कानपुर August 20, 2009
उत्तर प्रदेश में सूखे जैसे हालात पैदा होने से पिछले 15 दिनों में अचानक सिंथेटिक दूध और उनसे बने उत्पादों का बाजार तेज हो गया है।
सिंथेटिक दूध का उत्पादन और राज्य के साथ पड़ोसी राज्यों को इसकी आपूर्ति दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। हालांकि खरीदार अब भी इस सच्चाई से बेखबर हैं।
भले ही इस मसले को लेकर स्वास्थ्य विभाग सिंथेटिक दूध का कारोबार करने वाले कारोबारियों के यहां कई बार छापा मार चुका है फिर भी इनकी कारगुजारी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। लाखों लोगों के स्वास्थ्य को धता बताते हुए सिंथेटिक दूध बनाने वालों का रैकेट पैर पसारता ही जा रहा है।
दरअसल इस साल कमजोर मॉनसून के कारण पशुओं को चारे की कमी हो गई है और इस कारण से सहकारी डेयरी और दूधवालों ने दूध की आपूर्ति जबरदस्त घटा दी है। दूध की आपूर्ति कम होने से ही सिंथेटिक दूध के गोरखधंधे ने जोर पकड़ा है।
डेयरी विशेषज्ञ एस के वैश्य ने बताया कि पिछले एक महीने में गांवों में दूध का उत्पादन 40 फीसदी घटा है। एक अनुमान के मुताबिक कानपुर में हर दिन कम से कम करीब 1 लाख लीटर सिंथेटिक दूध और 30 टन खोए का उत्पादन किया जा रहा है।
सिंथेटिक दूध स्वास्थ्य के लिए कितना नुकसानदायक होता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दूध को तैयार करने में रिफाइन तेल, सफेद पोस्टर कलर, कास्टिक सोडा और फॉर्मलिन का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस जहरीले दूध को तैयार करने में निम् गुणवत्ता वाले रिफाइन तेल, चावल और गेहूं का आटा और रासायनिक रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी सुबोध तिवारी ने बताया, 'पिछले महीने हमने अवैध उत्पादन में संलिप्त 17 लोगों को गिरफ्तार किया था और उनमें से 12 को जेल भी भेजा गया था। अगर हमारे पास ऐसे और मामलों की सूचना आती है तो हम तत्काल कदम उठाएंगे।'
तिवारी ने माना कि यह सिंथेटिक दूध स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक है। उन्होंने इस दूध की पहचान के लिए एक तरीका भी बताया। उन्होंने कहा कि अगर दूध में नींबू का रस डालने से दूध नहीं फटता है तो वह सिंथेटिक दूध है।
पराग डेयरी के निदेशक गोविंद श्रीवास्तव ने बताया कि डेयरियां अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रही हैं कि बाजार में दूध की मांग को पूरा किया जा सके। उन्होंने बताया कि मांग को पूरा करने के लिए मिल्क पाउडर के स्टॉक से भी दूध तैयार किया जा रहा है मगर फिर भी आपूर्ति पूरी नहीं हो पा रही है।
शहर की डेयररियां हर दिन 4 लाख से भी अधिक दूध की आपूर्ति करती हैं जबकि कन्नौज, औरैया, बिल्हौर और अकबरपुर के दूध वाले हर दिन करीब 3 लीटर दूध की आपूर्ति करते हैं। इस तरह शहर में रोजाना करीब 7 लीटर दूध की आपूर्ति की जाती है जो कि मांग से करीब एक लीटर कम है।
मांग और आपूर्ति के इसी अंतर को दूर करने के लिए सिंथेटिक दूध उत्पादन का धंधा जोर शोर से चलाया जा रहा है। इस दूध का उत्पादन खर्च कम होने के कारण इसमें लगे उत्पादकों को 200 फीसदी से भी अधिक का मुनाफा मिलता है।
वैश्य ने बताया कि आमतौर पर दूध की कमी को पूरा करने के लिए इसमें पानी मिलाया जाता है पर त्योहारों के मौसम में मांग इतनी अधिक होती है कि दूध वाले सिंथेटिक दूधों के उत्पादन में जुट जाते हैं। हालांकि यह गोरखधंधा बिहार के सीवान, उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और लखनऊ में भी चलता है मगर इसका केंद्र कानपुर ही है।
पड़ोसी राज्यों के कारोबारियों और एजेंटों ने भी शुक्लागंज, बाड़ा और चाकेरी के बाजारों में अपना डेरा डाल दिया है। दूर दराज के इलाकों से भी ऑर्डर लेकर यहां सिंथेटिक दूध तैयार किया जा रहा है। इस दूध को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने का काम एजेंटों का एक नेटवर्क निजी वाहनों के जरिए करता है।
पिछले 15 दिनों में बढ़ा सिंथेटिक दूध का धंधाउप्र के साथ पड़ोसी राज्यों में भी की जा रही है आपूर्तिसूखे के कारण दूध उत्पादन 40 फीसदी तक घटा हैमांग और आपूर्ति में बिगड़ता जा रहा है संतुलनकानपुर में रोजाना 1 लाख ली. सिंथेटिक दूध का उत्पादनदूध में रिफाइन तेल, कास्टिक सोडा, रंगों का इस्तेमालगोरखधंधे पर स्वास्थ्य विभाग की है कड़ी नजर (BS Hindi)
21 अगस्त 2009
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