नई दिल्ली: अगर चावल पैदावार की वृद्धि दर में तेजी नहीं आई तो भारत 2020 तक इस अहम कमोडिटी का विशुद्ध आयातक बन सकता है। प्रमुख उद्योग चैंबर एसोचैम ने यह चेतावनी अपनी राइस रिपोर्ट 2009 में दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत अगले 10 साल तक उत्पादन में 1.75 फीसदी की वृद्धि दर बनाए रखने में नाकाम रहा तो उसे चावल का आयातक बनना पड़ सकता है। भारत में इस समय चावल उत्पादन 1.18 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। उसे इस रफ्तार में तेजी लानी पड़ेगी क्योंकि इस दर से साल 2020 तक चावल उत्पादन 10.8 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। तब देश में 11.8 करोड़ टन चावल की जरूरत पड़ने का अनुमान है।
ऐसी हालत में भारत चावल का पक्का आयातक बन जाएगा। चैंबर की रिपोर्ट इसके प्रेसिडेंट सज्जन जिंदल ने जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर देश में चावल के उत्पादन से ज्यादा खपत होती रही तो आने वाले वर्षों में स्थिति और बिगड़ सकती है। अगर समय पर इस स्थिति से निपटने के उपाय नहीं किए गए तो चावल के मामले में देश की आत्मनिर्भरता खतरे में पड़ जाएगी। ऐसे में अगर ज्यादा उत्पादन वाले बीजों का चरणबद्ध तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया और सिंचाई सुविधाओं को बेहतर बनाने की कोशिशों में देर हुई तो उत्पादन दर में बढ़ोतरी की रफ्तार घट सकती है। दूसरी तरफ, चावल के उपभोग में तेज बढ़ोतरी होने के आसार नजर आ रहे हैं। ऐसा प्रति व्यक्ति चावल के उपभोग में कमी आने पर भी होगा क्योंकि आबादी में बढ़ोतरी इसे आगे बढ़ाती रहेगी। उपभोग में बढ़ोतरी की रफ्तार उत्पादन में वृद्धि से तेज हो सकती है। इससे निर्यात पर प्रतिकूल असर होगा। उत्पादन वृद्धि दर में खासी गिरावट आने पर देश में खाद्यान्न की कमी और इस मोर्चे पर असुरक्षा की स्थिति पैदा होगी। (ET Hindi)
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