कोलकाता August 20, 2009
पश्चिम बंगाल में शोधित स्पिरिट की कमी हो जाने से संगठित क्षेत्र के देसी शराब निर्माताओं को बॉटलिंग परिचालन बंद करने पर मजबूर होना पड़ा है।
शोधित स्पिरिट की कमी की वजह यह है कि राज्य सरकार ने अभी तक इसके दाम का निर्धारण नहीं किया है। स्थिति यह है कि लाइसेंसधारक रिटेल विक्रेताओं के जरिये वितरण में भी बाधा पहुंच रही है।
राज्य के देसी शराब निर्माता सरकारी नीतियों और मूल्य निर्धारण ढांचे में बदलाव की मांग कर रहे हैं। वेस्ट बंगाल कंट्री स्पिरिट मैन्युफैक्चरर्स ऐंड बॉटलर्स एसोसिएशन के कार्यकारी अधिकारी मौलीनाथ मुखर्जी कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में देसी शराब कारोबार के प्रति सरकार की उदासीनता से राजस्व का नुकसान होगा और इससे अवैध शराब कारोबार को प्रोत्साहन मिलेगा।
राज्य में 9 देसी शराब निर्माता और 14 बॉटलिंग संयंत्र हैं। डब्ल्यूबीसीएसएमबीए 6 देसी शराब निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करता है जिनका सालाना राजस्व प्रति संयंत्र लगभग 50-60 करोड़ रुपये है। राज्य सरकार प्रति संयंत्र से 35 करोड़ रुपये करों के रूप में प्राप्त करती है। प्रति निर्माता राजस्व 10-15 करोड़ रुपये है।
मुखर्जी ने बताया कि बॉटलिंग संयंत्रों की लगभग 15 करोड़ रुपये की कार्यशील पूंजी प्रक्रियात्मक विलंब की वजह से पिछले दो साल से सरकार के पास फंसी पड़ी है। देसी शराब उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच गया है।
पश्चिम बंगाल के लिए रेक्टीफाइड यानी शोधित स्पिरिट के आयात के मुख्य स्रोत उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और महाराष्ट्र हैं। शोधित स्पिरिट पश्चिम बंगाल के नूरपुर में आईएफबी की एकमात्र ऑपरेटिंग डिस्टिलरी द्वारा भी तैयार की जाती है।
पश्चिम बंगाल में संगठित क्षेत्र को हर महीने 60 लाख लीटर शोधित स्पिरिट की जरूरत है। आईएफबी हर महीने 15 लाख लीटर स्पिरिट बनाती है और बाकी का आयात किया जाता है। शोधित स्पिरिट (शीरे से बनाया जाने वाला कच्चा माल) का उत्पादन उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड में किया जाता है।
पश्चिम बंगाल में देशी शराब का निर्माण करने के लिए देशी शराब निर्माता इन्हीं राज्यों से शोधित स्पिरिट का आयात करते हैं। बोतलबंद देशी स्पिरिट पूरे पश्चिम बंगाल में सरकार द्वारा नियुक्त 1500 लाइसेंसधारी विक्रेताओं के जरिये ग्राहकों को वितरित की जाती है।
महंगी हुई शराब
देसी शराब निर्माता बंद कर रहे बॉटलिंग परिचालननीतियों में बदलाव और मूल्य निर्धारण की मांगसरकार को प्रत्येक संयंत्र से मिलते हैं 35 करोड़ रु (BS Hindi)
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