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03 अगस्त 2009

एशियाई देशों को भा रही है भारतीय मसालों की खुशबू

कोच्चि- एशियाई देश भारतीय मसालों के बड़े आयातकों के रूप में उभरकर सामने आए हैं। उन्होंने भारतीय मसालों आयातकों के रूप में अमेरिका और यूरोपीय देशों का दबदबा खत्म कर दिया है। एशियाई देशों में मसालों के आयात का बढ़ा रुझान पिछले कुछ सालों में सामने आया है लेकिन हाल के दिनों में भारत के स्पाइस बास्केट में मिर्च, जीरा, धनिया और पुदीना जैसे मसालों का महत्व बढ़ने से यह और साफ हो गया है। मलेशिया, चीन, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में मसालों की खपत में तेजी आई है। पश्चिम एशिया के सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमरीत जैसे देश तो भारतीय मसालों के पुराने शौकीन रहे ही हैं। 2008-09 में पश्चिम और पूर्वी के देशों ने मिलकर करीब 66 फीसदी भारतीय मसालों का आयात किया। इसमें पश्चिम एशियाई देशों की हिस्सेदारी करीब 46 फीसदी थी। मूल्य के लिहाज से मसालों के निर्यात में एशियाई देशों की हिस्सेदारी 48 फीसदी रही और इनमें पूर्वी एशियाई देशों की हिस्सेदारी 36 फीसदी रही। करीब चार साल पहले तक भारतीय मसालों के कुल निर्यात में एशियाई देशों की हिस्सेदारी 35 फीसदी थी। इनमें पूर्वी देशों की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा नहीं थी।
स्पाइस बोर्ड के चैयरमैन वी जे कुरियन ने ईटी को बताया, 'एशिया और लातिन अमेरिका के देश हमारे मुख्य फोकस में हैं। हमारे प्रयासों के बाद ही एशियाई देशों में आशाजनक नतीजे देखने को मिले।' भारत से मसालों का आयात करने वाले कुछ एशियाई देश तो मसालों की गुणवत्ता बढ़ाकर उनका अपने यहां से निर्यात भी कर रहे हैं। इसी की देखा-देखी स्पाइसेस बोर्ड ने भी देश में स्पाइस पार्क बनाने की योजना बनाई है। निर्यात में पहले काली मिर्च और इलायची का दबदबा रहता था लेकिन उसकी जगह मिर्च, मिन्ट उत्पादों, स्पाइस ऑयल, ओलियोरेजिन और जीरे ने ले ली है। मसालों के कुल निर्यात में मात्रा के आधार पर सबसे अधिक 40 फीसदी हिस्सेदारी मिर्च की रही। भारत से 2008-09 में कुल 4,70520 टन मसाले का निर्यात किया गया, जिसका कुल मूल्य 5300 करोड़ रुपए रहा। (ET Hindi)

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