नई दिल्ली August 26, 2009
बरसात के अभाव में धान की खेती से चूक गए किसान पिछले 10-15 दिनों में हुई बारिश का लाभ उठाते हुए अपने खेतों में सरसों की बुआई कर सकते हैं।
इस खेती से उन्हें सरसों के साथ-साथ गेहूं बोने का भी मौका मिल जाएगा। दिसंबर तक तैयार होने वाली सरसों की फसल से उन्हें कीमत भी अच्छी मिलेगी। क्योंकि खरीफ में इस साल तिलहन की बुआई में पिछले साल के मुकाबले 7 फीसदी की गिरावट है।
हरियाणा एवं पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में किसानों में सरसों की बुआई भी शुरू कर दी है। सरसों मुख्य रूप से रबी की फसल होती है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, एवं दिल्ली के आसपास के इलाकों में बारिश की कमी से किसानों ने धान की रोपाई ही नहीं की। या फिर पानी पटाने का आर्थिक भार नहीं सहने के कारण 40 फीसदी तक धान की खेती को नष्ट कर दिया।
पिछले साल के मुकाबले धान की बुआई देश भर में 18 फीसदी से अधिक कम हुई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों के मुताबिक ये किसान हाल-फिलहाल हुई बारिश से बनी नमी का फायदा उठाते हुए सरसों की बुआई कर सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने अलग किस्म के सरसों बीज तैयार किए हैं, जिनकी फसल महज 110 दिनों में पक जाती हैं। इन्हें पूसा अग्रणी, पूसा जेके-6 एवं पूसा महक के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती आसानी से खरीफ के मौसम में की जा सकती है। सिर्फ बालूयुक्त मिट्टी में इसकी खेती इस मौसम में नहीं हो सकती।
आईसीएआर के अधिकारी डॉ. जेपीएस डबास के मुताबिक सरसों की इस खेती के लिए दिसंबर मध्य तक सिर्फ दो बार पानी की जरूरत होगी। और 15 दिसंबर तक यह फसल पक जाएगी। ऐसे में किसान 15 जनवरी तक गेहूं की बुआई भी कर सकते हैं।
गेहूं की दो किस्मों की बीज पूसा डब्ल्यू आर 544 एवं पूसा गोल्ड की बुआई 15 जनवरी तक आसानी से की जा सकती है। इस प्रकार से सरसों की खेती करने वाले किसान आसानी से धान के नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। किसानों के लिए राहत की बात यह है कि सरसों की बुआई में उनकी लागत प्रति एकड़ 100-150 रुपये तक आएगी और उपज प्रति हेक्टेयर 18-20 क्विंटल होगी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को सिर्फ संतुलित मात्रा में खाद डालने की जरूरत होगी। सल्फर एवं पोटाश खेतों को सूख से लड़ने की क्षमता देने के साथ सरसों में तेल की मात्रा को भी बढ़ाते है। इस साल 20 अगस्त तक कुल 152.47 लाख हेक्टेयर जमीन पर तिलहन की बुआई की गयी है।
जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान 164।17 लाख हेक्टेयर जमीन पर तिलहन की बुआई हुई थी। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे में इस मौसम में सरसों उगाने वाले किसानों को कीमत भी अच्छी मिल जाएगी। (बीएस हिन्दी)
27 अगस्त 2009
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