नई दिल्ली : कृषि मंत्रालय के खरीफ फसलों की बुआई के जारी किए गए हालिया आंकड़ों के मुताबिक धान के बुआई क्षेत्रफल में करीब 69 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। मंत्रालय के 20 अगस्त तक फसलों की बुआई के बारे में जारी आंकड़ों से इस बार देश में चावल उत्पादन में खासी गिरावट आती दिख रही है। इसके अलावा जानकार बता रहे हैं कि इस खरीफ सीजन में धान की यील्ड (प्रति हेक्टेयर उपज) में करीब 15 फीसदी तक की गिरावट आएगी। इन सबके कारण यह आशंका जताई जा रही है कि देश की कुल धान उपज में पिछले साल के मुकाबले करीब 25 फीसदी की कमी आ सकती है, जिससे आने वाले दिनों में चावल की कीमतों में उछाल आने की आशंका बन गई है।
कृषि मंत्रालय के हाल में जारी आंकड़ों के मुताबिक 20 अगस्त तक देश भर में धान की बुआई कुल 272।83 लाख हेक्टेयर जमीन पर हुई है। साल 2008-09 में इसी अवधि तक धान की बुआई 341.44 लाख हेक्टेयर जमीन पर हुई थी। इस लिहाज से इस बार धान का बुआई रकबा 68.61 लाख हेक्टेयर कम है। साल 2008-09 के खरीफ सीजन में धान की यील्ड 2.8 टन प्रति हेक्टेयर रही थी। इस साल हल्के रहे मानसून की वजह से पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार समेत धान की उपज वाले राज्यों में इसकी बुआई में खासी कमी आई है। कार्वी कॉमट्रेड के सीनियर एनालिस्ट चौड़ा रेड्डी के मुताबिक, 'शुरुआती मानसून के खराब रहने की वजह से धान की बुआई में कमी आई। इसके अलावा धान पैदा करने वाले प्रमुख राज्यों में बारिश सामान्य से अभी भी कम ही है। इस वजह से धान की यील्ड में 10 से 15 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।' साल 2008-09 में अच्छी यील्ड की वजह से खरीफ सीजन में धान का उत्पादन 8.45 करोड़ टन रहा था। केवल बुआई रकबा घटने से ही धान के उत्पादन में कमी आएगी। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर इस बार अगर पिछले साल की यील्ड बनी भी रहे तो भी धान का उत्पादन 7.2 करोड़ टन से ऊपर होना मुश्किल ही है। अगर इसमें यील्ड की वजह से होने वाली गिरावट को जोड़ा जाए तो इस बार खरीफ सीजन में धान का उत्पादन 6.2 करोड़ टन के करीब ही रहेगा। दिल्ली व्यापार महासंघ के चेयरमैन ओम प्रकाश जैन के मुताबिक, 'कम उत्पादन का असर सीधे तौर पर कीमतों पर पड़ेगा। सरकार के पास भले ही अभी एक साल के लिए स्टॉक हो लेकिन अगले साल के लिए भी तो उसे बफर स्टॉक रखना होगा। ऐसे में कीमतों पर ऊपर जाने से रोकना मुमकिन नहीं होगा।' राजधानी ग्रुप के प्रबंध निदेशक एस के जैन के मुताबिक, 'कम बुआई हुई है तो बाजार में कम माल आएगा। मांग में तेजी बदस्तूर बनी हुई है, ऐसे में कीमतों का बढ़ना तय है।' चंद्रशेखर आजाद कृषि और तकनीकी विश्वविद्यालय, कानपुर में कृषि अर्थशास्त्र और सांख्यिकीय के विभागाध्यक्ष डॉ आर के सिंह के मुताबिक, 'उत्तर प्रदेश में धान की यील्ड गिरकर एक टन प्रति हेक्टेयर के स्तर पर आ सकती है। दरअसल इस बार धान की पौध तैयार होने की प्रक्रिया बारिश की कमी से पूरी तरह से गड़बड़ा गई है। हालांकि पिछले कुछ दिनों की बारिश से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है लेकिन तब भी यहां धान के उत्पादन में 40 फीसदी की कमी आती दिख रही है।' उत्तर प्रदेश के मुकाबले पंजाब में स्थिति कुछ बेहतर है। यहां किसानों ने मानसून में देरी को देखते हुए बाद में बोई जाने वाली बासमती चावल की पैदावार पर जोर दिया है। पंजाब में पिछले साल धान की बुआई 27.30 लाख हेक्टेयर पर हुई थी, जबकि इस बार यहां धान 27.15 लाख हेक्टेयर पर बोया गया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डॉ पी एस मिन्हास के मुताबिक, 'यील्ड में कुछ हद तक कमी तो रहेगी ही क्योंकि जितनी बारिश की जरूरत थी उतनी नहीं हो सकी है। इसके अलावा किसानों के बासमती की ओर झुकाव बढ़ाने से भी उत्पादन कम होगा क्योंकि आम चावल के मुकाबले बासमती की यील्ड कम होती है।' पंजाब में आम धान की यील्ड करीब 6.2 टन प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि बासमती की यील्ड करीब 4.5 टन प्रति हेक्टेयर रहती है। (इत हिन्दी)
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