03 अगस्त 2009
क्या है महंगाई दर और कैसे होती है इसकी गणना
मुद्रास्फीति दर शून्य के करीब खड़ी है। ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब महंगाई दर का 0.44 फीसदी तक लुढ़कना नामुमकिन सा लग रहा था। लेकिन आज यह हकीकत है। मुद्रास्फीति दर ने गिरावट के मामले में 32 साल का रेकॉर्ड तोड़ दिया है। आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं? सबसे पहले हमें यह समझने की जरूरत है कि मुद्रास्फीति दर के आंकड़े कैसे आंके जाते हैं? देश की महंगाई दर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर आंकी जाती है। इस सूचकांक का इस्तेमाल उन उत्पादों की औसत कीमत स्तर में बदलाव आंकने के लिए किया जाता है जिनका कारोबार थोक बाजार में होता है। डब्ल्यूपीआई के जरिए 400 से ज्यादा कमोडिटी पर निगाह रखी जाती है। कमोडिटी बास्केट में आने वाली चीजों की समीक्षा नियमित रूप से की जाती है ताकि कुछ सामान जरूरत से ज्यादा अहमियत न रखें। डब्ल्यूपीआई तक पहुंचने के लिए निर्मित उत्पादों, ईंधन और प्राथमिक वस्तुओं के दाम का इस्तेमाल किया जाता है। कई लोगों की दलील है कि डब्ल्यूपीआई सटीक रूप से मुद्रास्फीति के दबाव का अंदाजा नहीं देता। इसलिए कई मुल्कों ने अब कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) की राह पकड़ ली है। सीपीआई उपभोक्ताओं की ओर से खरीदे जाने वाले उत्पादों और सेवाओं के खास सेट की वेटेड औसत कीमत को आंकने से जुड़ा सांख्यिकीय माप है। क्या चीजें वास्तव में सस्ती हो रही हैं? महंगाई दर शून्य तक पहुंच रही है लेकिन किराने का बिल कुछ और ही संकेत दे रहा है। खाद्य सामग्री के दाम अब भी ऊंचे हैं। खाद्यान्न एक साल पहले के मुकाबले नौ फीसदी महंगा है। प्राथमिक खाद्य वस्तुओं की कीमतें अब भी चढ़ रही हैं। डब्ल्यूपीआई में गिरावट मुख्य रूप से ईंधन और मैन्युफैक्चरिंग की वजह से है। इसलिए, कम महंगाई दर के बावजूद खाद्य वस्तुओं की कीमतें ज्यादा बनी हुई हैं। अगर यह चलन जारी रहता है तो भारतीय रिजर्व बैंक आगे कदम बढ़ाकर दरों में और कटौती कर सकता है। बेरोजगारों की तादाद बढ़ने और नौकरियों में छंटनी की वजह से भी मांग घट रही है। मांग में गिरावट मुद्रास्फीति दर को शून्य के करीब ले जाने वाला अहम कारण है। अनिश्चित हालात में निवेश निवेशक अब मुद्रास्फीति और कीमतों में बढ़ोतरी के चलन के आदी हो गए हैं। अपस्फीति यानी डिफ्लेशन जैसा नाम यहां ज्यादा सुना नहीं गया है। इसी वजह से कई निवेशक अतिरिक्त रकम लगाने के लिए सर्वश्रेष्ठ माध्यम चुनने को लेकर भ्रम में हैं। डिफ्लेशन से हमारे मायने उत्पादों और सेवाओं के दामों में लगातार गिरावट आने से हैं। यह मांग घटने, उत्पादन में कमी और अर्थव्यवस्था में कमजोरी से जुड़ी है। जो निवेशक ज्यादा जोखिम लेने की क्षमता रखते हैं उन्हें उन सेक्टरों में निवेश पर गौर करना चाहिए जो मांग में गिरावट से ज्यादा प्रभावित नहीं हुए हैं। स्वास्थ्य सेवा जैसे सेक्टर और ऊर्जा जैसे आवश्यक सेगमेंट में मांग घटने की संभावना नहीं रहती। हालांकि कई कंपनियों पर अर्थव्यवस्था में कमजोरी का सीधा असर पड़ता है। इस वक्त कर्ज के जाल में न फंसने की सलाह दी जाती है। अपनी नौकरी बरकरार रखिए क्योंकि बाहर हालात कुछ अच्छे नहीं हैं। (ET Hindi)
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