंटरनेशनल निकिल कंपनी के संजय शाह का कहना है कि फिलहाल निकिल की औसत मांग चल रही हैं। हालांकि चालू वर्ष की शुरूआत के मुकाबले निकिल की मांग ज्यादा है। इंटरनेशनल निकिल स्टडी ग्रुप (आईएनएसजी) की रिपोर्ट के अनुसार अगले वर्ष इसकी मांग और उत्पादन में बढ़ोतरी होने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 के दौरान रिफाइंड निकिल का वैश्विक उत्पादन 14.4 लाख टन रहने के आसार हैं। चालू वर्ष में यह आंकडा़ 12.8 लाख टन पर है। वहीं प्राइमरी निकिल की वैश्विक खपत अगले साल बढ़कर 13.5 लाख होने की संभावना है। इस साल खपत 12.1 लाख टन रहने का अनुमान है। जानकारों के अनुसार निकिल की खपत 25 फीसदी बढ़कर करीब चार लाख टन पहुंचने की संभावना जताई जा रही हैं। निकिल की सबसे अधिक खपत स्टेनलैस स्टील में 65 फीसदी, इलैक्ट्रोप्लेटिंग में आठ फीसदी, केमिकल में पांच फीसदी और अन्य उत्पादन में 22 फीसदी रहती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन यूरोप में 34 फीसदी में होता है। इसके बाद एशिया में 29 फीसदी, अमेरिका में 23 फीसदी, अफ्रीका में चार फीसदी और ओसेनिया में 11 फीसदी उत्पादन होता है। (बिज़नस भास्कर)
धान की सरकारी खरीद पिछले साल से 1.6 प्रतिशत कम
चालू खरीद सीजन में अब तक धान की सरकारी खरीद 1।6 कम रही है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के एक उच्च अधिकारी के मुताबिक अभी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 109.88 लाख टन धान की खरीद हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 111.77 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। चालू खरीफ सीजन में प्रतिकूल मौसम से धान की पैदावार में कमी आने से चावल उत्पादन 160 लाख टन कम होने की संभावना है। पैदावार में कमी का असर सरकारी खरीद पर पड़ेगा।एफसीआई के सूत्रों के अनुसार वर्ष 2009-10 खरीद सीजन में धान की कुल आवक 116.86 लाख टन रही जबकि इसमें से एमएसपी पर 109.88 लाख टन की खरीद हो चुकी है। पिछले साल की समान अवधि में 125.35 लाख टन धान की आवक हुई थी तथा खरीद 111.77 लाख टन की हुई थी। अभी तक हुई कुल खरीद में पंजाब का योगदान 88 लाख टन और हरियाणा का 13.86 लाख टन है। पंजाब की मंडियों में धान की कुल आवक 90 लाख टन की हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 100 लाख टन की आवक हुई थी। हरियाणा की मंडियों में कुल आवक 20.6 लाख टन की हुई है तथा खरीद 13.86 लाख टन की हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में आवक 19.05 लाख टन और खरीद 16.07 लाख टन की हुई थी। अन्य उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश में 2.42 लाख टन धान की आवक हो चुकी है जबकि एमएसपी पर मात्र 2,675 टन की खरीद हुई है। तमिलनाडु में अभी तक 31,000 टन धान की सरकारी खरीद हो चुकी है। नरेश कुमार एंड संस के प्रोपराइटर नरेश कुमार ने बताया कि पंजाब और हरियाणा की मंडियों में पूसा-1121 की आवक शुरू हो गई है तथा चालू महीने के मध्य तक आवक का दबाव बनने की संभावना है। मंडियों में पूसा-1121 धान के भाव 1750-1850 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसके भाव 2700-2800 रुपये प्रति क्विंटल थे। आवक का दबाव और बढ़ने पर मौजूदा भावों में और भी 40-50 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। नरेला मंडी स्थित मैसर्स रमेश कुमार एंड कंपनी के प्रोपराइटर राजेश कुमार ने बताया कि मंडी में धान की आवक बढ़कर एक लाख बोरी हो गई है जबकि पूसा-1121 धान के भाव घटकर 1960-1970 रुपये, डीपी धान के 1850 रुपये, शरबती के 1300 रुपये प्रति क्विंटल हैं। (बिज़नस भास्कर...आर अस राणा)
पंजाब, हरियाणा में 261 लाख टन गेहूं उत्पादन की संभावना
केंद्र सरकार द्वारा अगले रबी सीजन में गेहूं का उत्पादन लक्ष्य बढ़ाए जाने के बाद पंजाब और हरियाणा ने भी तैयारी शुरू कर दी है। इन राज्यों ने गेहूं बुवाई के रकबा लक्ष्य कर दिया है। पंजाब को 146.60 लाख टन और हरियाणा को 114.62 लाख टन गेहूं उत्पादन की उम्मीद है। हालांकि इन दोनों ही राज्यों में धान की फसल लेट होने से गेहूं की बुवाई कम से कम पांच दिन पिछड़ सकती है। पंजाब में कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस साल हम 35 लाख हैक्टेयर में गेहूं बुवाई का लक्ष्य तय कर रहे हैं। इससे गेहूं उत्पादन करीब 146.60 लाख टन के करीब रह सकता है। पिछले साल वहां 35.26 लाख हैक्टेयर में 157.33 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। इसी तरह हरियाणा में 24.75 लाख हैक्टेयर में गेहूं बुवाई का लक्ष्य रखा गया है। इससे वहां 114.62 लाख टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। हरियाणा में पिछले साल 24.62 लाख हैक्टेयर में 113.60 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। इस साल गेहूं का बुवाई रकबा बढ़ने की संभावना इस वजह से भी है कि सरकार ने प्रमाणित बीजों के वितरण पर सब्सिडी बढ़ा दी है। अब किसानों को इन बीजों पर नेशनल फूड सिक्योरिटी मिशन के तहत 200 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा सब्सिडी मिलेगी। अगले रबी सीजन में किसानों को गेहूं के प्रमाणित बीज पर 700 रुपये प्रति क्विटंल या कीमत की 50 फीसदी (जो भी कम हो) सब्सिडी मिलेगी। पहले यह सीमा 500 रुपये प्रति क्विंटल थी।दूसरी ओर इन राज्यों में गेहूं की बुवाई एक नवंबर से शुरू होने की उम्मीद है और यह काम 20 नवंबर तक चलेगा। जबकि सामान्य रूप से वहां 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक बुवाई का काम होता है। पंजाब और हरियाणा के किसानों ने जिन खेतों से धान कटाई कर ली है वहां गेहूं की बुवाई की तैयारियां शुरू कर दी है।एक कृषि विशेषज्ञ के अनुसार गेहूं की बुवाई में कम से कम पांच दिन की देरी होगी। धान की अभी खेतों में कटाई चल रही है। सूखे के कारण यह फसल लेट हुई। पंजाब और हरियाणा में अच्छी क्वालिटी के बीज सुनिश्चित करने के लिए बीज की सुलभता सुनिश्चित कराई जा रही है। पंजाब मे 9.5 लाख क्विंटल और हरियाणा में 7.5 क्विंटल गेहूं की विभिन्न किस्मों के बीज सुलभ कराए जाएंगे। (बिज़नस भास्कर)
अनुकूल मौसम से लहसुन का रकबा ख्क्त्न बढ़ने की संभावना
मौसम अनुकूल रहने की वजह से लहसुन के रकबे में दस फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती हैं। प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में इस बार अच्छी बारिश लहसुन पैदावार के लिए फायदेमंद मानी जा रही है। इसके अलावा पिछली बार लहसुन के अच्छे दाम मिलने के कारण भी किसान इसकी बुवाई अधिक कर रहे हैं। राष्ट्रीय बागवानी विकास एवं अनुसंधान फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के निदेशक आर.पी. गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि पिछली बार मध्य प्रदेश में लहसुन उत्पादक इलाकों में बारिश कम होने के कारण इसकी पैदावार में भारी गिरावट आई थी, लेकिन इस बार इन इलाकों में अच्छी बारिश होने के कारण किसान इसकी बुवाई अधिक कर रहे हैं। उनके अनुसार पिछले साल के मुकाबले इस बार लहसुन का रकबा दस फीसदी अधिक रह सकता हैं।पिछली बार देश में कुल 1.07 लाख हैक्टेयर जमीन में इसकी बुवाई हुई थी। जिसमें मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 23.63 हजार हैक्टेयर थी। इस दौरान 5.93 लाख टन लहसुन पैदा हुआ था। मध्य प्रदेश के अलावा अन्य लहसुन उत्पादक राज्यों जैसे गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में भी इसका रकबा बढ़ने की संभावना हैं। उत्तर प्रदेश के एटा जिले के बडवाला के किसान संतोष कुमार ने बताया लहसुन के दाम अधिक मिलने के कारण इस बार किसान इसकी बुवाई अधिक जमीन कर रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले साल के मुकाबले लहसुन के दाम दोगुने मिले थे। गौरतलब है कि पिछले सीजन के दौरान लहसुन की पैदावार में 40 फीसदी गिरावट आई थी। वर्ष 2008-09 में इससे पहले सीजन के मुकाबले लहसुन की पैदावार 9.23 लाख टन से घटकर 5.23 लाख टन रही है। इसकी वजह प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में कम बारिश होना था। इस साल एमपी में 1.26 लाख टन लहुसुन पैदा हुआ था, पिछले साल यह आंकड़ा 3.60 लाख टन पर था। इस दौरान गुजरात में इसकी पैदावार करीब 1.5 लाख टन से घटकर 1.12 लाखटन , राजस्थान में 83 हजार टन से घटकर 53 हजार टन रही। जबकि उत्तर प्रदेश में इसकी पैदावार घटकर 68 हजार टन रही। देश में एमपी के मालवा, राजस्थान के कोटा, उत्तर प्रदेश एटा, मैनपुरी और कानपुर इलाके और गुजरात में लहसुन की खेती की जाती है।(बिज़नस भास्कर)
दस लाख टन और चीनी आयात की मंजूरी दे सकती है सरकार
घरेलू बाजार में चीनी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार 10 लाख टन अतिरिक्त चीनी (व्हाइट शुगर) के शुल्क मुक्त आयात को अनुमति दे सकती है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सरकार ने पहले दस लाख टन चीनी के आयात की जो अनुमति दी थी उसमें से भारतीय कंपनियों द्वारा अभी तक करीब आठ लाख टन आयात के सौदे किए जा चुके हैं। इसमें से करीब तीन लाख टन चीनी भारत में आ चुकी है।उद्योग सूत्रों के अनुसार चालू पेराई सीजन वर्ष 2009-10 (अक्टूबर से सितंबर) में गन्ने की कमी से चीनी का उत्पादन घटकर 160 लाख टन ही होने की संभावना है जोकि वर्ष 2008-09 के 150 लाख टन से थोड़ा ज्यादा होगा। पिछले साल पेराई सीजन के शुरू में चीनी का करीब 100 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ था लेकिन चालू पेराई सीजन के शुरू में स्टॉक मात्र 25-30 लाख टन का ही बचा होने का अनुमान है। देश में चीनी की सालाना खपत करीब 225-230 लाख टन की है। ऐसे घरेलू आवश्यकताओं के पूर्ति के लिए चालू सीजन में चीनी का आयात पिछले साल से ज्यादा हो सकता है।चीनी के उत्पादन में कमी के कारण ही पिछले सीजन भारतीय कंपनियों द्वारा करीब 50 लाख टन रॉ शुगर (गैर-रिफाइंड चीनी) के आयात सौदे किए गए थे जिसमें से करीब 26 लाख टन चीनी भारत में आ चुकी है। चालू पेराई सीजन में भी 45 से 50 लाख टन रॉ-शुगर का आयात होने की संभावना है।भारत में पहुंच आयातित चीनी का भाव बंदरगाह पहुंच 3,000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा पड़ रहा है, इसलिए कंपनियां नये सौदे करने से परहेज कर रही हैं। चीनी की आयात अवधि पहले ही सरकार बढ़ाकर मार्च 2010 तक कर चुकी हैं। दिल्ली के चीनी व्यापारी सुधीर भालोठिया ने बताया कि घरेलू बाजार में चीनी की उपलब्धता कम होने के कारण थोक बाजार में दाम बढ़ने शुरू हो गए हैं। दिल्ली थोक बाजार में बुधवार को चीनी के भाव बढ़कर 3250 रुपये और एक्स-फैक्ट्री भाव 3100-3150 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
केंद्र के नए कानून से गन्ने के भुगतान मूल्य को लेकर संशय
नई दिल्ली October 28, 2009
उत्तर प्रदेश में गन्ने के भुगतान मूल्य को लेकर चीनी मिलें दुविधा में फंस गई हैं।
उन्हें यह साफ नहीं हो पा रहा है कि गन्ने की कीमत वे राज्य सरकार द्वारा घोषित मूल्यों के आधार पर अदा करे या फिर केंद्र सरकार के नए मूल्य का इंतजार करे। उधर किसान भी इस साल गन्ने के बदले मिलने वाली कीमत को लेकर संशय में हैं।
असल में केंद्र सरकार ने गत 22 अक्टूबर को जारी अपने नए कानून में कहा है कि वह हर साल घोषित होने वाली सांविधिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) की जगह समय-समय पर गन्ने की कीमत के लिए उचित एवं लाभकारी मूल्य (फेयर एंड रिम्युनिरेटिव प्राइस-एफआरपी) तय करेगी। और राज्य सरकार गन्ने के लिए इससे अधिक कीमत तय करती है तो एफआरपी एवं राज्य आधारित मूल्य (एसएपी) के अंतर का भुगतान राज्य सरकार को करना होगा।
क्यों है ऊहापोह
उत्तर प्रदेश के मिल संचालकों के मुताबिक जो राज्य केंद्र सरकार के मूल्य का अनुसरण करती है उनके लिए कोई समस्या नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हर साल एसएपी की घोषणा होती है, लिहाजा यहां के मिर्ल्स नए नियम को लेकर असमंजस में है। क्योंकि आगामी 10-15 नवंबर से गन्ने की पेराई शुरू हो जाएगी।
लिहाजा अगले सप्ताह से मिलों में गन्ने की आपूर्ति शुरू हो जाएगी और मिल वालों को गन्ने का भुगतान शुरू करना होगा। लेकिन उनके सामने एसएपी या फिर एसएमपी को भुगतान का आधार मूल्य मानने की समस्या आ रही है। क्योंकि एफआरपी अभी घोषित नहीं हुई है।
मिल वालों की दिक्कत यह है कि एसएपी व एमएसपी में प्रति क्विंटल करीब 50 रुपये का फर्क है। उत्तर प्रदेश में इस साल के लिए एसएपी 165-170 रुपये प्रति क्विंटल तय की गयी है।
सहारनपुर स्थित दया शुगर के सलाहकार डीके शर्मा कहते हैं, 'हम मिल वालों ने फिलहाल एसएपी के आधार पर ही गन्ना किसानों को भुगतान करने का फैसला किया है। क्योंकि इस साल गन्ने की कमी पहले से है और किसान को बाद में कीमत अदायगी की बात किसी भी हाल में नहीं कही जा सकती है।'
जल्द आएगी एफआरपी
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोपरेटिव शुगर फैक्टरीज के पदाधिकारी कहते हैं, 'अब एमएसपी से कोई मतलब नहीं है। सरकार इस साल के लिए एफआरपी की घोषणा करेगी। अगर एफआरपी एसएपी से कम होगी तो दोनों के अंतर का भुगतान राज्य सरकार करेगी।' हालांकि एफआरपी के एसएपी से ज्यादा घोषित होने की भी शंका जाहिर की जा रही है। फेडरेशन के पदाधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार एफआरपी तय करने पर काम कर रही है।
किसान भी पसोपेश में
उत्तर प्रदेश के किसान को इस नए कानून के तहत अपने भुगतान को लेकर फिर से पचड़े में पड़ने की आशंका हो रही है। किसानों के मुताबिक मिल मालिक गन्ना मूल्य के भुगतान के लिए एफआरपी का इंतजार करेंगे। ऐसे में उन्हें गन्ने की पूरी कीमत मिलने में दिक्कत आ सकती है। (बीएस हिन्दी)
उत्तर प्रदेश में गन्ने के भुगतान मूल्य को लेकर चीनी मिलें दुविधा में फंस गई हैं।
उन्हें यह साफ नहीं हो पा रहा है कि गन्ने की कीमत वे राज्य सरकार द्वारा घोषित मूल्यों के आधार पर अदा करे या फिर केंद्र सरकार के नए मूल्य का इंतजार करे। उधर किसान भी इस साल गन्ने के बदले मिलने वाली कीमत को लेकर संशय में हैं।
असल में केंद्र सरकार ने गत 22 अक्टूबर को जारी अपने नए कानून में कहा है कि वह हर साल घोषित होने वाली सांविधिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) की जगह समय-समय पर गन्ने की कीमत के लिए उचित एवं लाभकारी मूल्य (फेयर एंड रिम्युनिरेटिव प्राइस-एफआरपी) तय करेगी। और राज्य सरकार गन्ने के लिए इससे अधिक कीमत तय करती है तो एफआरपी एवं राज्य आधारित मूल्य (एसएपी) के अंतर का भुगतान राज्य सरकार को करना होगा।
क्यों है ऊहापोह
उत्तर प्रदेश के मिल संचालकों के मुताबिक जो राज्य केंद्र सरकार के मूल्य का अनुसरण करती है उनके लिए कोई समस्या नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हर साल एसएपी की घोषणा होती है, लिहाजा यहां के मिर्ल्स नए नियम को लेकर असमंजस में है। क्योंकि आगामी 10-15 नवंबर से गन्ने की पेराई शुरू हो जाएगी।
लिहाजा अगले सप्ताह से मिलों में गन्ने की आपूर्ति शुरू हो जाएगी और मिल वालों को गन्ने का भुगतान शुरू करना होगा। लेकिन उनके सामने एसएपी या फिर एसएमपी को भुगतान का आधार मूल्य मानने की समस्या आ रही है। क्योंकि एफआरपी अभी घोषित नहीं हुई है।
मिल वालों की दिक्कत यह है कि एसएपी व एमएसपी में प्रति क्विंटल करीब 50 रुपये का फर्क है। उत्तर प्रदेश में इस साल के लिए एसएपी 165-170 रुपये प्रति क्विंटल तय की गयी है।
सहारनपुर स्थित दया शुगर के सलाहकार डीके शर्मा कहते हैं, 'हम मिल वालों ने फिलहाल एसएपी के आधार पर ही गन्ना किसानों को भुगतान करने का फैसला किया है। क्योंकि इस साल गन्ने की कमी पहले से है और किसान को बाद में कीमत अदायगी की बात किसी भी हाल में नहीं कही जा सकती है।'
जल्द आएगी एफआरपी
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोपरेटिव शुगर फैक्टरीज के पदाधिकारी कहते हैं, 'अब एमएसपी से कोई मतलब नहीं है। सरकार इस साल के लिए एफआरपी की घोषणा करेगी। अगर एफआरपी एसएपी से कम होगी तो दोनों के अंतर का भुगतान राज्य सरकार करेगी।' हालांकि एफआरपी के एसएपी से ज्यादा घोषित होने की भी शंका जाहिर की जा रही है। फेडरेशन के पदाधिकारियों ने बताया कि केंद्र सरकार एफआरपी तय करने पर काम कर रही है।
किसान भी पसोपेश में
उत्तर प्रदेश के किसान को इस नए कानून के तहत अपने भुगतान को लेकर फिर से पचड़े में पड़ने की आशंका हो रही है। किसानों के मुताबिक मिल मालिक गन्ना मूल्य के भुगतान के लिए एफआरपी का इंतजार करेंगे। ऐसे में उन्हें गन्ने की पूरी कीमत मिलने में दिक्कत आ सकती है। (बीएस हिन्दी)
बाजार से दूर हैं धातुओं के असली खरीदार
कोलकाता October 28, 2009
इस साल जुलाई के बाद से धातुओं की कीमतों में अच्छी तेजी आई है। इसकी प्रमुख वजह दुनिया के तमाम देशों में प्रोत्साहन पैकेज दिया जाना है।
वहीं असली मांग में अभी भी एक-दो तिमाही की देरी है। स्टील एल्युमीनियम, तांबे की कीमतों में 11-21 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है, वहीं स्टील के दाम सबसे कम बढ़े हैं। हाल ही में तांबे की कीमतें 13 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं।
इस समय यह 6700 डॉलर प्रति टन के आसपास बिक रहा है, जबकि जुलाई में इसकी कीमतें 5,522 डॉलर प्रति टन थीं। एल्युमीनियम की कीमतें जुलाई में 1500 डॉलर प्रति टन थीं, जो आज बढ़कर 1900 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुकी है। स्टील के दाम इस अवधि के दौरान घरेलू बाजार में 32,000 रुपये से बढ़कर 35,500 रुपये प्रति टन पर पहुंच गए हैं।
स्टील के लिए कच्चे माल के रूप में काम आने वाली धातु की हाजिर कीमतें भी बढ़ी हैं। लौह अयस्क 92 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है, जो जुलाई में 81 डॉलर प्रति टन था। वहीं कोकिंग कोल के दाम इस साल की शुरुआत में 129 डॉलर प्रति टन थे, जो अब बढ़कर 175-180 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुके हैं।
अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भी तेजी आई है। अगर घरेलू बाजार में मांग बढ़ती भी है तो इससे मुनाफा नहीं होगा। कोकिंग कोल का खर्च स्टील तैयार करने में कुल खर्च का 50 प्रतिशत आता है। ज्यादातर इसका आयात होता है। एल्युमीनियम की कीमतें आयातित एल्युमीनियम और तांबे की लागत के आधार पर तय होती हैं, जिसका नियंत्रण अंतरराष्ट्रीय बाजार के आधार पर होता है।
कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद धातुओं के कारोबारी कहते हैं कि यह कृत्रिम है, जो प्रोत्साहन पैकेज के चलते हुआ है। इसका समर्थन नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री पॉल क्रूगमैन ने भी किया है, जिन्होंने हाल ही में वैश्विक कारोबार में चल रहा चढ़ाव जल्द ही खत्म होता नजर आएगा और प्रोत्साहन पैकेज बेअसर नजर आएगा।
स्टील की कीमतों में पिछले 2 महीनों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। जेएसडब्ल्यू के संयुक्त प्रबंध निदेशक शेषगिरि राव ने कहा, 'चीन में घरेलू कीमतों में गिरावट हुई है और कीमतें बड़े उत्पादक और उपभोक्ता द्वारा संचालित होती हैं। कम अवधि के आधार पर देखें तो कीमतों में मंदी का रुख है।'
बढ़े दाम केवल दिखावटी!
तांबे की कीमतें 13 माह के उच्चतम स्तर परएल्युमीनियम की कीमतें 3 माह में 400 डॉलर प्रति टन बढ़ींलौह अयस्क के हाजिर दाम में भी बढ़ोतरी (बीएस हिन्दी)
इस साल जुलाई के बाद से धातुओं की कीमतों में अच्छी तेजी आई है। इसकी प्रमुख वजह दुनिया के तमाम देशों में प्रोत्साहन पैकेज दिया जाना है।
वहीं असली मांग में अभी भी एक-दो तिमाही की देरी है। स्टील एल्युमीनियम, तांबे की कीमतों में 11-21 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है, वहीं स्टील के दाम सबसे कम बढ़े हैं। हाल ही में तांबे की कीमतें 13 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं।
इस समय यह 6700 डॉलर प्रति टन के आसपास बिक रहा है, जबकि जुलाई में इसकी कीमतें 5,522 डॉलर प्रति टन थीं। एल्युमीनियम की कीमतें जुलाई में 1500 डॉलर प्रति टन थीं, जो आज बढ़कर 1900 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुकी है। स्टील के दाम इस अवधि के दौरान घरेलू बाजार में 32,000 रुपये से बढ़कर 35,500 रुपये प्रति टन पर पहुंच गए हैं।
स्टील के लिए कच्चे माल के रूप में काम आने वाली धातु की हाजिर कीमतें भी बढ़ी हैं। लौह अयस्क 92 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया है, जो जुलाई में 81 डॉलर प्रति टन था। वहीं कोकिंग कोल के दाम इस साल की शुरुआत में 129 डॉलर प्रति टन थे, जो अब बढ़कर 175-180 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुके हैं।
अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भी तेजी आई है। अगर घरेलू बाजार में मांग बढ़ती भी है तो इससे मुनाफा नहीं होगा। कोकिंग कोल का खर्च स्टील तैयार करने में कुल खर्च का 50 प्रतिशत आता है। ज्यादातर इसका आयात होता है। एल्युमीनियम की कीमतें आयातित एल्युमीनियम और तांबे की लागत के आधार पर तय होती हैं, जिसका नियंत्रण अंतरराष्ट्रीय बाजार के आधार पर होता है।
कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद धातुओं के कारोबारी कहते हैं कि यह कृत्रिम है, जो प्रोत्साहन पैकेज के चलते हुआ है। इसका समर्थन नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री पॉल क्रूगमैन ने भी किया है, जिन्होंने हाल ही में वैश्विक कारोबार में चल रहा चढ़ाव जल्द ही खत्म होता नजर आएगा और प्रोत्साहन पैकेज बेअसर नजर आएगा।
स्टील की कीमतों में पिछले 2 महीनों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। जेएसडब्ल्यू के संयुक्त प्रबंध निदेशक शेषगिरि राव ने कहा, 'चीन में घरेलू कीमतों में गिरावट हुई है और कीमतें बड़े उत्पादक और उपभोक्ता द्वारा संचालित होती हैं। कम अवधि के आधार पर देखें तो कीमतों में मंदी का रुख है।'
बढ़े दाम केवल दिखावटी!
तांबे की कीमतें 13 माह के उच्चतम स्तर परएल्युमीनियम की कीमतें 3 माह में 400 डॉलर प्रति टन बढ़ींलौह अयस्क के हाजिर दाम में भी बढ़ोतरी (बीएस हिन्दी)
कड़वाहट घटाने को बढ़ेगी रिफाइंड चीनी आयात की सीमा
नई दिल्ली : केंद्र सरकार कर मुक्त रिफाइंड चीनी आयात की सीमा को 10 लाख टन और बढ़ाने की तैयारी कर रही है ताकि घरेलू बाजार में चीनी की आसमानी कीमतों पर कुछ अंकुश लगाया जा सके। इसके पहले सरकार ने कारोबारियों को 30 नवंबर तक कुल 10 लाख टन कर मुक्त सफेद चीनी के आयात की इजाजत दी थी। जब कारोबारी इस लक्ष्य को पूरा कर लेंगे तो उन्हें 10 लाख टन और चीनी के आयात की इजाजत दी जा सकती है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, 'एक बार जब रिफाइंड चीनी के आयात की मौजूदा सीमा पूरी हो जाती है, तो हमारी योजना 10 लाख टन और आयात करने की इजाजत देने की है। इसके अलावा कर मुक्त सफेद चीनी के आयात के लिए नवंबर की अंतिम तिथि को भी बढ़ाया जाएगा।'
अधिकारी ने बताया कि देश में अभी तक करीब आठ लाख टन सफेद चीनी के आयात के लिए सौदे हुए हैं। इनमें से तीन लाख टन चीनी भारत पहुंच चुकी है। गौरतलब है कि दुनिया के सबसे बड़े चीनी उपभोक्ता देश भारत में साल 2009-10 में चीनी उत्पादन और खपत में करीब 75 लाख टन का अंतर रहने के आसार हैं जिसे देखते हुए सरकार ने चीनी के आयात का निर्णय लिया है। देश में चीनी की सालाना खपत करीब 2.35 करोड़ टन की है, जबकि अक्टूबर से सितंबर के इस सीजन में चीनी का उत्पादन सिर्फ 1.6 करोड़ टन हुआ है। पिछले एक साल में चीनी की कीमत करीब दोगुनी होकर 36 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई। सहकारी चीनी मिलों ने आशंका जताई है कि नवंबर तक चीनी की कीमत 40 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच सकती है। केंद्र सरकार कच्ची चीनी के आयात पर ज्यादा जोर दे रही है और इसके आयात के लिए कोई सीमा नहीं लगाई गई है ताकि घरेलू उद्योग बड़े पैमाने पर अपनी रिफाइनिंग क्षमता का इस्तेमाल कर सके। रिफाइंड यानी सफेद चीनी के आयात के लिए सीमा तय की गई है और इसके आयात के पीछे सोच यही है कि बाजार की तात्कालिक जरूरतों की पूर्ति हो सके। वैसे सफेद चीनी के आयात की अवधि 1 अगस्त को ही खत्म हो गई थी, लेकिन सरकार ने यह समय सीमा बढ़ाकर 30 नवंबर तक कर दी थी। इसके साथ ही सरकार ने निजी कंपनियों को भी आयात की इजाजत दी, पहले यह इजाजत सिर्फ पीएसयू कंपनियों एसटीसी, एमएमटीसी और पीईसी को ही मिली हुई थी। (ई टी हिन्दी)
अधिकारी ने बताया कि देश में अभी तक करीब आठ लाख टन सफेद चीनी के आयात के लिए सौदे हुए हैं। इनमें से तीन लाख टन चीनी भारत पहुंच चुकी है। गौरतलब है कि दुनिया के सबसे बड़े चीनी उपभोक्ता देश भारत में साल 2009-10 में चीनी उत्पादन और खपत में करीब 75 लाख टन का अंतर रहने के आसार हैं जिसे देखते हुए सरकार ने चीनी के आयात का निर्णय लिया है। देश में चीनी की सालाना खपत करीब 2.35 करोड़ टन की है, जबकि अक्टूबर से सितंबर के इस सीजन में चीनी का उत्पादन सिर्फ 1.6 करोड़ टन हुआ है। पिछले एक साल में चीनी की कीमत करीब दोगुनी होकर 36 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई। सहकारी चीनी मिलों ने आशंका जताई है कि नवंबर तक चीनी की कीमत 40 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच सकती है। केंद्र सरकार कच्ची चीनी के आयात पर ज्यादा जोर दे रही है और इसके आयात के लिए कोई सीमा नहीं लगाई गई है ताकि घरेलू उद्योग बड़े पैमाने पर अपनी रिफाइनिंग क्षमता का इस्तेमाल कर सके। रिफाइंड यानी सफेद चीनी के आयात के लिए सीमा तय की गई है और इसके आयात के पीछे सोच यही है कि बाजार की तात्कालिक जरूरतों की पूर्ति हो सके। वैसे सफेद चीनी के आयात की अवधि 1 अगस्त को ही खत्म हो गई थी, लेकिन सरकार ने यह समय सीमा बढ़ाकर 30 नवंबर तक कर दी थी। इसके साथ ही सरकार ने निजी कंपनियों को भी आयात की इजाजत दी, पहले यह इजाजत सिर्फ पीएसयू कंपनियों एसटीसी, एमएमटीसी और पीईसी को ही मिली हुई थी। (ई टी हिन्दी)
28 अक्तूबर 2009
महंगा हो सकता है खाद्य तेल का आयात
April 28, 2008
खाद्य तेलों पर आयात शुल्क खत्म किए जाने से घरेलू थोक बाजारों में खाद्य तेल 10 से 15 रुपये प्रति किलो तक सस्ते हो गए हैं, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो यह रुख ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रह सकता।
विशेषज्ञों ने कहा कि बाजार में अटकलें हैं कि दो महीने बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ सकती हैं। यद्यपि आयात शुल्क घटाए जाने से निजी कंपनियां आगामी महीनों के लिए और अधिक आर्डर जारी कर रही हैं, लेकिन वे मौजूदा स्तरों पर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मोलभाव नहीं कर सकतीं क्योंकि जून के बाद कीमतों में तेजी आने की संभावना है।
साल्वेंट एक्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) ने कहा है ' इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें स्थिर हैं। हालांकि व्यापारियों का अनुमान है कि कीमतें जून के बाद बढ़ सकती हैं।' लेकिन कारोबारियों का अनुमान है कि जून के बाद तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी।
एसईए का कहना है कि अप्रैल महीने में आयातित तेल की कीमत मार्च के मुकाबले स्थिर है। आयातित आरबीडी की कीमत 6.29 फीसदी की गिरावट के साथ 53,600 रुपये टन के स्टर पर पहुंच गयी है। उसी तरह कच्चे पामऑयल की कीमत 11 फीसदी की गिरावट के साथ 46,000 रुपये प्रति टन के स्तर पर आ गयी।
मूंगफली तेल की कीमत में 7।75 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है। अब इसके भाव 65,500 रुपये प्रति टन के स्तर पर आ गये हैं। वही सूरजमुखी तेल की कीमत 69,000 रुपये प्रति टन से गिरकर 57,000 रुपये प्रति टन हो गयी है। आयात शुल्क में कटौती के बाद पहले के मुकाबले तेल का आयात ज्यादा सस्ता हो गया है। (बीएस हिन्दी)
खाद्य तेलों पर आयात शुल्क खत्म किए जाने से घरेलू थोक बाजारों में खाद्य तेल 10 से 15 रुपये प्रति किलो तक सस्ते हो गए हैं, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो यह रुख ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रह सकता।
विशेषज्ञों ने कहा कि बाजार में अटकलें हैं कि दो महीने बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ सकती हैं। यद्यपि आयात शुल्क घटाए जाने से निजी कंपनियां आगामी महीनों के लिए और अधिक आर्डर जारी कर रही हैं, लेकिन वे मौजूदा स्तरों पर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मोलभाव नहीं कर सकतीं क्योंकि जून के बाद कीमतों में तेजी आने की संभावना है।
साल्वेंट एक्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) ने कहा है ' इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें स्थिर हैं। हालांकि व्यापारियों का अनुमान है कि कीमतें जून के बाद बढ़ सकती हैं।' लेकिन कारोबारियों का अनुमान है कि जून के बाद तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी।
एसईए का कहना है कि अप्रैल महीने में आयातित तेल की कीमत मार्च के मुकाबले स्थिर है। आयातित आरबीडी की कीमत 6.29 फीसदी की गिरावट के साथ 53,600 रुपये टन के स्टर पर पहुंच गयी है। उसी तरह कच्चे पामऑयल की कीमत 11 फीसदी की गिरावट के साथ 46,000 रुपये प्रति टन के स्तर पर आ गयी।
मूंगफली तेल की कीमत में 7।75 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है। अब इसके भाव 65,500 रुपये प्रति टन के स्तर पर आ गये हैं। वही सूरजमुखी तेल की कीमत 69,000 रुपये प्रति टन से गिरकर 57,000 रुपये प्रति टन हो गयी है। आयात शुल्क में कटौती के बाद पहले के मुकाबले तेल का आयात ज्यादा सस्ता हो गया है। (बीएस हिन्दी)
शादियों की धमक से भी नहीं बढ़ी सोने की चमक
आज यानी बुधवार से ब्याह-शादियों का सीजन शुरू हो गया है, लेकिन सोने के बाजार में अभी भी चमक नहीं दिख रही है। महंगे होने के कारण गहनों की बिक्री पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 50 फीसदी कम रही है। ऐसे में बिक्री बढ़ाने के लिए कई ज्वेलर्स नए-नए डिजाइनों का सहारा ले रहे हैं, लेकिन इसका भी अधिक असर नहीं दिख रहा है। दिल्ली सर्राफा बाजार में मंगलवार को सोने का भाव 16100 रुपये प्रति दस ग्राम रहा, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका भाव 1039 डॉलर प्रति औंस रहा। ऑल इंडिया सर्राफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि इस समय सोने के दाम आसमान छू रहे हैं। इसका गहनों की मांग पर प्रतिकूल असर पड़ा है। गहनों की कीमतें पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 50 फीसदी अधिक हैं। पिछले साल इन दिनों सोने का भाव 12,400 रुपये प्रति दस ग्राम था जबकि इस समय इसका भाव 16,100 रुपये प्रति दस ग्राम चल रहा है। घरेलू बाजार में सोने की तेजी और मंदी अंतरराष्ट्रीय बाजार के भावों के हिसाब से भी तय होती हैं। गोयल ज्वेलर्स के विमल कुमार गोयल ने बताया कि ब्याह-शादियों का सीजन शुरू होने के बावजूद गहनों की बिक्री नहीं बढ़ रही है। ग्राहक नये गहने खरीदने के बजाय पुराने गहने देकर नये ले रहे हैं। ब्याह-शादियों के सीजन में गहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए ग्राहकों को बनवाई में पांच से सात फीसदी की छूट दी जा रही है। लोग अपने बजट में कटौती कर रहे हैं। इसी तरह जयपुर में भी आभूषण विक्रेताओं का कारोबार परवान नहीं चढ़ पा रहा है। वैसे शादी के लिए राजस्थान के परंपरागत कुंदन-मीना जड़ित जेवरों की मांग जरूर निकल रही है।ज्वेलर्स एसोसिएशन, जयपुर के अध्यक्ष विवेक काला का कहना है कि वेडिंग सीजन शुरू होने से आभूषण कारोबार निश्चित रूप से बढ़ा है। पर सोने के भाव 15,000 हजार रुपये प्रति दस ग्राम के पार होने से ग्राहक बजट के हिसाब से खरीदारी को प्राथमिकता दे रहे हैं। जयपुर सर्राफा कमेठी के अध्यक्ष रामेश्वर गोयल का कहना है कि शादी के लिए खरीदारी के लिहाज से इस समय ग्रामीण इलाकों से मांग आ रही है। पंजाब में भी इन दिनों सोने की कीमतें 16,000 रुपये होने से इसकी मांग कम हो गई है जबकि पिछले साल इसकी कीमत 13,500 रुपये के आसपास थी। सतिंद्रा ज्वेलर्स, पटियाला के मालिक सतिंद्र कुमार के मुताबिक पिछले साल शादियों के मौसम में कारोबार काफी अच्छा रहा था। इस बार बाजार में 25 से 30 फीसदी तक मांग कम है। लुधियाना के नीटा ज्वेलर्स के मालिक हरबंस सिंह के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले इस बार शादियों का सीजन भी छोटा ही रहने की आशंका है। इससे मांग पर और असर पड़ेगा।लेकिन मध्य प्रदेश में सोने का भाव 16 हजार रुपये से ऊपर होने के बावजूद ज्वेलरी बाजार गुलजार है। लोग हीरे की ज्वेलरी भी पसंद कर रहे हैं। जीआरजी ज्वेलर्स के राजेश वर्मा के अनुसार शादी के लिए ज्यादातर लोग लाइट वेट ज्वेलरी ही पसंद कर रहे हैं। नयनतारा ज्वेलर्स के संचालक श्याम मंगल ने भी कहा कि सोने के दाम अधिक होने के बावजूद लोग अच्छी खरीदारी कर रहे हैं। (बिज़नस भास्कर ग्रुप)
ड्यूटी फ्री चावल आयात की सरकार ने दी मंजूरी
देश में सूखा और बाढ़ के दोहरे संकट से खाद्यान्न उत्पादन गिरने की आशंका को देखते हुए बाजार में चावल की सुलभता बढ़ाने के लिए ड्यूटी फ्री आयात की मंजूरी दी है। सरकार ने चावल के आयात पर लगने वाली 70 फीसदी ड्यूटी अगले साल सितंबर तक के लिए समाप्त कर दी है। इस साल धान का उत्पादन 160 लाख टन गिरने का अनुमान है। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आयात शुल्क हटाने के संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है। एक कर विशेषज्ञ ने कहा कि सेमी-मिल्ड व पूरी तरह तैयार चावल और पॉलिश्ड व नॉन पॉलिश्ड चावल पर ड्यूटी खत्म की गई है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अगुवाई वाले खाद्यान्न पर बने अधिकार प्राप्त मंत्रीसमूह ने पिछले दिनों चावल के आयात पर शुल्क हटाने का फैसला किया था। इससे पहले सरकार ने मार्च 2008 से मार्च 2009 तक ड्यूटी फ्री चावल आयात की अनुमति दी थी। उस समय महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए यह कदम उठाया गया था। इसके बाद एक अप्रैल 2009 को दुबारा ड्यूटी लगा दी गई। मौजूदा सीजन में देश के आधे से ज्यादा हिस्से में सूखे का प्रकोप रहा। इसके बाद आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बाढ़ ने फसल को नुकसान पहुंचाया। इससे मुख्य रूप से गर्मियों में बोई जाने वाली धान की फसल की पैदावार गिरने की आशंका पैदा हो गई।सूखा सहने वाली धान की नई वैरायटी तैयारभुवनेश्वर। सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) ने धान की एक ऐसी किस्म विकसित की है जो तीन सप्ताह तक बिना सिंचाई के सुरक्षित रह सकती है। बारिश की कमी से इस किस्म के धान की पैदावार प्रभावित नहीं होगी। सीआरआरआई के डायरेक्टर टी. के. आध्या ने बताया कि सहभागी नाम की इस वैरायटी को सेंट्रल वैरायटी रिलीज कमोटी की ओर से दो दिन पहले मंजूरी मिल गई है। इस वैरायटी के धान की बुवाई करने पर किसानों को 35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार मिल सकती है। वैज्ञानिकों ने इससे पहले इसी तरह की खासियत वाली कलिंगा वैरायटी का विकास किया था, जिसकी पैदावार 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर रहती थी। (डो जोंस) (बिज़नस भास्कर)
कपास का उत्पादन बढ़ने के साथ निर्यात भी सुधरने के आसार
वर्ष 2009-10 में भारत में कपास की पैदावार में 6.8 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक कपास की पैदावार बढ़कर 312.75 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) होने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी से कॉटन निर्यात भी बढ़कर 70 लाख गांठ तक पहुंचने सकता है।सीएआई के मुताबिक वर्ष 2009-10 सीजन के शुरू में कॉटन का बकाया स्टॉक 71.50 लाख गांठ रह सकता है। इस साल की पैदावार 312.75 लाख गांठ तथा आयातित कपास सात लाख गांठ को मिलाकर कुल उपलब्धता 391.25 लाख गांठ रह सकती है। देश में कॉटन की सालाना खपत 250 लाख गांठ रहने की संभावना है जबकि 70 लाख गांठ निर्यात हो सकती है। इस तरह कुल 320 लाख गांठ कपास की बिक्री होने की संभावना है। ऐसे में वर्ष 2010-11 के अगले सीजन के समय कॉटन का बकाया स्टॉक 71.25 लाख गांठ रहने की संभावना है। पिछले साल देश में 292.75 लाख गांठ कॉटन की पैदावार हुई थी। अबोहर स्थित मैसर्स कमल कॉटन ट्रेडर्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव तेज होने के कारण चालू वर्ष में भारत से कॉटन के निर्यात में अच्छी बढ़ोतरी होने की संभावना है। न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में कॉटन के दिसंबर वायदा अनुबंध के भाव 26 अक्टूबर को बढ़कर 68.59 सेंट प्रति पाउंड हो गए जबकि पिछले साल 15 अक्टूबर को भाव 47.54 सेंट प्रति पाउंड थे। इस समय चीन की खरीद अच्छी बनी हुई है जिससे घरेलू मंडियों में कॉटन की कीमतें बढ़ी हैं। शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव 16 अक्टूबर को गुजरात की मंडियों में 23,000-23,300 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी 356 किलो) थे जोकि सोमवार को बढ़कर 24,000 से 24,100 रुपये प्रति कैंडी हो गए। मानसा के कॉटन व्यापारी संजीव गर्ग ने बताया कि उत्तर भारत की मंडियों में कपास की दैनिक आवक बढ़कर 30,000 गांठ (एक गांठ 170 किलो) से ज्यादा की हो गई है। कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद तो शुरू कर दी है लेकिन मंडियों में भाव एमएसपी के बराबर रहने से सरकारी खरीद पिछले साल के मुकाबले धीमी है। (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
विदेश में नेचुरल रबर के दाम नई ऊंचाई छूने को तैयार
वैश्विक मांग में बढ़ोतरी, क्रूड ऑयल के भाव बढ़ने और थाईलैंड और इंडोनेशिया में कमजोर सप्लाई के चलते टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में नेचुरल रबर के भाव इस वर्ष के आखिर तक 250 येन प्रति किलोग्राम तक पहुंच सकते हैं। टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज में आरएसएस-3 रबर बेंचमार्क वायदा फिलहाल करीब 230 येन प्रति किलोग्राम चल रहा है जो गत वर्ष अक्टूबर के बाद सबसे ज्यादा है। दिसंबर में यह 100 येन प्रति किलोग्राम था जिसमें अब तक 130 येन तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले सप्ताहों में भी रबर की यह तेजी जारी रह सकती है। सिंगापुर स्थित फिलिप फ्यूचर्स में एशियन कमोडिटीज के मैनेजर अवतार संधू ने कहा कि संस्थागत फंडों की खरीद के चलते रबर की कीमतों में तेजी का रुख है। उन्होंने कहा कि इस साल के अंत तक कीमत 250 येन प्रति किलोग्राम के स्तर को छू सकती हैं क्योंकि रबर और क्रूड ऑयल जैसी कमोडिटीज की ओर फंड लौट रहे हैं। टोक्यो स्थित ओकाची कॉरपोरेशन के ब्रोकर निक नग ने कहा कि टोकम में लांग पोजीशन रबर वायदा में 38 फीसदी सौदे संस्थागत फंडों ने किए हैं।यदि क्रूड ऑयल 85 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को छूता है तो रबर वायदा 250 येन प्रति किलोग्राम के पार जा सकता है। क्रूड ऑयल ने एक सप्ताह पहले 82 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार किया और फिलहाल यह 78.78 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बना हुआ है। उन्होंने कहा कि रबर के भावों में थोड़े समय के लिए मामूली गिरावट आ सकती है, लेकिन बाद में यह फिर से तेजी की राह पकड़ सकती हैं। टोकम में रबर 50 दिन वायदा 202.60 येन और 200 दिन वायदा 168.43 येन प्रति किलो पर कारोबार कर रहा है।थाईलैंड की सबसे बड़ी नेचुरल रबर उत्पादक कंपनी वोन बंडिट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पोंगसाक कर्दवोंगबंडित ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से नहीं बढ़ रही है, लेकिन इसमें सुधार जरूर हो रहा है। टायर एवं रबर की मांग बढ़ रही है। नेचुरल रबर उत्पादक देशों के संगठन के वरिष्ठ अर्थशास्त्री जोम जैकब ने कहा कि भारत और चीन में टायरों की तेज खपत से रबर की कीमतों को बढ़ावा मिल रहा है। (बुसिएंस भास्कर)
लड़ाई के मूड में गन्ना किसान
गन्ने की कीमत को लेकर उत्तर प्रदेश के किसान अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। 29 अक्टूबर को किसान बरेली में बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे। ऐसे में गन्ने के पेराई सीजन में और देरी होने की संभावना है जिसका असर चीनी की कीमतों पर पड़ना तय है। विवाद का विषय केंद्र सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को जारी अध्यादेश है जिसके तहत, अगर गन्ने के लिए केंद्र द्वारा तय की जानी वाले उचित और लाभकारी कीमत (एफआरपी) से अधिक कीमत राज्य सरकारें तय करती हैं, तो दोनों कीमतों में अंतर का भुगतान राज्य सरकारों को करना होगा।
एफआरपी 125 से 130 रुपये प्रति क्विंटल तक रहने की संभावना है जबकि राज्यों द्वारा घोषित कीमतें इससे काफी ज्यादा हैं। पहले ही वित्तीय संकट से जूझ रही राज्य सरकारें दाम के इस अंतर को चुकाने में असमर्थता व्यक्त कर रही हैं। बिजनेस भास्कर ने 26 अक्टूबर को -गन्ना मूल्य पर केंद्र और राज्यों के बीच होगी जंग- शीर्षक से खबर दी थी। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वी एम सिंह ने बताया कि किसानों ने गन्ने का बिक्री भाव 280 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इस भाव पर चीनी मिलें गन्ने की खरीद करती हैं तो ठीक है, नहीं तो किसान मिलों को गन्ना नहीं बेचेंगे। उन्होंने बताया कि हमने 29 अक्टूबर को बरेली में किसान संगठनों की बैठक बुलाई है। इसमें आगे की रणनीति पर विचार किया जायेगा।
गन्ना किसानों और मिलों के बीच गतिरोध पैदा होने से चीनी मिलों में गन्ने की पेराई देर से शुरू होने की आशंका बन गई है। इसका असर चीनी की कीमतों पर पड़ सकता है। चालू खरीद सीजन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 162.50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पंजाब और हरियाणा में राज्य सरकारों ने एसएपी 170-180 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले साल चीनी मिलों ने किसानों को गन्ने का मूल्य 140 रुपये से 165 रुपये प्रति क्विंटल के बीच दिया था, तब चीनी का एक्स फैक्ट्री भाव 2000 से 2200 रुपये प्रति क्विंटल था। इस समय चीनी के दाम 3000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक है और चीनी के दाम खुदरा बाजार में भी 24 रुपये से बढ़कर 34 रुपये प्रति किलो हो गये हैं। ऐसे में किसानों को गन्ने का कम भाव कतई मंजूर नहीं है।rana@businessbhaskar.नेट (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
एफआरपी 125 से 130 रुपये प्रति क्विंटल तक रहने की संभावना है जबकि राज्यों द्वारा घोषित कीमतें इससे काफी ज्यादा हैं। पहले ही वित्तीय संकट से जूझ रही राज्य सरकारें दाम के इस अंतर को चुकाने में असमर्थता व्यक्त कर रही हैं। बिजनेस भास्कर ने 26 अक्टूबर को -गन्ना मूल्य पर केंद्र और राज्यों के बीच होगी जंग- शीर्षक से खबर दी थी। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वी एम सिंह ने बताया कि किसानों ने गन्ने का बिक्री भाव 280 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इस भाव पर चीनी मिलें गन्ने की खरीद करती हैं तो ठीक है, नहीं तो किसान मिलों को गन्ना नहीं बेचेंगे। उन्होंने बताया कि हमने 29 अक्टूबर को बरेली में किसान संगठनों की बैठक बुलाई है। इसमें आगे की रणनीति पर विचार किया जायेगा।
गन्ना किसानों और मिलों के बीच गतिरोध पैदा होने से चीनी मिलों में गन्ने की पेराई देर से शुरू होने की आशंका बन गई है। इसका असर चीनी की कीमतों पर पड़ सकता है। चालू खरीद सीजन के लिए उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने गन्ने का राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 162.50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पंजाब और हरियाणा में राज्य सरकारों ने एसएपी 170-180 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले साल चीनी मिलों ने किसानों को गन्ने का मूल्य 140 रुपये से 165 रुपये प्रति क्विंटल के बीच दिया था, तब चीनी का एक्स फैक्ट्री भाव 2000 से 2200 रुपये प्रति क्विंटल था। इस समय चीनी के दाम 3000 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक है और चीनी के दाम खुदरा बाजार में भी 24 रुपये से बढ़कर 34 रुपये प्रति किलो हो गये हैं। ऐसे में किसानों को गन्ने का कम भाव कतई मंजूर नहीं है।rana@businessbhaskar.नेट (बिज़नस भास्कर....आर अस राणा)
जिंस वायदा कारोबार अवधि बढ़ाने पर चर्चा
मुंबई October 27, 2009
शेयर बाजार के बाद अब जिंस बाजार के वायदा कारोबार की अवधि बढ़ाने पर बहस शुरू हो गई है।
जिंस बाजार नियामक, वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने कारोबारी घंटे बढ़ाने के मसले पर बहस की शुरुआत की है, जैसा कि पिछले सप्ताह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पिछले हफ्ते किया था।
इस समय कमोडिटी एक्सचेंजों में जिंसों का वायदा कारोबार 10 बजे सुबह से शाम के 5 बजे तक होता है। हालांकि तमाम मौकों पर कारोबारियों ने कारोबार की अवधि बढ़ाकर शाम के 7.30 बजे तक किए जाने की मांग की।
वायदा बाजार आयोग के प्रवक्ता अनुपम मिश्र ने कहा, 'अभी तक तो किसी एक्सचेंज ने आयोग के सामने समयावधि बढ़ाए जाने का प्रस्ताव नहीं रखा है। अगर वे इस तरह का कोई अनुरोध करते हैं तो हम निश्चित रूप से उस पर चर्चा करेंगे।' (बीएस हिन्दी)
शेयर बाजार के बाद अब जिंस बाजार के वायदा कारोबार की अवधि बढ़ाने पर बहस शुरू हो गई है।
जिंस बाजार नियामक, वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने कारोबारी घंटे बढ़ाने के मसले पर बहस की शुरुआत की है, जैसा कि पिछले सप्ताह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पिछले हफ्ते किया था।
इस समय कमोडिटी एक्सचेंजों में जिंसों का वायदा कारोबार 10 बजे सुबह से शाम के 5 बजे तक होता है। हालांकि तमाम मौकों पर कारोबारियों ने कारोबार की अवधि बढ़ाकर शाम के 7.30 बजे तक किए जाने की मांग की।
वायदा बाजार आयोग के प्रवक्ता अनुपम मिश्र ने कहा, 'अभी तक तो किसी एक्सचेंज ने आयोग के सामने समयावधि बढ़ाए जाने का प्रस्ताव नहीं रखा है। अगर वे इस तरह का कोई अनुरोध करते हैं तो हम निश्चित रूप से उस पर चर्चा करेंगे।' (बीएस हिन्दी)
कमजोर अंतरराष्ट्रीय संकेतों से सोना पड़ा फीका
नई दिल्ली : कमजोर अंतरराष्ट्रीय संकेतों की वजह से मंगलवार को घरेलू बाजार में सोने का भाव 190 रुपया गिरकर 16,000 रुपए प्रति दस ग्राम रह गया। घरेलू बाजार में स्टॉकिस्टों और ज्वैलरों ने सोना कम ही उठाया। चांदी का भाव भी 550 रुपए गिरकर 26,950 रुपए प्रति किलोग्राम रह गया और हफ्ता आधारित आपूर्ति में चांदी का भाव 575 रुपए गिरकर 26,800 रुपए प्रति किलोग्राम रहा। चांदी के सिक्कों का भाव भी खरीद में प्रति 100 सिक्के के लिए 100 रुपए घटकर 32,900 रुपए रह गया, जबकि बिक्री के लिए भाव 33,000 रुपए था। बाजार के जानकारों का कहना है कि थोक विक्रेता और सर्राफ इन खबरों को सुनकर बाजार से दूर ही रहे कि डॉलर की मजबूती की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना घटकर 1,037 डॉलर प्रति औंस तक आ गया है।
गौरतलब है कि डॉलर और सोना एक-दूसरे की विपरीत दिशा में चलते हैं। अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने से वैकल्पिक निवेश के रूप में सोने का आकर्षण घट जाता है। स्टैंडर्ड गोल्ड एवं आभूषण वाले सोने के रेट में भी 190 रुपए की गिरावट आई और दोनों का भाव 10 ग्राम के लिए क्रमश: 16,000 रुपए और 15,850 रुपए रहा। इसी प्रकार सॉवरेन का रेट भी 25 रुपए घटकर प्रति आठ ग्राम के लिए 13,000 रुपए तक आ गया। कई जानकारों का कहना है कि अभी सिर्फ वही लोग सोना खरीद रहे हैं, जिन्हें शादियों के लिए ऐसा करना जरूरी है। बाकी खुदरा खरीदार बाजार से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं। सर्राफा बाजार में लोग इन खबरों से भी आशंकित हैं कि निकट भविष्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना प्रति औंस 1,000 डॉलर से भी नीचे जा सकता है। Ee टी Hindi
गौरतलब है कि डॉलर और सोना एक-दूसरे की विपरीत दिशा में चलते हैं। अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने से वैकल्पिक निवेश के रूप में सोने का आकर्षण घट जाता है। स्टैंडर्ड गोल्ड एवं आभूषण वाले सोने के रेट में भी 190 रुपए की गिरावट आई और दोनों का भाव 10 ग्राम के लिए क्रमश: 16,000 रुपए और 15,850 रुपए रहा। इसी प्रकार सॉवरेन का रेट भी 25 रुपए घटकर प्रति आठ ग्राम के लिए 13,000 रुपए तक आ गया। कई जानकारों का कहना है कि अभी सिर्फ वही लोग सोना खरीद रहे हैं, जिन्हें शादियों के लिए ऐसा करना जरूरी है। बाकी खुदरा खरीदार बाजार से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं। सर्राफा बाजार में लोग इन खबरों से भी आशंकित हैं कि निकट भविष्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना प्रति औंस 1,000 डॉलर से भी नीचे जा सकता है। Ee टी Hindi
शुल्क मुक्त हो सकता है चावल आयात, वैश्विक बाजार में बढ़ेंगी कीमतें
नई दिल्ली : वित्त मंत्रालय ने चावल की सभी किस्मों पर आयात शुल्क शून्य करने की अधिसूचना जारी कर दी है। इन किस्मों पर अब तक 70-80 फीसदी तक शुल्क लगता रहा है। मंत्रालय के इस कदम से संकेत मिल रहा है कि भारत इस साल अपनी आधिकारिक चावल व्यापार नीति के तहत बगैर किसी शुल्क के आयात करने की तैयारी कर रहा है। हालांकि इस अधिसूचना को तभी लागू माना जाएगा जब वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाला डीजीएफटी चावल व्यापार नीति में बदलाव को मंजूरी दे दे। शून्य आयात शुल्क की व्यवस्था बासमती जैसी किस्मों पर भी लागू होगी। इस बीच वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आशंका जताई है कि बाढ़ और सूखे की दोहरी मार के चलते इस साल चावल उत्पादन 2008-09 के स्तर से 1।6 करोड़ टन कम रह सकता है।
हालांकि उन्होंने विश्वास जताया कि देश में चावल की कमी नहीं होने दी जाएगी। उन्होंने कहा, 'हमने उत्पादन में बढ़ोतरी हासिल कर ली होती, लेकिन पहले सूखे और बाद में देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ के कारण खेती-बाड़ी पर असर पड़ा, खासकर खरीफ सीजन की फसलों की उत्पादकता पर।' मुखर्जी ने कहा, 'सितंबर के पहले सप्ताह तक हमें संकेत मिल रहे थे कि रबी की शुरुआती फसल और हरियाणा तथा पंजाब में फसलों के संरक्षण और चावल की अच्छी फसल से कम उत्पादन की कुछ हद तक भरपाई हो जाएगी। हम उम्मीद कर रहे थे कि चावल उत्पादन में 1.1-1.2 करोड़ टन की ही कमी रहेगी, लेकिन अब लगता है कि कमी का आंकड़ा 1.6 लाख टन तक चला जाएगा।' उधर चावल आयात को शुल्क मुक्त करने की तैयारी वाली सरकार की अधिसूचना से इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार सिर्फ पीएसयू को ही सीमित मात्रा में चावल आयात करने की अनुमति देगी। यह मात्रा 10 लाख टन के आस-पास हो सकती है। चावल का आयात अभी भी एसटीसी के जरिए हो रहा है। एक ट्रेड अधिकारी ने कहा, 'पीएसयू को चावल के आयात की अनुमति देने का यह संकेत हो सकता है।' वित्त मंत्रालय की यह अधिसूचना हालांकि इस बात का साफ संकेत दे रही है कि घरेलू बाजार में चावलों की कीमतें बढ़ सकती है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि ये संकेत दुनिया में चावल का सबसे ज्यादा उपभोग और उत्पादन करने वाले देश की तरफ से आए हैं। चावल का निर्यात करने वाले दिल्ली के एक कारोबारी ने ईटी को बताया कि चावल की कीमतों में औसतन 200 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी हो सकती है। चावल के कारोबार से जुड़े लोगों के मुताबिक इस समय वियतनाम से 25 फीसदी टूटा चावल करीब 375 डॉलर प्रति टन पर बिक रहा है, लेकिन अब यह 500 डॉलर प्रति टन का स्तर छू सकता है। आयात के अनुमानों को देखते हुए मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह यानी ईजीओएम ने पिछले महीने बासमती और दूसरे प्रीमियम चावलों के निर्यात में ढील देने का विवादास्पद फैसला लिया। इस साल सूखे की वजह से धान की फसल को नुकसान होने से चावल की कीमतें बढ़ने की आशंका के बावजूद सरकार ने यह फैसला किया था। (ई टी हिन्दी)
हालांकि उन्होंने विश्वास जताया कि देश में चावल की कमी नहीं होने दी जाएगी। उन्होंने कहा, 'हमने उत्पादन में बढ़ोतरी हासिल कर ली होती, लेकिन पहले सूखे और बाद में देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ के कारण खेती-बाड़ी पर असर पड़ा, खासकर खरीफ सीजन की फसलों की उत्पादकता पर।' मुखर्जी ने कहा, 'सितंबर के पहले सप्ताह तक हमें संकेत मिल रहे थे कि रबी की शुरुआती फसल और हरियाणा तथा पंजाब में फसलों के संरक्षण और चावल की अच्छी फसल से कम उत्पादन की कुछ हद तक भरपाई हो जाएगी। हम उम्मीद कर रहे थे कि चावल उत्पादन में 1.1-1.2 करोड़ टन की ही कमी रहेगी, लेकिन अब लगता है कि कमी का आंकड़ा 1.6 लाख टन तक चला जाएगा।' उधर चावल आयात को शुल्क मुक्त करने की तैयारी वाली सरकार की अधिसूचना से इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि सरकार सिर्फ पीएसयू को ही सीमित मात्रा में चावल आयात करने की अनुमति देगी। यह मात्रा 10 लाख टन के आस-पास हो सकती है। चावल का आयात अभी भी एसटीसी के जरिए हो रहा है। एक ट्रेड अधिकारी ने कहा, 'पीएसयू को चावल के आयात की अनुमति देने का यह संकेत हो सकता है।' वित्त मंत्रालय की यह अधिसूचना हालांकि इस बात का साफ संकेत दे रही है कि घरेलू बाजार में चावलों की कीमतें बढ़ सकती है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि ये संकेत दुनिया में चावल का सबसे ज्यादा उपभोग और उत्पादन करने वाले देश की तरफ से आए हैं। चावल का निर्यात करने वाले दिल्ली के एक कारोबारी ने ईटी को बताया कि चावल की कीमतों में औसतन 200 डॉलर प्रति टन की बढ़ोतरी हो सकती है। चावल के कारोबार से जुड़े लोगों के मुताबिक इस समय वियतनाम से 25 फीसदी टूटा चावल करीब 375 डॉलर प्रति टन पर बिक रहा है, लेकिन अब यह 500 डॉलर प्रति टन का स्तर छू सकता है। आयात के अनुमानों को देखते हुए मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह यानी ईजीओएम ने पिछले महीने बासमती और दूसरे प्रीमियम चावलों के निर्यात में ढील देने का विवादास्पद फैसला लिया। इस साल सूखे की वजह से धान की फसल को नुकसान होने से चावल की कीमतें बढ़ने की आशंका के बावजूद सरकार ने यह फैसला किया था। (ई टी हिन्दी)
अगले साल सितंबर तक चावल आयात पर शुल्क नहीं
नई दिल्ली : घरेलू बाजार में चावल की सप्लाई बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने चावल से आयात शुल्क हटाने का फैसला किया है। धान की फसल पर पहले सूखा और फिर बाढ़ की दोहरी मार पड़ने के कारण इस साल चावल उत्पादन में करीब 1।60 करोड़ टन तक कमी आने की आशंका है। घरेलू बाजार में चावल की किल्लत न हो, इसलिए सरकार ने सितंबर 2010 तक चावल आयात पर कोई शुल्क न वसूलने का फैसला किया है। केंद्रीयय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'यह अधिसूचित कर दिया गया है कि सितंबर 2010 तक चावल से आयात शुल्क (70 फीसदी) हटा दिया गया है।' एक कर विशेषज्ञ ने कहा कि आधे कूटे और पूरे कूटे (सेमी मिल्ड एंड होल मिल्ड) चावल से आयात शुल्क हटाया गया है। यह छूट पॉलिश और बिना पॉलिश, दोनों तरह के चावल पर लागू है।
सूत्रों ने बताया कि पिछले माह आयोजित एक बैठक में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में खाद्य मामलों पर गठित मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह (ईजीओएम) ने चावल से आयात शुल्क हटाने की सिफारिश की थी। मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपायों के तहत सरकार ने 20 मार्च 2008 से 31 मार्च 2009 के बीच चावल के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी थी। हालांकि, 1 अप्रैल से आयात शुल्क को दोबारा लागू कर दिया गया था। सरकार ने चावल से आयात शुल्क हटाने का फैसला ऐसे वक्त में किया है, जब देश का आधा हिस्सा सूखे की चपेट है तो दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बाढ़ का कहर बरपा है। इन इलाकों में मुख्य रूप से चावल की खेती होती है। धान की पैदावार को नुकसान पहुंचने के बाद पिछले चार महीनों में चावल की कीमतें 25 फीसदी बढ़ चुकी हैं। इससे पहले मुखर्जी ने कहा था कि सूखे और बाढ़ के कारण इस साल चावल उत्पादन में 1।60 करोड़ टन की गिरावट आ सकती है। 2008-09 में भारत में 9.91 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था। (ई टी हिन्दी)
सूत्रों ने बताया कि पिछले माह आयोजित एक बैठक में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में खाद्य मामलों पर गठित मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह (ईजीओएम) ने चावल से आयात शुल्क हटाने की सिफारिश की थी। मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपायों के तहत सरकार ने 20 मार्च 2008 से 31 मार्च 2009 के बीच चावल के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी थी। हालांकि, 1 अप्रैल से आयात शुल्क को दोबारा लागू कर दिया गया था। सरकार ने चावल से आयात शुल्क हटाने का फैसला ऐसे वक्त में किया है, जब देश का आधा हिस्सा सूखे की चपेट है तो दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में बाढ़ का कहर बरपा है। इन इलाकों में मुख्य रूप से चावल की खेती होती है। धान की पैदावार को नुकसान पहुंचने के बाद पिछले चार महीनों में चावल की कीमतें 25 फीसदी बढ़ चुकी हैं। इससे पहले मुखर्जी ने कहा था कि सूखे और बाढ़ के कारण इस साल चावल उत्पादन में 1।60 करोड़ टन की गिरावट आ सकती है। 2008-09 में भारत में 9.91 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था। (ई टी हिन्दी)
इस बार कम होगा गेहूं का उत्पादन
अलीगढ़। आलू के निरंतर बढ़ते भाव से किसानों के चेहरे पर चमक आ गयी। आलू ने ऐसा लुभाया कि इस बार भी किसानों ने गेहूं के मुकाबले आलू की फसल बोने में अधिक रुचि दिखाई है। इस तरह गेहूं की अपेक्षा आलू का रकबा बढ़ने से यह आशंका जताई जा रही है कि आने वाले वक्त में गेहूं पर महंगाई की मार पड़ सकती है।
पिछले वर्ष जिले में गेहूं का उत्पादन रिकार्ड तोड़ हुआ था। दो लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल लक्ष्य की तुलना में दो लाख सात हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं की बुवाई हुई थी। इसके सापेक्ष सात लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य एक हजार अस्सी रुपये निर्धारित किया था। जिला प्रशासन ने गेहूं क्रय केंद्र खोलकर किसानों का अनाज खरीद लिया। नगद धनराशि न मिलने की वजह से किसानों ने व्यापारियों के हाथ गेहूं बेच दिया। हालांकि जिला प्रशासन ने खरीद का अपना लक्ष्य पूरा कर लिया। मगर किसानों को अधिक लाभ नहीं मिला। इसके विपरीत आलू की बुवाई भी रबी फसल में होती है। दोनों की बुवाई में सिर्फ एक माह का अंतर होता है। इसलिए किसान एक फसल ही बो सकते हैं। पिछले वर्ष अधिक रिकार्ड उत्पादन की वजह रही कि आलू की बुवाई का क्षेत्रफल कम था। इसलिये रिकार्ड गेहूं का उत्पादन रहा। अब आलू का मूल्य अधिक मिलने की वजह से किसानों ने इसकी बुवाई का जिले में क्षेत्रफल बढ़ा दिया है। शासन ने आठ हजार पांच सौ हेक्टेयर जमीन में उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके विपरीत 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी बुवाई होने की संभावना है। इस बार शासन ने जिले में दो लाख पंद्रह हजार हेक्टेयर जमीन में गेहूं की बुवाई का लक्ष्य रखा है। उप कृषि निदेशक डा।ओमवीर सिंह ने बताया कि इस साल आलू की बुवाई अधिक हो रही है। पिछले वर्ष गेहूं फसल की बुवाई अधिक क्षेत्रफल में हुई थी। (दैनिक Jagaan)
पिछले वर्ष जिले में गेहूं का उत्पादन रिकार्ड तोड़ हुआ था। दो लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल लक्ष्य की तुलना में दो लाख सात हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं की बुवाई हुई थी। इसके सापेक्ष सात लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य एक हजार अस्सी रुपये निर्धारित किया था। जिला प्रशासन ने गेहूं क्रय केंद्र खोलकर किसानों का अनाज खरीद लिया। नगद धनराशि न मिलने की वजह से किसानों ने व्यापारियों के हाथ गेहूं बेच दिया। हालांकि जिला प्रशासन ने खरीद का अपना लक्ष्य पूरा कर लिया। मगर किसानों को अधिक लाभ नहीं मिला। इसके विपरीत आलू की बुवाई भी रबी फसल में होती है। दोनों की बुवाई में सिर्फ एक माह का अंतर होता है। इसलिए किसान एक फसल ही बो सकते हैं। पिछले वर्ष अधिक रिकार्ड उत्पादन की वजह रही कि आलू की बुवाई का क्षेत्रफल कम था। इसलिये रिकार्ड गेहूं का उत्पादन रहा। अब आलू का मूल्य अधिक मिलने की वजह से किसानों ने इसकी बुवाई का जिले में क्षेत्रफल बढ़ा दिया है। शासन ने आठ हजार पांच सौ हेक्टेयर जमीन में उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके विपरीत 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी बुवाई होने की संभावना है। इस बार शासन ने जिले में दो लाख पंद्रह हजार हेक्टेयर जमीन में गेहूं की बुवाई का लक्ष्य रखा है। उप कृषि निदेशक डा।ओमवीर सिंह ने बताया कि इस साल आलू की बुवाई अधिक हो रही है। पिछले वर्ष गेहूं फसल की बुवाई अधिक क्षेत्रफल में हुई थी। (दैनिक Jagaan)
बुवाई में देरी की संभावना के बावजूद गेहूं उत्पादन लक्ष्य बढ़ा
धान और गन्ने की कटाई में देरी के कारण बुवाई लेट होने की संभावना के बावजूद सरकार ने अगले रबी ज्यादा में ज्यादा गेहूं उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। कृषि सचिव टी. नंदकुमार के अनुसार अगले वर्ष 2009-10 में 820 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने मंगलवार को पत्रकारों को बताया कि सितंबर महीने में देर तक हुई बारिश से गेहूं की बुवाई बढ़ेगी। वर्ष 2008-09 में देश में गेहूं उत्पादन रिकार्ड स्तर पर 805 लाख टन रहा था।कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि सितंबर महीने में देर तक हुई बारिश से धान की कटाई सामान्य से 10-15 दिन देर से शुरू हुई। पहली नवंबर से गेहूं की बुवाई शुरू हो जाती है। लेकिन अभी तक सिर्फ 20-25 फीसदी धान की कटाई हुई है। उत्तर प्रदेश जो गेहूं उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य है, में चीनी मिलों ने अभी गन्ने की पेराई शुरू नहीं की है। इससे वहां भी गेहूं बुवाई के लिए खेत खाली नहीं हो पाएंगे। उम्मीद है कि गन्ने की पेराई नवंबर महीने के मध्य में शुरू होगी। ऐसे में गेहूं की बुवाई में भी देरी होने की आशंका है। गेहूं व्यापारी कमलेश जैन ने बताया कि उत्पादक मंडियों में गेहूं की आवक कम होने से पिछले दस दिनों में इसकी कीमतों में करीब 150 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। दिल्ली थोक बाजार में मंगलवार को गेहूं के भाव 1305-1310 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए जबकि आवक करीब 8,000-9,000 क्विंटल की रही। सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना के तहत अक्टूबर से दिसंबर तक पांच लाख गेहूं जारी करने का फैसला किया है लेकिन अभी तक भाव तय नहीं किए हैं। टी नंदकुमार ने कहा कि गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फैसला अगले दो सप्ताह में हो जाएगा। वर्ष 2008-09 में गेहूं का एमएसपी 1080 रुपये प्रति क्विंटल था। वर्ष 2008-09 में केंद्र सरकार ने एमएसपी पर गेहूं की रिकार्ड 252 लाख टन की खरीद की थी। उन्होंने माना कि प्रतिकूल मौसम से वर्ष 2009-10 में देश में खाद्यान्न उत्पादन में कमी आएगी क्योंकि भारत में 60 फीसदी खेती वर्षा पर आधारित है। जबकि इस साल बारिश काफी कम हुई है। कई राज्यों में अगस्त के मध्य तक बारिश न होने से धान की फसल को काफी नुकसान हुआ है। वर्ष 2009-10 में देश में धान के उत्पादन में 150-160 लाख टन की कमी आने की संभावना है। जबकि वर्ष 2008-09 खरीफ सीजन में देश में धान की पैदावार 845 लाख टन की हुई थी। (बिज़नस भास्कर.....आर अस राणा)
27 अक्तूबर 2009
जिंक की विदेशी तेजी के फंडामेंटल्स पर सवाल
चीन में जिंक का आयात सितंबर में तेजी से बढ़ा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बढ़ते आयात से पता चलता है कि जिंक की मांग तेजी से बढ़ रही है। मालूम हो कि अगस्त के दौरान चीन में बेसमेटल्स का आयात 17 फीसदी बढ़ा था। शंघाई फ्यूचर्स एक्सचेंज और लंदन मेटल एक्सचेंज में जिंक के बढ़ते स्टॉक से यह सवाल उठता है कि क्या जिंक के फंडामेंटल जिंक के भावों में तेजी का समर्थन करते हैं। लंदन में मई 2008 और शंघाई में जुलाई 2008 के बाद से इतनी तेजी नहीं देखी गई थी। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि सितंबर में जिंक का आयात 35,652 टन रहा है जो गत वर्ष सितंबर के मुकाबले 4।8 फीसदी ज्यादा है। अगस्त के 30,516 टन आयात से भी सितंबर में ज्यादा रहा है। वहीं, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि आयात में बढ़ोतरी पूरी तरह से मांग आधारित नहीं है। सितंबर में आयात में बढ़ोतरी इस वर्ष की शुरूआत में ट्रेडिंग हाउसों, वितरकों और निर्माताओं द्वारा जारी किए गए ऑर्डरों का परिणाम है। विश्लेषकों के मुताबिक लंदन मेटल एक्सचेंज और शंघाई फ्यूचर्स एक्सचेंज के बीच कीमतों में भारी अंतर के कारण ये ऑर्डर किए गए थे।शंघाई नॉन फेरस मेटल्स नेटवर्क के मुताबिक चीन के गोदामों में जिंक का स्टॉक शुक्रवार तक 3,66,000 टन था। शंघाई फ्यूचर्स एक्सचेंज में जिंक का भंडार फिलहाल 1,17,706 टन है। जिंक में तेजी पर जो सवाल फिलहाल उठ रहे हैं, वे सवाल एक महीने पहले कॉपर पर भी उठ चुके हैं। चीन ने सितंबर के दौरान 2,82,828 टन रिफाइंड कॉपर का आयात किया जो गत वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 152 फीसदी ज्यादा है। (बिज़नस भास्कर)
छह माह में देश का सोना आयात 55 फीसदी गिरा
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव ऊंचे होने से चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से सितंबर के दौरान भारत में सोने का आयात लगभग 55 फीसदी कम कहने का अनुमान है। मुंबई बुलियन एसोसिएशन के सूत्रों के मुताबिक इस दौरान सोने का आयात 124।6 टन रहा जबकि पिछले साल इस दौरान 277 टन सोना आयात हुआ था। मुंबई बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया ने बताया कि आगामी दिनों में सोने का आयात अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर निर्भर करेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के दाम 1,050 डॉलर प्रति औंस से ऊपर बने रहे तो आयात कमजोर ही रहेगा। पिछले कैलेंडर वर्ष 2008 के दौरान भारत में 458 टन सोने का आयात हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले एक साल में डॉलर की कीमतों में लगभग 340 डॉलर प्रति औंस से ज्यादा की तेजी आ चुकी है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के भाव 1,050 डॉलर प्रति औंस से ऊपर बने हुए है जबकि पिछले साल अक्टूबर में भाव 710 डॉलर प्रति औंस थे। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी तेजी का असर देश में सोने के आयात पर पड़ रहा है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अगस्त तक निर्यात घटकर 84.6 टन का ही हुआ है जबकि सितंबर महीने में भी आयात घटकर 35-40 टन ही होने की संभावना है। पिछले साल सितंबर महीने में 54 टन सोने का आयात हुआ था। अप्रैल से सितंबर के दौरान कुल आयात 277 टन हुआ था। आरआर इन्फॉर्मेशन एंड इन्वेस्टमेंट रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के बुलियन विशेषज्ञ घनश्याम सुतार ने बताया कि चीन के बैंक डॉलर की बिकवाली कर सोने में निवेश कर रहे हैं।इसके अलावा विश्व के कई बड़े-बड़े हेज फंडों को भी भविष्य में सोने में निवेश लाभकारी लग रहा है। इसीलिए आगामी दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें तेज ही बनी रह सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोमवार को सोने के भाव 1,055 डॉलर प्रति औंस पर खुले तथा दो डॉलर की नरमी के साथ 1053 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में दिसंबर महीने के वायदा में सोने के दाम 15,964 रुपये प्रति दस ग्राम पर खुले तथा 43 रुपये की गिरावट आकर 15,921 रुपये प्रति दस ग्राम रह गए। हाजिर में 15,979 रुपये प्रति दस ग्राम पर कारोबार करते देखा गया।ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शील चंद जैन ने बताया कि दिल्ली सराफा बाजार में सोमवार को सोने के भाव 16,220 रुपये प्रति दस ग्राम पर रहे। हालांकि दाम महंगे होने के कारण सोने की मांग कमजोर बनी हुई है लेकिन ब्याह-शादियों के सीजन को देखते हुए गहनों की मांग बढ़ने की संभावना है। इस दौरान चांदी की कीमतों में 100 रुपये की तेजी आकर भाव 27,500 रुपये प्रति किलो रह गए। (बिज़नस भास्कर)
सप्लाई बढ़ाने के लिए 3.46 लाख टन खाद्य तेल आयात
सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग कंपनियों ने सात राज्यों की ओर से मिले ऑर्डरों के आधार पर घरेलू बाजार की सप्लाई बढ़ाने के लिए अगस्त तक 3,46,070 टन खाद्य तेल आयात के ऑर्डर जारी किए हैं। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने सोमवार को कहा कि आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और हरियाणा यह खाद्य तेल मार्च 2010 तक लेंगे। ये सरकारें इस खाद्य तेल का वितरण सरकारी योजनाओं के तहत करेंगी। मध्य अक्टूबर तक राज्यों को 35,000 टन खाद्य तेल भेजा जा चुका है।अधिकारी ने बताया कि ट्रेडिंग कंपनियां मलेशिया और इंडोनेशिया से 800 डॉलर प्रति टन की औसत कीमत पर मुख्य रूप से रिफाइंड, ब्लीच्ड (प्रक्षालित) और गंधहीन (आरबीडी) पाम ऑयल आयात करेंगी। विश्व के सबसे बड़े खाद्य तेल उपभोक्ताओं में से एक भारत का आयात से अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाम ऑयल के भाव बढ़ा सकता है। भारत में हर साल करीब 150 लाख टन खाद्य तेल की खपत होती है और इसका करीब 50 फीसदी आयात किया जाता है। 31 अक्टूबर को समाप्त होने वाले विपणन वर्ष में 85 लाख टन खाद्य तेल आयात हो चुका। अधिकारी ने बताया कि आंध्र प्रदेश ने सबसे ज्यादा 1,66,000 टन आरबीडी पामोलीन के लिए ऑर्डर एमएमटीसी को दिया है। तमिलनाडु ने पीईसी के जरिए 74,560 टन आरबीडी पामोलीन मंगवाया है, जबकि पश्चिम बंगाल ने नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड के जरिए 40,000 टन का आयात ऑर्डर किया है। वहीं, महाराष्ट्र ने 45,000 टन आरबीडी पामोलीन का आयात स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के जरिए किया है, जिसकी आपूर्ति इसी महीने के अंत तक होने की संभावना है। वहीं, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने रिफाइंड सोया तेल के ऑर्डर पीईसी और नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के जरिए दिए हैं। सिक्किम ने नेफेड के जरिए रिफाइंड सोया का आयात ऑर्डर दिया है। सार्वजनिक क्षेत्र की ट्रेडिंग कंपनियों की ओर से आयात किया गया यह खाद्य तेल एक लीटर के पैक में राज्यों को सप्लाई किया जाएगा जो कल्याणकारी योजनाओं के तहत वितरित किया जाएगा। (बिज़नस भास्कर)
विदेशी और घरेलू मांग से जीरा चमका
निर्यातकों के साथ घरेलू मांग बढ़ने से पिछले एक सप्ताह में जीरे की कीमतों में 6।5 फीसदी की तेजी दर्ज की गई। सोमवार को ऊंझा मंडी में जीरे के भाव बढ़कर 12,150 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। सितंबर महीने में भारत से जीरे के निर्यात में 187 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि अन्य प्रमुख उत्पादक देशों टर्की और सीरिया के पास जीरे का बकाया स्टॉक कम है। इसलिए आगामी दिनों में भारत से निर्यात मांग बराबर रहने की संभावना है जिससे मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की उम्मीद है।मुंबई स्थित मैसर्स जैब्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर भास्कर शाह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि खाड़ी के साथ ही यूरोप के आयातकों की अच्छी मांग बनी हुई है। ब्याह-शादियों का सीजन शुरू होने के कारण घरेलू मांग भी बराबर आ रही है। जिससे जीरे की तेजी को बल मिल रहा है। पिछले एक सप्ताह में उत्पादक मंडियों में जीरे की कीमतों में करीब 750 रुपये की तेजी आकर भाव 12,150 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में टर्की और सीरिया के जीरे के भाव बढ़कर 2700 डॉलर प्रति टन (एफओबी) हो गए हैं। जबकि भारतीय जीरे के भाव 2350 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं। टर्की के पास इस समय तीन-चार हजार टन और सीरिया के पास सात-आठ हजार टन का ही स्टॉक बचा है। भारत के पास इस समय करीब नौ से दस लाख बोरी (एक बोरी 55 किलो) का स्टॉक बचा हुआ है। इसीलिए आगामी दिनों में भारत से निर्यातकों की मांग बराबर रहने की उम्मीद है।भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार सितंबर महीने में यूरोप और खाड़ी देशों की भारी मांग से जीरे के निर्यात में 187 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान भारत से जीरे का निर्यात बढ़कर 6,000 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका निर्यात 2,090 टन का ही निर्यात हुआ था। जीरा निर्यातक रजनीकांत बी. पोपट ने बताया कि विश्व स्तर पर आर्थिक स्थिति सुधर रही है। वैसे भी अन्य देशों के मुकाबले भारतीय जीरे के भाव काफी नीचे चल रहे हैं। ऐसे में आगामी दिनों में भारत से जीरे की निर्यात मांग में और भी इजाफा होने की उम्मीद है।मैसर्स हनुमान प्रसाद पीयूष कुमार के प्रोपराइटर वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि गुजरात के सौराष्ट्र के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र जूनागढ़, जामनगर, राजकोट, भावनगर, अमरेली, और सुरेंद्रनगर में बुवाई का कार्य शुरू हो चुका है तथा उत्तरी गुजरात के बनासकांटा, मेहसाणा और पाटन में बुवाई नवंबर के प्रथम सप्ताह में शुरू हो जाएगी। राजस्थान में बुवाई का कार्य नवंबर के मध्य में शुरू होने की संभावना है।rana@businessbhaskar.net (आर अस राणा)
कच्चा तेल गया 80 डॉलर से नीचे
नई दिल्ली October 26, 2009
अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर संदेह के चलते एशियाई बाजार में आज कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल के नीचे चली गई। न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में दिसंबर डिलिवरी के लिए कच्चे तेल की कीमत 74 सेंट घटकर 79।8 डॉलर प्रति बैरल रह गई। यह लगातार तीसरा दिन है, जब कच्चे तेल की कीमत में कमी हुई। शुक्रवार को इसकी कीमत 69 सेंट घटकर 80.5 डॉलर हो गई थी। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते कच्चा तेल 82 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया था। (बीएस हिन्दी)
अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर संदेह के चलते एशियाई बाजार में आज कच्चे तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल के नीचे चली गई। न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में दिसंबर डिलिवरी के लिए कच्चे तेल की कीमत 74 सेंट घटकर 79।8 डॉलर प्रति बैरल रह गई। यह लगातार तीसरा दिन है, जब कच्चे तेल की कीमत में कमी हुई। शुक्रवार को इसकी कीमत 69 सेंट घटकर 80.5 डॉलर हो गई थी। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते कच्चा तेल 82 डॉलर प्रति बैरल के पार चला गया था। (बीएस हिन्दी)
लौह अयस्क की कीमतें 11 फीसदी बढ़ीं
नई दिल्ली October 26, 2009
लंबे उत्पादों की मांग में कमी के चलते स्टील क्षेत्र में अनिश्चितता के बावजूद लौह अयस्क की कीमतों में एक महीने के भीतर 11 प्रतिशत इजाफा हुआ है।
पिछले साल वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते निर्माण क्षेत्र सुस्त पड़ गया था और अब आर्थिक सुधार से निर्माण क्षेत्र के गति पकड़ने की उम्मीदें बढ़ी हैं।
इस सप्ताह लौह अयस्क की मालभाड़ा सहित एक्स-चाइनीज पोर्ट कीमतें बढ़कर 91 डॉलर प्रति टन पर पहुंत गईं, जबकि एक महीने पहले कीमतें 82 डॉलर प्रति टन थीं।
बहरहाल 58 प्रतिशत लोहा वाले कम गुणवत्ता के लौह अयस्क की कीमतें 75 डॉलर प्रति टन पर स्थिर बनी हुई हैं। (बीएस हिन्दी)
लंबे उत्पादों की मांग में कमी के चलते स्टील क्षेत्र में अनिश्चितता के बावजूद लौह अयस्क की कीमतों में एक महीने के भीतर 11 प्रतिशत इजाफा हुआ है।
पिछले साल वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते निर्माण क्षेत्र सुस्त पड़ गया था और अब आर्थिक सुधार से निर्माण क्षेत्र के गति पकड़ने की उम्मीदें बढ़ी हैं।
इस सप्ताह लौह अयस्क की मालभाड़ा सहित एक्स-चाइनीज पोर्ट कीमतें बढ़कर 91 डॉलर प्रति टन पर पहुंत गईं, जबकि एक महीने पहले कीमतें 82 डॉलर प्रति टन थीं।
बहरहाल 58 प्रतिशत लोहा वाले कम गुणवत्ता के लौह अयस्क की कीमतें 75 डॉलर प्रति टन पर स्थिर बनी हुई हैं। (बीएस हिन्दी)
एनएमसीई का मुथूट समूह से समझौता
अहमदाबाद October 26, 2009
अहमदाबाद के नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) ने विभिन्न प्रकारे के सोने की वस्तुओं, जिसमें गोल्ड गुयाना, सिक्के और बार शामिल हैं, की डिलिवरी के लिए मुथूट समूह से समझौता किया है।
मुथूट फाइनैंस दक्षिण भारत के मुथूट समूह का एक हिस्सा है जो फाइनैंस, हेल्थकेयर, कीमती धातुओं, शिक्षा और रियल एस्टेट के क्षेत्र में काम करता है। इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने कहा, 'इस समझौते के मुताबिक एनएमसीई, मुथूट समूह के विभिन्न केंद्रों का इस्तेमाल सोने की डिलिवरी के लिए करेगा।' (बीएस हिन्दी)
अहमदाबाद के नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) ने विभिन्न प्रकारे के सोने की वस्तुओं, जिसमें गोल्ड गुयाना, सिक्के और बार शामिल हैं, की डिलिवरी के लिए मुथूट समूह से समझौता किया है।
मुथूट फाइनैंस दक्षिण भारत के मुथूट समूह का एक हिस्सा है जो फाइनैंस, हेल्थकेयर, कीमती धातुओं, शिक्षा और रियल एस्टेट के क्षेत्र में काम करता है। इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने कहा, 'इस समझौते के मुताबिक एनएमसीई, मुथूट समूह के विभिन्न केंद्रों का इस्तेमाल सोने की डिलिवरी के लिए करेगा।' (बीएस हिन्दी)
काली मिर्च की कीमतों में तेज बढ़ोतरी
कोच्चि October 26, 2009
दीपावली के बाद काली मिर्च अचानक तीखी हो चली है। अचानक बढ़ी मांग से कीमतों को लेकर अफरातफरी का माहौल है।
एमजी-1 ग्रेड की काली मिर्च की कीमतें सोमवार को बढ़कर 3275 डॉलर प्रति टन हो गईं, जो पिछले सोमवार की तुलना में 175 डॉलर ज्यादा है। इसकी प्रमुख वजह स्थानीय मांग है।
दिलचस्प है कि भारत की काली मिर्च की कीमतें वैश्विक कीमतों की तुलना में बहुत ज्यादा हैं, जिसके चलते कीमतों पर विदेशी बाजार का असर नहीं है। स्थानीय मांग से अफरातफरी पैदा हुई है। हालत यह है कि वायदा बाजार में भी पिछले 4 सत्र से कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है।
कोच्चि के प्रमुख कारोबारियों का कहना है कि जाड़े का असर भी मांग पर पड़ा है और इसके लिए स्टॉक बनाने के लिए खरीदारी तेज हुई है। मांग के लिहाज से काली मिर्च के लिए आगामी 4 महीने बहुत व्यस्त मौसम है, जब स्थानीय बाजार में कम से कम 10,000 टन काली मिर्च की जरूरत होगी। इसे देखते हुए कीमतों में बढ़ोतरी में तेजी आते ही कारोबारियों ने खरीदारी तेज कर दी है।
साथ ही इंडोनेशिया और वियतनाम में भारी बारिश और हरीकेन के चलते फसल खराब होने की खबर ने कीमतों को और बल प्रदान किया है। भारत में कीमतों में हुई बढ़ोतरी का असर वियतनाम के काली मिर्च बाजार पर पड़ा है और वहां कीमतें पिछले सप्ताह की तुलना में 150 डॉलर बढ़कर 3200 डॉलर प्रति टन हो गई हैं।
वहां कीमतों में हुई बढ़ोतरी की वजह अमेरिका में काली मिर्च की बढ़ी मांग है। वियतनाम में काली मिर्च की उपलब्धता को लेकर भी तरह तरह की खबरें आ रही हैं और इन रिपोर्टों में स्टॉक 2500 से 20,000 टन तक दिखाया जा रहा है।
वियतनाम में जानकार सूत्रों के मुताबिक हाल में आए तूफान का प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं रहा है और फसलों को नुकसान 5,000 टन तक हो सकता है। जानकारों के मुताबिक काली मिर्च का वर्तमान वैश्विक स्टॉक दिसंबर तक खत्म हो सकता है। इसकी वजह से नए साल की शुरुआत में आपूर्ति कमजोर रहने की उम्मीद है।
वियतनाम में अगले साल फरवरी तक ही नई फसल आएगी। इसे देखते हुए विदेशी खरीदार, खासकर अमेरिकी खरीदार काली मिर्च का स्टॉक जमा कर रहे हैं। साथ ही वे इंडोनेशिया और ब्राजील से भी सौदे कर रहे हैं, जो कम दाम पर माल दे रहे हैं।
इंडोनेशिया में एएसटीए ग्रेड के काली मिर्च की कीमतें 3050 डॉलर प्रति टन हैं और ब्राजील में भी कीमतें पिछले 2 सप्ताह के दौरान 2850 डॉलर प्रति टन पर स्थिर हैं। यहां तक कि ब्राजील की मुद्रा में 6 प्रतिशत की मजबूती का असर भी कीमतों पर नहीं पड़ा है और वे मांग को देखते हुए वैश्विक बाजार में स्थिति मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं। (बीएस हिन्दी)
दीपावली के बाद काली मिर्च अचानक तीखी हो चली है। अचानक बढ़ी मांग से कीमतों को लेकर अफरातफरी का माहौल है।
एमजी-1 ग्रेड की काली मिर्च की कीमतें सोमवार को बढ़कर 3275 डॉलर प्रति टन हो गईं, जो पिछले सोमवार की तुलना में 175 डॉलर ज्यादा है। इसकी प्रमुख वजह स्थानीय मांग है।
दिलचस्प है कि भारत की काली मिर्च की कीमतें वैश्विक कीमतों की तुलना में बहुत ज्यादा हैं, जिसके चलते कीमतों पर विदेशी बाजार का असर नहीं है। स्थानीय मांग से अफरातफरी पैदा हुई है। हालत यह है कि वायदा बाजार में भी पिछले 4 सत्र से कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है।
कोच्चि के प्रमुख कारोबारियों का कहना है कि जाड़े का असर भी मांग पर पड़ा है और इसके लिए स्टॉक बनाने के लिए खरीदारी तेज हुई है। मांग के लिहाज से काली मिर्च के लिए आगामी 4 महीने बहुत व्यस्त मौसम है, जब स्थानीय बाजार में कम से कम 10,000 टन काली मिर्च की जरूरत होगी। इसे देखते हुए कीमतों में बढ़ोतरी में तेजी आते ही कारोबारियों ने खरीदारी तेज कर दी है।
साथ ही इंडोनेशिया और वियतनाम में भारी बारिश और हरीकेन के चलते फसल खराब होने की खबर ने कीमतों को और बल प्रदान किया है। भारत में कीमतों में हुई बढ़ोतरी का असर वियतनाम के काली मिर्च बाजार पर पड़ा है और वहां कीमतें पिछले सप्ताह की तुलना में 150 डॉलर बढ़कर 3200 डॉलर प्रति टन हो गई हैं।
वहां कीमतों में हुई बढ़ोतरी की वजह अमेरिका में काली मिर्च की बढ़ी मांग है। वियतनाम में काली मिर्च की उपलब्धता को लेकर भी तरह तरह की खबरें आ रही हैं और इन रिपोर्टों में स्टॉक 2500 से 20,000 टन तक दिखाया जा रहा है।
वियतनाम में जानकार सूत्रों के मुताबिक हाल में आए तूफान का प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं रहा है और फसलों को नुकसान 5,000 टन तक हो सकता है। जानकारों के मुताबिक काली मिर्च का वर्तमान वैश्विक स्टॉक दिसंबर तक खत्म हो सकता है। इसकी वजह से नए साल की शुरुआत में आपूर्ति कमजोर रहने की उम्मीद है।
वियतनाम में अगले साल फरवरी तक ही नई फसल आएगी। इसे देखते हुए विदेशी खरीदार, खासकर अमेरिकी खरीदार काली मिर्च का स्टॉक जमा कर रहे हैं। साथ ही वे इंडोनेशिया और ब्राजील से भी सौदे कर रहे हैं, जो कम दाम पर माल दे रहे हैं।
इंडोनेशिया में एएसटीए ग्रेड के काली मिर्च की कीमतें 3050 डॉलर प्रति टन हैं और ब्राजील में भी कीमतें पिछले 2 सप्ताह के दौरान 2850 डॉलर प्रति टन पर स्थिर हैं। यहां तक कि ब्राजील की मुद्रा में 6 प्रतिशत की मजबूती का असर भी कीमतों पर नहीं पड़ा है और वे मांग को देखते हुए वैश्विक बाजार में स्थिति मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं। (बीएस हिन्दी)
26 अक्तूबर 2009
चावल उत्पादन में हो सकती है कमी
नई दिल्ली। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आशंका जताई है कि इस साल सूखा और बाढ़ दोनों आपदाओं के कारण 2008-09 के मुकाबले चावल का उत्पादन 1.6 करोड़ टन कम होगा।
मुखर्जी ने हालांकि भरोसा जताया कि अनाज की आपूर्ति में कोई कमी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि हमने अपेक्षाकृत ऊंची वृद्धि दर की होती, लेकिन सखा और बाद में कुछ हिस्सों में आई बाढ़ के असर ने कृषि की संभावनाओं और विशेष तौर पर खरीफ की फसल को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित किया।
हालांकि वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद [पीएमईएसी] द्वारा चालू वित्त वर्ष लिए जाहिर 6.75 फीसदी की वृद्धि दर के अनुमान का समर्थन किया लेकिन उन्होंने कृषि क्षेत्र के लिए अपेक्षाकृत अधिक निराशाजनक दृष्टिकोण पेश किया। इससे पहले पीएमईएसी ने इस सप्ताह अनुमान जाहिर किया था कि खाद्य उत्पादन में इस सत्र में 1.1 करोड़ टन की गिरावट होगी।
भारत ने 2008-09 के खरीफ सत्र में 9.915 करोड़ टन का रिकार्ड उत्पादन किया था। उन्होंने कहा कि सितंबर के आखिरी सप्ताह तक हमारी उम्मीद थी कि शुरुआती रबी फसल, हरियाणा एवं पंजाब द्वारा फसलों की सुरक्षा और चावल अच्छी पैदावार से हालात कुछ ठीक होंगे। हमें उम्मीद थी कि चावल के उत्पादन में एक से 1.2 करोड़ टन की कमी होगा लेकिन अब लगता है कि चावल के उत्पादन में 1.5 से 1.6 करोड़ टन की कमी आएगी।
देश के आधे हिस्से में सूखे ने बुवाई प्रक्रिया को बाधित किया है जिससे धान की फसल की बुवाई में करीब 60 लाख हेक्टेयर की कमी आई और आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने खड़ी फसल को प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। आंध्र जो चावल उत्पादन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है वह सूखे से प्रभावित नहीं था लेकिन यह हाल में आई बाढ़ से प्रभावित हुआ।
मंत्री ने हालांकि कुछ प्रभावित क्षेत्रों में मुख्यमंत्रियों की पहल की प्रशंसा की जिन्होंने बिजली के लिए ज्यादा भुगतान किया ताकि सिंचाई की सुविधा मुहैया कराई जा सके और इस तरह नुकसान में कमी आई। मुखर्जी ने कहा कि इसलिए यदि आप बिहार, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का देखें तो मुख्यमंत्रियों की सूझ-बूझ और दूरदेशी का भला हो, उन्होंने बहुत अधिक बिजली मुहैया कराई ताकि भूमिगत जल का उपयोग किया जा सके। उन्होंने फसलों की सुरक्षा की। इसलिए उतना नुकसान नहीं हुआ हालांकि प्रभावित जरुर हुआ।
इसी हफ्ते कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि पंजाब और हरियाणा में चावल का उत्पादन सूखे के बावजूद पिछले साल के स्तर पर बना रह सकता है। केंद्रीय भंडार में इन दोनों राज्यों को योगदान सबसे अधिक होता है। उन्होंने कहा कि देश में मांग पूरी करने के लिए अनाज का पर्याप्त भंडार है। अनाज का बड़ा भंडार गेहूं और चावल की रिकार्ड खरीद के कारण संभव हुआ। खरीद और वितरण की प्रमुख एजेंसी एफसीआई ने 2008-09 के विपणन सत्र [अक्टूबर से सितंबर] में 3।33 करोड़ टन चावल की खरीद की थी। (दैनिक जागरण)
मुखर्जी ने हालांकि भरोसा जताया कि अनाज की आपूर्ति में कोई कमी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि हमने अपेक्षाकृत ऊंची वृद्धि दर की होती, लेकिन सखा और बाद में कुछ हिस्सों में आई बाढ़ के असर ने कृषि की संभावनाओं और विशेष तौर पर खरीफ की फसल को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित किया।
हालांकि वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद [पीएमईएसी] द्वारा चालू वित्त वर्ष लिए जाहिर 6.75 फीसदी की वृद्धि दर के अनुमान का समर्थन किया लेकिन उन्होंने कृषि क्षेत्र के लिए अपेक्षाकृत अधिक निराशाजनक दृष्टिकोण पेश किया। इससे पहले पीएमईएसी ने इस सप्ताह अनुमान जाहिर किया था कि खाद्य उत्पादन में इस सत्र में 1.1 करोड़ टन की गिरावट होगी।
भारत ने 2008-09 के खरीफ सत्र में 9.915 करोड़ टन का रिकार्ड उत्पादन किया था। उन्होंने कहा कि सितंबर के आखिरी सप्ताह तक हमारी उम्मीद थी कि शुरुआती रबी फसल, हरियाणा एवं पंजाब द्वारा फसलों की सुरक्षा और चावल अच्छी पैदावार से हालात कुछ ठीक होंगे। हमें उम्मीद थी कि चावल के उत्पादन में एक से 1.2 करोड़ टन की कमी होगा लेकिन अब लगता है कि चावल के उत्पादन में 1.5 से 1.6 करोड़ टन की कमी आएगी।
देश के आधे हिस्से में सूखे ने बुवाई प्रक्रिया को बाधित किया है जिससे धान की फसल की बुवाई में करीब 60 लाख हेक्टेयर की कमी आई और आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने खड़ी फसल को प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। आंध्र जो चावल उत्पादन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है वह सूखे से प्रभावित नहीं था लेकिन यह हाल में आई बाढ़ से प्रभावित हुआ।
मंत्री ने हालांकि कुछ प्रभावित क्षेत्रों में मुख्यमंत्रियों की पहल की प्रशंसा की जिन्होंने बिजली के लिए ज्यादा भुगतान किया ताकि सिंचाई की सुविधा मुहैया कराई जा सके और इस तरह नुकसान में कमी आई। मुखर्जी ने कहा कि इसलिए यदि आप बिहार, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब का देखें तो मुख्यमंत्रियों की सूझ-बूझ और दूरदेशी का भला हो, उन्होंने बहुत अधिक बिजली मुहैया कराई ताकि भूमिगत जल का उपयोग किया जा सके। उन्होंने फसलों की सुरक्षा की। इसलिए उतना नुकसान नहीं हुआ हालांकि प्रभावित जरुर हुआ।
इसी हफ्ते कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि पंजाब और हरियाणा में चावल का उत्पादन सूखे के बावजूद पिछले साल के स्तर पर बना रह सकता है। केंद्रीय भंडार में इन दोनों राज्यों को योगदान सबसे अधिक होता है। उन्होंने कहा कि देश में मांग पूरी करने के लिए अनाज का पर्याप्त भंडार है। अनाज का बड़ा भंडार गेहूं और चावल की रिकार्ड खरीद के कारण संभव हुआ। खरीद और वितरण की प्रमुख एजेंसी एफसीआई ने 2008-09 के विपणन सत्र [अक्टूबर से सितंबर] में 3।33 करोड़ टन चावल की खरीद की थी। (दैनिक जागरण)
हल्दी वायदा में कभी भी हो सकती है मुनाफा वसूली
वायदा बाजार में जबरदस्त ऊंचे भाव पर पहुंच चुकी हल्दी में मुनाफा वसूली होने के आसार बढ़ गए हैं। स्टॉक कमजोर होने से चालू महीने में हल्दी की कीमतों में 23 फीसदी की तेजी आ चुकी है। हाजिर बाजार में आई तेजी से वायदा बाजार में भी इस दौरान 27।6 फीसदी की भारी बढ़ोतरी हो चुकी है। उत्पादक मंडियों में हल्दी का मात्र पांच से छह लाख (एक बोरी 70 किलो) ही स्टॉक बचा हुआ है। नई फसल की आवक 15 जनवरी के बाद शुरू होगी। साथ ही आवक का दबाव फरवरी महीने में बनेगा। स्टॉकिस्टों की कमजोर बिकवाली से हाजिर बाजार में हल्दी की मौजूदा कीमतों में और तेजी के आसार हैं। वायदा में भारी बढ़तनेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) में दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में करीब 27.6 फीसदी की भारी तेजी आ चुकी है। पहली अक्टूबर को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध के भाव 7,173 रुपये प्रति क्विंटल थे। स्टॉक कमजोर होने से निवेशकों द्वारा भारी खरीद किये जाने से शुक्रवार को इसके भाव बढ़कर 9,159 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। आर आर फाइनेंशियल प्राइवेट लिमिटेड के कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि भाव काफी ऊंचे हो चुके हैं, इसलिए कभी भी निवेशकों की मुनाफा वसूली आ सकती है। दिसंबर महीने के वायदा में इस समय करीब 11,160 लॉट के खड़े सौदे हुए हैं।हाजिर में स्टॉक कमनिजामाबाद मंडी स्थित मैसर्स मनसाराम योगेश कुमार के प्रोपराइटर पूनम चंद गुप्ता ने बताया कि उत्पादक मंडियों में इस समय मात्र पांच-छह लाख बोरी का ही स्टॉक है। नई फसल आने में अभी करीब ढाई महीने का समय है। घरेलू और निर्यातकों को मिलाकर हर महीने करीब दो से ढाई लाख बोरी की खपत हो रही है। इसीलिए स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आ रही है। इससे तेजी को बल मिला है। प्रमुख उत्पादक मंडी इरोड़ में करीब दो लाख बोरी, डुग्गीराला में 1.25 लाख बोरी, निजामाबाद में 30,000 हजार बोरी, वारंगल में 25,000 हजार बोरी, कड़प्पा में 25,000 हजार बोरी, और महाराष्ट्र की नांदेड़, सांगली व अन्य मंडियों में करीब एक लाख बोरी का स्टॉक बचा हुआ है। उड़ीसा की बुरहानपुर मंडी में मात्र 15-20 हजार बोरी का स्टॉक है। गुप्ता ने बताया कि स्टॉक कम होने और मसाला निर्माताओं की अच्छी मांग से तेजी बनी हुई है। सर्दी के साथ-साथ ब्याह-शादियों का सीजन शुरू हो गया है, इसलिए हल्दी की मांग भी पहले की तुलना में बढ़ी है। नई फसल की आवक 15 जनवरी के बाद शुरू होगी इसलिए नवंबर-दिसंबर महीनें में हल्दी के भाव तेज ही बने रह सकते हैं।ऊंचे भावों में निर्यात घटाघरेलू बाजार में भाव ऊंचे होने और डॉलर कमजोर होने से सिंतबर महीने में भारत से हल्दी के निर्यात में कमी आई है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार सितंबर महीने में देश से हल्दी के निर्यात में 10.5 फीसदी की कमी होने से कुल निर्यात 4,250 टन का ही हुआ। पिछले साल की समान अवधि में इसका निर्यात 4,750 टन का हुआ था। घरेलू मंडियों में भाव रिकार्ड स्तर पर चल रहे हैं, इसलिए आगामी दो-तीन महीने निर्यात कमजोर ही रहने की उम्मीद है। अप्रैल से अगस्त के दौरान भारत से हल्दी का निर्यात तीन फीसदी बढ़ा था। इस दौरान कुल निर्यात 25,500 टन का हुआ था, जबकि पिछले साल अप्रैल से अगस्त के दौरान 24,875 टन का ही निर्यात हुआ था। चालू वित्त वर्ष में भारतीय मसाला बोर्ड ने निर्यात का लक्ष्य 51,000 टन का रखा है।पैदावार में बढ़ोतरी की संभावनामेसर्स ज्योति ट्रेडिंग कंपनी के प्रोपराइटर सुभाष गुप्ता ने बताया कि महंगे भाव को देखते हुए चालू बुवाई सीजन में किसानों ने हल्दी की बुवाई ज्यादा क्षेत्रफल में की है। हालांकि हाल ही में आई बाढ़ से डुग्गीराला में फसल को कुछ नुकसान भी हुआ है। नये सीजन में देश में हल्दी का उत्पादन बढ़कर 52-55 लाख बोरी होने की संभावना है, जबकि पिछले साल उत्पादन 43 लाख बोरी का हुआ था। बिकवाली कम आने से निजामाबाद मंडी में हल्दी के दाम बढ़कर 10,000 रुपये प्रति क्विंटल के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गये हैं। एक अक्टूबर को निजामाबाद में इसके भाव 8,100 रुपये प्रति क्विंटल थे। इसी तरह से इरोड़ मंडी में हाजिर भाव बढ़कर 10,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गये। चालू महीने में इसकी कीमतों में करीब 1,900 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है।rana@businessbhaskar.net (आर अस राणा)
छत्तीसगढ़ में 'नो एंट्री'
रायपुर October 25, 2009
छत्तीसगढ़ सरकार ने आनुवांशिक रूप से संशोधित बीटी बैगन की व्यावसायिक खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह फैसला राज्य के कृषि विशेषज्ञों और विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से राय लेने के बाद किया गया है।
बीटी बैगन के खिलाफ व्यापक विरोध ने भी इस पर प्रतिबंध में अहम भूमिका निभाई है। छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने कहा, 'वरिष्ठ अधिकारियों और कृषि विशेषज्ञों से राय लेने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने आंनुवांशिक रूप से संशोधित बीटी बैगन की राज्य में व्यावसायिक खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है।'
मंत्री ने कहा कि बीटी बैगन की खेती राज्य में तब तक प्रतिबंधित रहेगी, जब तक इस पर पूरा शोध और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन नहीं कर लिया जाता है। राज्य सरकार ने केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को इस सिलसिले में एक पत्र भी भेजा है और बीटी बैगन की खेती को अनुमति दिए जाने पर सवाल उठाया है।
भारत सरकार की जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी ने हाल ही में बीटी बैगन की व्यावसायिक खेती को सैध्दांतिक मंजूरी दे दी है, जिसमें इसकी खेती को कीटों से सुरक्षा मिलती है। अभी पर्यावरण मंत्रालय से इसे अनुमति मिलना बाकी है, उसके बाद बीटी बैगन पहली खाद्य फसल होगी, जिसे मंजूरी मिल जाएगी। (बीएस हिन्दी)
छत्तीसगढ़ सरकार ने आनुवांशिक रूप से संशोधित बीटी बैगन की व्यावसायिक खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह फैसला राज्य के कृषि विशेषज्ञों और विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से राय लेने के बाद किया गया है।
बीटी बैगन के खिलाफ व्यापक विरोध ने भी इस पर प्रतिबंध में अहम भूमिका निभाई है। छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने कहा, 'वरिष्ठ अधिकारियों और कृषि विशेषज्ञों से राय लेने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने आंनुवांशिक रूप से संशोधित बीटी बैगन की राज्य में व्यावसायिक खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है।'
मंत्री ने कहा कि बीटी बैगन की खेती राज्य में तब तक प्रतिबंधित रहेगी, जब तक इस पर पूरा शोध और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन नहीं कर लिया जाता है। राज्य सरकार ने केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को इस सिलसिले में एक पत्र भी भेजा है और बीटी बैगन की खेती को अनुमति दिए जाने पर सवाल उठाया है।
भारत सरकार की जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी ने हाल ही में बीटी बैगन की व्यावसायिक खेती को सैध्दांतिक मंजूरी दे दी है, जिसमें इसकी खेती को कीटों से सुरक्षा मिलती है। अभी पर्यावरण मंत्रालय से इसे अनुमति मिलना बाकी है, उसके बाद बीटी बैगन पहली खाद्य फसल होगी, जिसे मंजूरी मिल जाएगी। (बीएस हिन्दी)
प्रसंस्करण उद्योग होगा 258 अरब डॉलर का
मुंबई October 25, 2009
भारत का खाद्य-प्रसंस्करण उद्योग 2015 तक 42.5 फीसदी बढ़कर 258 अरब डॉलर का हो जाएगा, जो फिलहाल 181 अरब डॉलर के बराबर है।
कारोबार बढ़ने से पूरी श्रृंखला में निवेश के मौके बढ़ेंगे। फिक्की और अर्न्स्ट ऐंड यंग द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया कि पिछले पांच साल में प्रति व्यक्ति खर्च योग्य (डिस्पोजेबल) आय में 8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जिससे खाद्य पदार्थों की खपत पर होने वाला व्यय 20 फीसदी बढ़ा है।
अध्ययन में कहा गया, 'आय में हुई बढ़ोतरी का बड़ा हिस्सा खाद्य पदार्थों पर खर्च होता है। फिलहाल भारत में खाद्य पदार्थों पर चीन के मुकाबले छठें भाग और अमेरिका के मुकाबले 16वें भाग के बराबर प्रति व्यक्ति व्यय होता है।' (बीएस हिन्दी)
भारत का खाद्य-प्रसंस्करण उद्योग 2015 तक 42.5 फीसदी बढ़कर 258 अरब डॉलर का हो जाएगा, जो फिलहाल 181 अरब डॉलर के बराबर है।
कारोबार बढ़ने से पूरी श्रृंखला में निवेश के मौके बढ़ेंगे। फिक्की और अर्न्स्ट ऐंड यंग द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया कि पिछले पांच साल में प्रति व्यक्ति खर्च योग्य (डिस्पोजेबल) आय में 8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जिससे खाद्य पदार्थों की खपत पर होने वाला व्यय 20 फीसदी बढ़ा है।
अध्ययन में कहा गया, 'आय में हुई बढ़ोतरी का बड़ा हिस्सा खाद्य पदार्थों पर खर्च होता है। फिलहाल भारत में खाद्य पदार्थों पर चीन के मुकाबले छठें भाग और अमेरिका के मुकाबले 16वें भाग के बराबर प्रति व्यक्ति व्यय होता है।' (बीएस हिन्दी)
मांग बढ़ने से रॉ-कॉटन निर्यात बढ़ने का सिलसिला शुरू
विदेशों से मांग बढ़ने के कारण काफी समय से सुस्त पड़े रॉ-कॉटन के निर्यात में तेजी आनी शुरू हो गई है। अगस्त में जहां रॉ-कॉटन का निर्यात 1.18 लाख गांठ (एक गांठ = 170 किलो) का हुआ था, वहीं पिछले महीने ऑर्डर न मिलने और विदेशों से मांग न होने के कारण यह 56,630 गांठ तक सिमट गया था, लेकिन कारोबारियों के अनुसार बीते लगभग दस दिनों से इसके निर्यात में बढ़ोतरी शुरू हो गई है।रॉ-कॉटन कारोबारी समीर लोढ़ा के अनुसार चूंकि दुनिया में भारत को छोड़कर अन्य देशों में कॉटन का उत्पादन कम हुआ है, इसीलिए देश से निर्यात बढ़ रहा है। उल्लेखनीय है कि विश्व में चीन के बाद कॉटन उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। यहां से प्रतिवर्ष लगभग 50 से 80 लाख गांठ का कॉटन निर्यात होता है। पिछले एक साल से वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण भारत से अमेरिका व यूरोपीय देशों को भेजे जाने वाले रॉ-कॉटन का निर्यात बेहद कम हो गया था। कॉटन निर्यातक शारिक के अनुसार देश में कॉटन की अच्छी पैदावार और त्योहारों की वजह से विदेश से बढ़ी मांग की वजह से ही रॉ-कॉटन के निर्यात को बढ़ावा मिल रहा है। वैश्विक स्तर पर अगर कॉटन की पैदावार के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2008 में 234 लाख टन कॉटन की पैदावार हुई थी। चालू वर्ष पूर विश्व में कॉटन की पैदावार 231 लाख टन होने का अनुमान है। भारत में वर्ष 2007-08 में 315 लाख गांठों का उत्पादन हुआ था जो वर्ष 2008-09 में घट कर 290 लाख गांठ तक हो गया था। कॉटन कॉरपोरशन ऑफ इंडिया का अनुमान है कि चालू वर्ष 2009-10 में देश में कॉटन का उत्पादन 305 लाख गांठ रहेगा।पिछले वर्ष देश में कॉटन की खेती 94.06 लाख हेक्टेयर में हुई थी। इस वर्ष कम बारिश के बावजूद कॉटन की बुआई 96.46 लाख हेक्टेयर में हुई है। उल्लेखनीय है कि कॉटन की पैदावार को बढ़ाने के लिए सरकार ने इसका समर्थन मूल्य पिछले साल की तरह इस साल भी 2850 रुपए प्रति क्विंटल ही रखा है। रॉ-कॉटन का निर्यात बढ़ने के कारण महाराष्ट्र समेत देश की अन्य बड़ी मंडियों में भी कपास की आवक बढ़ने लगी है। महाराष्ट्र में प्रतिदिन लगभग 20 हजार गांठों की आवक मंडियों में हो रही है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की मंडियो में रोजाना तकरीबन 60 हजार गांठें आ रही है। इसी तरह उत्तर भारत में पंजाब और हरियाणा की मंडियो में भी लगभग 20 से 22 हजार गांठें रोज आ रही हैं। (बिसनेस भास्कर)
बीटी बैगन के विरोध में किसान
नई दिल्ली October 25, 2009
किसानों ने बीटी बैगन का विरोध करने के लिए जबरदस्त एकजुटता दिखाई है। किसानों के संगठनों ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वे आनुवांशिक रूप से संशोधित बैगन की खेती करने को तैयार नहीं हैं।
बैगन की सब्जी पूरे देश में लोकप्रिय है। नेताओं ने शांतिपूर्ण ढंग से पर्याप्त विरोध किया है, लेकिन अगर उनकी बात नहीं सुनी जाती है तो अब वे प्रत्यक्ष कार्रवाई के मूड में नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि देश के विभिन्न बैगन उत्पादक राज्यों के 20 करोड़ किसान उनके साथ हैं।
देश के किसानों के चार बड़े संगठनों ने इस सिलसिले में हाल ही में दिल्ली में बैठक की। इसमें उत्तर भारत के 11.5 करोड़ किसानों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू), महाराष्ट्र का शेतकरी संघटना, कर्नाटक राज्य रैयत संघ और तमिलनाडु की तमिझगा व्यावसायिगल संघम शामिल हुए।
इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने माहिको द्वारा विकसित बीटी बैगन को नियामक संस्था द्वारा अनुमति दिए जाने के फैसले पर विचार किया। पिछले सप्ताह जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) ने देश के पहले जीएम फूड की फसल , बीटी बैगन को मंजूरी दे दी। इससे सरकार को इसके व्यावसायीकरण की अनुमति देने का रास्ता साफ हो गया है। इस फैसले की तीखी प्रतिक्रिया हुई।
भारतीय किसान आंदोलन की समन्वय समिति के तत्वावधान में हुई किसानों के संगठन की बैठक में युध्दवीर सिंह के नेतृत्व वाली समन्वय समिति के आह्वान पर दिल्ली में हुई बैठक में सरकार के न सुनने की स्थिति में 'प्रत्यक्ष कार्रवाई' का फैसला किया गया।
दरअसल सवाल बुनियादी हैं। देश में आखिर जीएम बैगन की जरूरत क्या है, जबकि इस समय इसका अतिरिक्त उत्पादन होता है? जीएम बैगन पर विश्वास क्यों किया जा रहा है, जबकि इसके खिलाफ मानकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं? सरकार उन तरीकों का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रही है, जो पहले से ही जांचे परखे और उत्पादन बढ़ाने के लिहाज से विश्वसनीय हैं और उसे विश्व बैंक का भी समर्थन मिल रहा है?
बीटी बैगन को लेकर तरह तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। पहला मामला तो कीटनाशकों के प्रयोग से जुड़ा हुआ है। इस बीज के प्रयोग से कीटनाशकों की जरूरत कम नहीं होगी, क्योंकि इसका बीज तैयार करने वाली कं पनी माहियो ने खुद कहा है कि इसमें फल की गुणवत्ता और शूट बोरर का ही ध्यान रखा गया है।
अन्य कीट जैसे एफिड, जासिड्स, ह्वाइट फ्लाई और कवकों के हमलों के बचाव को ध्यान में रखकर कुछ सुधार नहीं किया गया है। सेतकारी संघम के विजय जावंधिया ने कहा कि कीटों से बैगन की फसल को नुकसान 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है, जो अन्य फसलों को होने वाले नुकसान को देखते हुए सामान्य है।
उन्होंने कहा, 'हमें विभिन्न बीमारियों से बैगन को बचाने की जरूरत है, न कि जीएम किस्म की- जो सिर्फ एक कीट से ही सुरक्षा देता है। बीटी बैगन उगाने के लिए भारी मात्रा में कीटनाशकों की जरूरत पड़ेगी, जैसा बीटी कॉटन के मामले में हो रहा है।'
केंद्र सरकार के अनुदान से चलने वाले सिकंदराबाद स्थित सेंटर फार सस्टेनेबल एग्रीकल्चर का कहना है कि उसके पास किसानों की समस्या का समाधान है। इसके कार्यकारी निदेशक जीवी रामानजेयुलु ने बैठक में चौंकाने वाले रहस्योद्धाटन किए।
आंध्र प्रदेश के जिन किसानों ने पारिस्थितिकीय रूप से अनुकू ल और आर्थिक रूप से बेहतर तरीकों को चुना, कीटनाशकों का उचित प्रयोग किया, उन्हें बेहतर मुनाफा मिला। साथ ही पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी उत्पाद बेहतर साबित हुए। आने वाले दिनों में किसान अपनी आवाज जोरदार तरीके से उठाना चाहते हैं। सिंह ने चेतावनी दी कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनती है तो किसान इसके खिलाफ मोर्चेबंदी कर देंगे। (बीएस हिन्दी)
किसानों ने बीटी बैगन का विरोध करने के लिए जबरदस्त एकजुटता दिखाई है। किसानों के संगठनों ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वे आनुवांशिक रूप से संशोधित बैगन की खेती करने को तैयार नहीं हैं।
बैगन की सब्जी पूरे देश में लोकप्रिय है। नेताओं ने शांतिपूर्ण ढंग से पर्याप्त विरोध किया है, लेकिन अगर उनकी बात नहीं सुनी जाती है तो अब वे प्रत्यक्ष कार्रवाई के मूड में नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि देश के विभिन्न बैगन उत्पादक राज्यों के 20 करोड़ किसान उनके साथ हैं।
देश के किसानों के चार बड़े संगठनों ने इस सिलसिले में हाल ही में दिल्ली में बैठक की। इसमें उत्तर भारत के 11.5 करोड़ किसानों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू), महाराष्ट्र का शेतकरी संघटना, कर्नाटक राज्य रैयत संघ और तमिलनाडु की तमिझगा व्यावसायिगल संघम शामिल हुए।
इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने माहिको द्वारा विकसित बीटी बैगन को नियामक संस्था द्वारा अनुमति दिए जाने के फैसले पर विचार किया। पिछले सप्ताह जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) ने देश के पहले जीएम फूड की फसल , बीटी बैगन को मंजूरी दे दी। इससे सरकार को इसके व्यावसायीकरण की अनुमति देने का रास्ता साफ हो गया है। इस फैसले की तीखी प्रतिक्रिया हुई।
भारतीय किसान आंदोलन की समन्वय समिति के तत्वावधान में हुई किसानों के संगठन की बैठक में युध्दवीर सिंह के नेतृत्व वाली समन्वय समिति के आह्वान पर दिल्ली में हुई बैठक में सरकार के न सुनने की स्थिति में 'प्रत्यक्ष कार्रवाई' का फैसला किया गया।
दरअसल सवाल बुनियादी हैं। देश में आखिर जीएम बैगन की जरूरत क्या है, जबकि इस समय इसका अतिरिक्त उत्पादन होता है? जीएम बैगन पर विश्वास क्यों किया जा रहा है, जबकि इसके खिलाफ मानकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं? सरकार उन तरीकों का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रही है, जो पहले से ही जांचे परखे और उत्पादन बढ़ाने के लिहाज से विश्वसनीय हैं और उसे विश्व बैंक का भी समर्थन मिल रहा है?
बीटी बैगन को लेकर तरह तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। पहला मामला तो कीटनाशकों के प्रयोग से जुड़ा हुआ है। इस बीज के प्रयोग से कीटनाशकों की जरूरत कम नहीं होगी, क्योंकि इसका बीज तैयार करने वाली कं पनी माहियो ने खुद कहा है कि इसमें फल की गुणवत्ता और शूट बोरर का ही ध्यान रखा गया है।
अन्य कीट जैसे एफिड, जासिड्स, ह्वाइट फ्लाई और कवकों के हमलों के बचाव को ध्यान में रखकर कुछ सुधार नहीं किया गया है। सेतकारी संघम के विजय जावंधिया ने कहा कि कीटों से बैगन की फसल को नुकसान 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है, जो अन्य फसलों को होने वाले नुकसान को देखते हुए सामान्य है।
उन्होंने कहा, 'हमें विभिन्न बीमारियों से बैगन को बचाने की जरूरत है, न कि जीएम किस्म की- जो सिर्फ एक कीट से ही सुरक्षा देता है। बीटी बैगन उगाने के लिए भारी मात्रा में कीटनाशकों की जरूरत पड़ेगी, जैसा बीटी कॉटन के मामले में हो रहा है।'
केंद्र सरकार के अनुदान से चलने वाले सिकंदराबाद स्थित सेंटर फार सस्टेनेबल एग्रीकल्चर का कहना है कि उसके पास किसानों की समस्या का समाधान है। इसके कार्यकारी निदेशक जीवी रामानजेयुलु ने बैठक में चौंकाने वाले रहस्योद्धाटन किए।
आंध्र प्रदेश के जिन किसानों ने पारिस्थितिकीय रूप से अनुकू ल और आर्थिक रूप से बेहतर तरीकों को चुना, कीटनाशकों का उचित प्रयोग किया, उन्हें बेहतर मुनाफा मिला। साथ ही पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी उत्पाद बेहतर साबित हुए। आने वाले दिनों में किसान अपनी आवाज जोरदार तरीके से उठाना चाहते हैं। सिंह ने चेतावनी दी कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनती है तो किसान इसके खिलाफ मोर्चेबंदी कर देंगे। (बीएस हिन्दी)
गन्ने पर राजनीति खत्म करने की कवायद
नई दिल्ली October 25, 2009
अब राज्यों के गन्ने के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करने से उनके बजट पर असर पड़ सकता है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि अगर राज्य सरकारें गन्ने का दाम उसके द्वारा तय की गई कीमत से ज्यादा घोषित करती हैं तो उसका भुगतान राज्यों को खुद करना पड़ेगा। केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत प्रदत्त अधिकार से एक अध्यादेश जारी किया।
इसके माध्यम से शुगरकेन (कंट्रोल) ऑर्डर 1966 में संशोधन किया गया ताकि सांविधिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) की जगह 'उचित और लाभकारी मूल्य' (फेयर ऐंड रेम्युनेरेटिव प्राइस-एफआरपी) ले सके जिसे समय समय पर तय किया जाएगा।
पिछली 22 अक्टूबर को हुए इस संशोधन आदेश में यह भी कहा गया, 'अगर कोई भी अथॉरिटी या राज्य सरकार एफआरपी से ज्यादा दाम की घोषणा करती है... तो उस अथॉरिटी या राज्य सरकार को उस राशि का भुगतान करना होगा, जो उसने तय मूल्य के ऊपर घोषित किया गया है।'
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु 5 ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) की घोषणा की है। वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और बिहार एसएमपी का पालन कर रहे हैं। सामान्यतया एसएपी, एसएमपी से ज्यादा और राजनीति से प्रेरित होता है।
एसएपी के आधार पर भुगतान करने वाली मिलें लामबंद हो गई हैं और वे इस मामले में पारदर्शिता की मांग कर रही हैं। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकारों को एसएपी तय करने का पूरा हक है। नए कदम से उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य उच्च एसएपी तय करने से हतोत्साहित होंगे।
बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी मिल्स जैसी प्रमुख कंपनियां, जो एसएपी के आधार पर किसानों को भुगतान करती हैं, अब महाराष्ट्र और कर्नाटक में संचालित कंपनियों के बराबर ही मूल्य भुगतान का फायदा ले सकेंगी।
यह संशोधन, अधिनियम के सेक्शन 3 के तहत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र को यह अधिकार है कि कीमतें ज्यादा होने से रोकने के लिए और आवश्यक जिंसों के उचित वितरण वह नियम बना सकती है।
उत्तर प्रदेश की एक बड़ी चीनी मिल के अधिकारी ने कहा, ' एकसमान और स्थिर दाम से किसानों को उचित समय पर भुगतान सुनिश्चित हो सकेगा। पिछले दिनों में चीनी मिलों के मुनाफे के बारे में सोचे बगैर एसएपी में बार-बार बढ़ोतरी की गई, जिससे भुगतान संबंधी दिक्कतें आईं।
एफआरपी की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि यह एसएपी से कम ही होगा, जिससे उन राज्यों की मिलों को फायदा होगा, जो एसएपी के आधार पर भुगतान करती हैं।' इस संशोधन से केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को भी राहत मिलेगी, जो अलग-अलग दरों पर लेवी दरें घोषित करने के दबाव में था। सर्वोच्च न्यायालय ने एसएपी के मुताबिक लेवी चीनी के मूल्य भुगतान का आदेश दिया था। (बीएस हिन्दी)
अब राज्यों के गन्ने के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करने से उनके बजट पर असर पड़ सकता है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि अगर राज्य सरकारें गन्ने का दाम उसके द्वारा तय की गई कीमत से ज्यादा घोषित करती हैं तो उसका भुगतान राज्यों को खुद करना पड़ेगा। केंद्र सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत प्रदत्त अधिकार से एक अध्यादेश जारी किया।
इसके माध्यम से शुगरकेन (कंट्रोल) ऑर्डर 1966 में संशोधन किया गया ताकि सांविधिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) की जगह 'उचित और लाभकारी मूल्य' (फेयर ऐंड रेम्युनेरेटिव प्राइस-एफआरपी) ले सके जिसे समय समय पर तय किया जाएगा।
पिछली 22 अक्टूबर को हुए इस संशोधन आदेश में यह भी कहा गया, 'अगर कोई भी अथॉरिटी या राज्य सरकार एफआरपी से ज्यादा दाम की घोषणा करती है... तो उस अथॉरिटी या राज्य सरकार को उस राशि का भुगतान करना होगा, जो उसने तय मूल्य के ऊपर घोषित किया गया है।'
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु 5 ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) की घोषणा की है। वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और बिहार एसएमपी का पालन कर रहे हैं। सामान्यतया एसएपी, एसएमपी से ज्यादा और राजनीति से प्रेरित होता है।
एसएपी के आधार पर भुगतान करने वाली मिलें लामबंद हो गई हैं और वे इस मामले में पारदर्शिता की मांग कर रही हैं। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकारों को एसएपी तय करने का पूरा हक है। नए कदम से उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य उच्च एसएपी तय करने से हतोत्साहित होंगे।
बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी मिल्स जैसी प्रमुख कंपनियां, जो एसएपी के आधार पर किसानों को भुगतान करती हैं, अब महाराष्ट्र और कर्नाटक में संचालित कंपनियों के बराबर ही मूल्य भुगतान का फायदा ले सकेंगी।
यह संशोधन, अधिनियम के सेक्शन 3 के तहत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र को यह अधिकार है कि कीमतें ज्यादा होने से रोकने के लिए और आवश्यक जिंसों के उचित वितरण वह नियम बना सकती है।
उत्तर प्रदेश की एक बड़ी चीनी मिल के अधिकारी ने कहा, ' एकसमान और स्थिर दाम से किसानों को उचित समय पर भुगतान सुनिश्चित हो सकेगा। पिछले दिनों में चीनी मिलों के मुनाफे के बारे में सोचे बगैर एसएपी में बार-बार बढ़ोतरी की गई, जिससे भुगतान संबंधी दिक्कतें आईं।
एफआरपी की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि यह एसएपी से कम ही होगा, जिससे उन राज्यों की मिलों को फायदा होगा, जो एसएपी के आधार पर भुगतान करती हैं।' इस संशोधन से केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को भी राहत मिलेगी, जो अलग-अलग दरों पर लेवी दरें घोषित करने के दबाव में था। सर्वोच्च न्यायालय ने एसएपी के मुताबिक लेवी चीनी के मूल्य भुगतान का आदेश दिया था। (बीएस हिन्दी)
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