24 अगस्त 2009
बासमती के एमईपी पर फैसला किसान विरोधी
केंद्र सरकार ने देश से चावल निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए बासमती चावल पर 1100 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लागू किया था। इसके पीछे असली वजह यह थी कि निर्यातक कम मूल्य का गैरबासमती चावल बासमती के नाम पर देश से निर्यात न करें। इसके पीछे मकसद देश में गैर बासमती चावल की उपलब्धता को बेहतर बनाए रखना था। आम आदमी और समाज के कमजोर वर्ग के लिए गैर-बासमती चावल की कीमतों पर नियंत्रण के लिए यह कवायद की गई थी। इसका फायदा भी हुआ। चालू खरीफ सीजन में चावल के उत्पादन में भारी गिरावट की आशंका के बावजूद कीमतें में बेतहाशा बढ़ोतरी नहीं हो रही है क्योंकि देश में चावल का पर्याप्त भंडार मौजूद है।सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात पर लगाई गई रोक को भी बरकरार रखा है और इसके अगले साल तक जारी रहने की संभावना है। लेकिन इसी बीच सरकार ने पिछले सप्ताह बासमती चावल के एमईपी को 300 डॉलर घटाकर 800 डॉलर प्रति टन करने का फैसला ले लिया। यह फैसला तब लिया गया जब सरकार को यह मालूम है कि जहां पिछले साल बेहतर गुणवत्ता के चावल पूसा-1121 को बासमती का दर्जा दे दिया गया था। साथ ही चालू साल में कमजोर मानसून के चलते किसानों से देरी से धान की रोपाई की और उस स्थिति में बासमती व पूसा-1121 की रोपाई को बेहतर समझा गया। यानि इस साल बासमती चावल का उत्पादन अपेक्षाकृत अधिक होने की संभावना है।अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले साल गैर-बासमती चावल की कीमतें भी 1000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी। इसके चलते ही सरकार ने बासमती के एमईपी को बढ़ाया था क्योंकि बासमती की आड़ में देश से गैरबासमती चावल का निर्यात होने शिकायतें आने लगी थी। वहीं इस समय भी बासमती को अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1500 डॉलर प्रति टन तक की कीमत मिल रही है। वहीं पारंपरिक बासमती के लिए कीमत 1800 डॉलर प्रति टन तक है। वहीं घरेलू बाजार में अभी भी पूसा-1121 धान के लिए कीमत 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक हैं। इसका चावल 7100 से 7300 रुपये प्रति क्ंिवटल तक बिक रहा है। पारंपरिक बासमती किस्मों के चावल की कीमत 9000 से 9500 रुपये क्विंटल तक मिल रही है।ऐसे में सरकार द्वारा एमईपी घटाने का फैसला उद्योग के पक्ष में जाएगा। इसकी वजह यह है कि दो माह बाद बाजार में बासमती और पूसा 1121 का धान बाजार में आने पर इसकी कीमत को 800 डॉलर प्रति टन के एमईपी से जोड़ा जाएगा। जबकि निर्यात ऊंची कीमतों पर ही होता रहेगा लेकिन किसान के लिए कंपनियां 1100 डॉलर प्रति टन की बजाय 800 डॉलर प्रति टन की कीमत को बेंचमार्क की तरह इस्तेमाल करेंगी। चावल निर्यातकों द्वारा सरकार पर लगातार एमईपी में कटौती के लिए दबाव बना रही थी। इसके पीछे पाकिस्तान से हो रहे सस्ते निर्यात से मिल रही प्रतिस्पर्धा को आधार बनाया जा रहा था। लेकिन इस बात में बहुत दम नहीं है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कहीं ज्यादा कीमत मिल रही है। वहीं पूसा-1121 ने एक बाजार हासिल कर लिया है यह किस्म पाकिस्तान के पास नहीं है।इसमें जहां उत्पादकता पारंपरिक बासमती के मुकाबले कहीं ज्यादा है वहीं गुणवत्ता के मामले में यह पूसा बासमती से भी बेहतर है। यही वजह है कि पाकिस्तान में चोरीछिपे पूसा-1121 का बीज ले जाकर उत्पादन किये जाने की खबरें भी आ रही हैं। वहीं घरेलू किसानों ने हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसके क्षेत्रफल में इस बार भारी बढ़ोतरी की है। इसका सीधा असर इसके धान की किसानों को मिलने वाली कीमत पर पड़ेगा। ऐसे में सरकार का बासमती पर एमईपी में कटौती का फैसला निर्यातकों और व्यापारियों के लिए फायदेमंद साबित होगा जबकि सरकार का यह कदम किसानों के लिए आर्थिक रूप से नुकसानदेह हो सकता है। (Business Bhaskar)
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