कमोडिटी की
Western">कीमतों के उतार - चढ़ाव ने बीते साल पूरी दुनिया के निवेशकों और ट्रेडरों का परेशान कर दिया था। ब्याज दरों के पिछले कई सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाने और वित्तीय बाजारों में जरूरत से ज्यादा तरलता के बीच कमोडिटी की कीमतों में हुई बढ़ोतरी जुलाई तक तो ठीक लग रही थी। लेकिन अब बाजार में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि कमोडिटी की कीमतें बुलबुले का रूप तो धारण नहीं कर रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ऐसे वक्त जब दुनिया की कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने के लिए संघर्ष कर रही हैं , उस समय कमोडिटी की बढ़ती कीमतें आर्थिक सुधार की रफ्तार को सुस्त कर सकती हैं। इन सभी हालातों के मद्देनजर कमोडिटी की बढ़ती कीमतों के कारणों को समझना जरूरी हो जाता है। यह भी जानना जरूरी है कि कीमतों में बढ़ोतरी का यह रुख कब तक जारी रहेगा। साल 2009 के मार्च की शुरुआत से जुलाई तक कुछ प्रमुख औद्योगिक कमोडिटी जैसे कच्चा तेल और तांबा के दाम में करीब 45 फीसदी का इजाफा देखा गया। इस दौरान जिंक और एल्युमिनियम के दाम करीब 15 से 30 फीसदी के बीच बढ़े। जुलाई के आखिर में इन कमोडिटी की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई। ज्यादातर कमोडिटी की कीमतें फरवरी के उनके न्यूनतम स्तर से लगभग दोगुने स्तर पर पहुंच गए। असल में फरवरी और मार्च में एशिया और यूरोप के देशों का औद्योगिक उत्पादन कुछ हद तक सुधरा था , जिसके चलते कमोडिटी की कीमतें भी बढ़ीं। चूंकि वैश्विक वित्तीय बाजारों में धीरे - धीरे सुधार आ रहा है तो कच्चे तेल और तांबे की कीमतों का तेजी से बढ़ना स्वाभाविक नहीं लगता। उधर , चीन भी जरूरी औद्योगिक कमोडिटी का अपना स्टॉक बढ़ाने लगा जिससे कि दाम और बढ़ने लगे। वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में चीन सबसे बड़ा भागीदार देश है। अमेरिकी डॉलर का दूसरी मुद्राओं के मुकाबले कमजोर पड़ना भी कमोडिटी के लिए फायदेमंद रहा। जबकि 2007 से दूसरी प्रमुख मुद्राओं और कमोडिटी की कीमतों में नकारात्मक सह - संबंध रहा है। इस बीच पूरी दुनिया में कमोडिटी की ट्रेडिंग भी बढ़ने लगी , जिससे कमोडिटी महत्वपूर्ण संपत्ति के रूप में उभरने लगे। इसका सीधा असर दामों पर पड़ा और वे बढ़ने लगे। दी गई तालिका बताती है कि अमेरिकी डॉलर 2009 के मार्च से यूरो और स्टर्लिंग के सामने कमजोर पड़ने लगा। कमजोर डॉलर ने कमोडिटी की बढ़ती कीमतों का समर्थन किया। कमोडिटी बाजार के बेंचमार्क सूचकांक ' गोल्डमैन सैक्स कमोडिटी इंडेक्स ' में कमोडिटी की कीमतें बढ़ने लगी। साल 2008 के मध्य में अमेरिकी डॉलर का सूचकांक ढाई सालों के गिरावट के साथ बंद हुआ। वैश्विक वित्तीय बाजार में छाए अनिश्चितता के मौहाल के चलते ऐसा हुआ। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में स्थिर सुधार की उम्मीदों के चलते बाजार की मनोदशा में भी सुधार देखने को मिला। दुनिया के कई पीएमआई ( परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स ) सूचकांकों में उछाल आया। अमेरिका के शिकागो पीएमआई और आईएसएम सूचकांक , चाइना पीएमआई और जर्मनी जेडईडब्ल्यू सूचकांक में इस साल मार्च महीने में मजबूत सुधार देखने को मिला। सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) के तिमाही आंकड़ें भी सकारात्मक मनोदशा के संकेत पर मुहर लगाते हैं। प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं और एशिया के कुछ देशों में जून तिमाही के नतीजे बेहतर रहे। (इत हिन्दी)
31 अगस्त 2009
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