नई दिल्ली August 28, 2009
कम पानी में गेहूं की अधिक पैदावार से लिए अभी से तैयारी शुरू हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस दिशा में एक्वाफर्टिसीड्रिल नामक एक मशीन का आविष्कार किया है।
साथ ही रोग रहित एवं उन्नत किस्म के गेहूं बीज भी तैयार किए गए हैं। इस बात का खुलासा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में शुक्रवार को आयोजित अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ सम्मेलन में किया गया।
सम्मेलन में गेहूं पर अनुसंधान एवं शोध में जुटे देश भर के 250 से अधिक वैज्ञानिकों ने शिरकत की। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक एक्वाफर्टिसीड्रिल से बुआई करने के दौरान पानी की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि उस मशीन में ही पानी का टैंक लगा होता है।
उसी तरह लेजर प्लांटर से बुआई करने पर 20-25 फीसदी पानी की बचत होती है। करनाल स्थित गेहूं अनुसंधान केंद्र के परियोजना अधिकारी एसएस सिंह ने बताया कि गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत किस्म के रोग रहित बीज विकसित किए गए हैं। इनमें पीबीडब्ल्यू 500, डीडब्ल्यू 17, एचडी 2932, एचडी 2851 एवं एचडी 2824 नामक बीज शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि उत्तर पूर्व भारत में एचडी 2733, एचडी 2643 जैसे बीज अधिक कारगार साबित हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने धान की फसल कटने के बाद बगैर खेत तैयार किए गेहूं की बुआई करने की भी सलाह दी।
उनका मानना है कि इससे लागत एवं समय दोनों की बचत होगी। और जल्दी बुआई करने से पैदावार में भी इजाफा होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक नमकयुक्त मिट्टी में गेहूं की तुलना में जौ की खेती ज्यादा उपयुक्त होगी।
इस साल जौ के उत्पादन में 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। आईसीएआर के महानिदेशक मंगला राय ने इस मौके पर कहा कि खरीफ के दौरान पैदावार में होने वाली कमी की भरपाई रोग रहित गेहूं की बुआई से की जा सकती है।
गेहूं की फसल में मुख्य रूप से पारला एवं पूरा रतवा व यूजी-99 नामक कीड़े लगते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि फसल को लगने वाले रोग में बदलाव आता रहता हैे इसलिए खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए रोगरोधी किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है। (बीएस हिन्दी)
29 अगस्त 2009
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