नई दिल्ली. योजना आयोग ने अगले साल के शुरूआत में महंगाई से खाने की थाली के और खाली होने की आशंका जताई है। आयोग ने 2 सितंबर को होने वाली अपनी संपूर्ण आयोग बैठक के लिए तैयार किए गए आतंरिक परिपत्र में कहा है कि अगर रबी की फसल भी सूखे की चपेट में आई तो मार्च 2010 में खाद्य पदार्थो की कीमत में 10-15 प्रतिशत तक इजाफा हो सकता है। यानी ऐसा हुआ तो आप नहीं महंगाई चट कर जाएगी थाली।
आयोग ने खासकर दाल-दलहन की कीमतें बढ़ने की आशंका को बलवती करार दिया है। आयोग ने संबंधित अधिकारियों-मंत्रालयों को बांटे इस परिपत्र में कहा है कि सूखे का असर आर्थिक विकास दर पर भी पड़ेगा। आयोग के अनुसार 2007-08 से शुरू हुई 11 वीं पंचवर्षीय योजना काल के लिए लक्षित 9 प्रतिशत विकास दर शायद ही हासिल हो पाए। आयोग ने कहा है कि यह दर 7.8 प्रतिशत तक रुक सकती है। जबकि इस वित्त वर्ष में यह दर 6.3 से 5.5 प्रतिशत रह सकती है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंगलवार को होने वाली संपूर्ण योजना आयोग की बैठक के लिए बांटे गए परिपत्र में आयोग ने कहा है कि इस वित्त वर्ष में विकास दर 7 प्रतिशत तक लक्षित किया गया था लेकिन यह दर सूखा व आर्थिक मंदी की वजह से अब 6.3 या उससे नीचे रह सकती है। आयोग के एक सदस्य के अनुसार ‘अगर कृषि का सकल घरेलू उत्पाद 6 प्रतिशत तक घटता है तो फिर विकास दर 5.5 तक रुक सकती है। आयोग ने उम्मीद जताई है कि 2001-02 की स्थिति से बचा जा सकता है अगर अगस्त-सितंबर में पर्याप्त बारिश हो और रबी फसल को बचाया जा सके।
आयोग के एक सदस्य ने कहा ‘इस साल भले ही सबसे कम बारिश करीब 24.6 प्रतिशत की कमी दर्ज की जा रही है लेकिन महंगाई के असर से काफी हद तक बचाव हो सकता है। वजह यह है कि 2001-02 के 40 प्रतिशत की तुलना में देश में अब 46 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचाई व्यवस्था की पहुंच में है। ’
हालांकि यह सदस्य साथ ही यह भी कहते हैं कि ‘बावजूद इसके बारिश कम होने से महंगाई का कुछ असर थाली पर दिखेगा। खाद्यान कम होने की स्थिति मे 10-15 प्रतिशत तक मूल्य वृद्धि हो सकती है। राज्य सरकारों को चाहिए कि वे जमाखोरों के खिलाफ अभियान तेज करें और बाजार में सभी वस्तुओं की सुनिश्चितता तय करें।’ आयोग के अनुसार दाल-दलहन जो 60-90 रुपए प्रति किलों के बीच है, के दाम में इजाफा हो सकता है क्योंकि इनका उत्पादन 16 मिलियन टन तक घटन की आशंका है।
इसके लिए मांग-आपूर्ति के बीच कड़ी निगाह बनाए रखने की जरूरत है। आयोग के परिपत्र के मुताबिक सूखे की अप्रत्याशित स्थिति का असर स्वास्थ्य, शिक्षा समेत कई क्षेत्रों पर पड़ सकता है। सरकार ने इन क्षेत्रों को 11वीं योजना में जो राशि देने की वकालत की थी, संभव है उसमें कटौती हो। आयोग के एक सदस्य के मुताबिक, वित्तीय घाटा 6.8 प्रतिशत है जिसे 4 प्रतिशत पर लाना होगा। विभिन्न क्षेत्रों को चाहिए कि वे निजी सार्वजनिक भागीदारी पीपीपी के माध्यम से अपने संसाधन बढ़ाएं।
घट सकता है कृषि उत्पादन
आयोग का आकलन है कि कृषि उत्पादन 14 प्रतिशत (करीब 16 मीट्रिक टन) तक घट सकता है। यह 101 मीट्रिक टन खाद्यान होगा। जबकि पिछले साल यह 117 मीट्रिक टन था। भारत में खाद्यान उत्पादन कमी की बात करें तो यह 2001-02 में सबसे अधिक 38 मीट्रिक टन था। जबकि यह आंकड़ा 1979-80 में 22।2 मिटि़क टन था। (दैनिक भास्कर)
31 अगस्त 2009
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