नई दिल्ली August 25, 2009
तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के उत्पादन को मौजूदा स्तर पर रखने की हालत में इस साल तेल कीमतों में कुछ खास तेजी आने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है।
दिसंबर 2008 के बाद से कच्चे तेल की कीमतें दोगुनी होकर 70 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर चुकी है। बीपी पीएलसी के मुख्य अर्थशास्त्री क्रिस्टोफर रूहेल का कहना है कि तेल की मांग में 2010 में अगर बढ़ोतरी हुई तो भी कीमतें मौजूदा स्तर पर या इससे कुछ अधिक रह सकती हैं।
हालांकि, प्राकृतिक गैस की कीमत में गिरावट आ सकती है। इस बाबत बकौल रूहेल कहते हैं, 'आपूर्ति बेहतर होने और मांग में कमी आने से प्राकृतिक गैस की कीमत निचले स्तर पर रह सकती हैं।' वैश्विक ऊर्जा की बीपी सांख्यिकी समीक्षा के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों के लिहाज से वर्ष 2008 काफी अनिश्चितताओं भरा रहा है। बकौल रूहेल, इसी साल तेल की कीमतों में तेजी लगातार सातवें साल भी जारी रही।
वर्ष 2008 में वैश्विक तेल की खपत में 1982 के बाद सबसे ज्यादा यानी 0.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जिसमें अमेरिका में इसकी खपत में प्रति दिन 13 लाख बैरल की कमी आई जो 1980 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। एश्यिा में मंदी के प्रकोप के साथ ही गैर- ओईसीडी खपत में भी गिरावट देखी गई।
समीक्षा में कहा गया है कि तेजी से विकास के बाद भी गैर-ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं का विश्व के सकल घरेलू उत्पादन में योगदान मात्र 25 फीसदी है। दिलचस्प बात है कि विश्व की कुल आबादी इनकी हिस्सेदारी 82 फीसदी है। गैर-ओईसीडी देशों की प्रति व्यक्ति आय ओईसीडी देशों की 32,000 डॉलर के मुकाबले मात्र 2,300 डॉलर है।
गैर-ओईसीडी देशों में क्षमता के अभाव के कारण सकल घरल उत्पाद के एक इकाई के उत्पादन में ज्यादा ओईसीडी की अपेक्षा ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है। (बीएस हिन्दी)
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