मुंबई August 21, 2009
करीब 70 अरब अमेरिकी डॉलर का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग इस साल 20 फीसदी की विकास दर हासिल कर पाएगा, इस बात की संभावना कम ही लग रही है।
जानकारी का अभाव, अपर्याप्त बुनियादी सेवाएं और पुरानी तकनीक इस राह में सबसे बड़ी बाधा साबित हो सकती है, जिससे वांछित विकास दर हासिल कर पाना टेढ़ी खीर हो गई है।
खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने करीब दो साल पहले यह लक्ष्य निर्धारित किया था और इसको ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र में शत-प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश की छूट देने का फैसला किया था।
भारत में खाद्य सामग्री के कारोबारी कार्यक्रम का संचालन करने वाले यूबीएम इंडिया के प्रोजेक्ट प्रबंधक बिपिन सिन्हा कहते हैं 'अभी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कोई खास तेजी नहीं देखी गई है और उस हिसाब से यह योजना सफल नहीं हो पाई है।'
देश के सुदूर क्षेत्र में रहने वाले किसानों को सरकार द्वारा खाद्य प्रसंस्करण उपकरण के आयात पर दी जाने वाली सुविधाओं की जानकारी नहीं है। इस बाबत सिन्हा कहते हैं 'अगर उनके पास थोडी बहुत जानकारी उपलब्ध भी है तो वेसुदूर गांव से यूरोपीय देश तक आयात के ऑर्डर के पहुंचने को लेकर काफी असुरक्षित महसूस करते हैं।'
ज्यादातर छोटे और मझोले किसान के पास इन उपकरणों को खरीदने के पैसे नहीं हैं। बैंक भी इन किसानों को इनके कर्ज भुगतान की क्षमता के बावजूद अव्यवस्थित आय और खर्च प्रबंधन की वजह से कर्ज देने से मुकड़ते हैं। किसानों की बात छोड़ दें, बड़ी कंपनियों ने भी इस क्षेत्र में कोल्ड चेन ट्रांसपोर्टेशन और भंडारण सहित बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण दिलचस्पी नहीं दिखाई है। खेतों से खपत या प्रसंस्करण केंद्र तक ले जाने में करीब 21 फीसदी उत्पाद इस्तेमाल के लायक नहीं रहते हैं। बकौल सिन्हा, अगर सुरक्षित उपाय किए जाएं तो देखरेख का अभाव और सड़ने से होने वाले नुकसान को कम से कम 4 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
सितंबर 2008 में खाद्य मंत्रालय ने भारतीय खाद्य उद्योग के 200 अरब डॉलर रहने का अनुमान लगाया था और इसके 2015 तक 10 फीसदी से कम विकास की रफ्तार से 310 अरब डॉलर होने की संभावना है। (BS Hindi)
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