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03 जून 2010

न लगे रबर के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध

कोच्चि June 02, 2010
इंडियन रबर ग्रोवर्स एसोसिएशन (आईआरजीए) ने केंद्र सरकार से पुराने टायर के आयात पर शुल्क बढ़ाकर 20 प्रतिशत किए जाने का अनुरोध किया है, जैसा कि प्राकृतिक रबर के आयात पर है। इस समय पुराने टायर के आयात पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगता है। वाणिज्य मंत्री को भेजे गए एक ज्ञापन में यह भी मांग की गई है कि प्राकृतिक रबर पर 20 प्रतिशत आयात शुल्क जारी रहना चाहिए। आईआरजीए ने मांग की है कि रबर के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए। साथ ही छोटे और मझोले टायर उद्योग को राहत पैकेज दिया जाना चाहिए, जिससे उन्हें बंद होने से बचाया जा सके। साइकिल के टायर के आयात पर शुल्क में बढ़ोतरी की भी मांग की गई है। आईआरजीए के महासचिव सिबि जे मोनिपल्ली ने कहा कि इस साल भारत से टायर निर्यात में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सभी टायर कंपनियों के वार्षिक परिणाम में पिछले वित्त वर्ष के दौरान 25 प्रतिशत का मुनाफा दिखाया गया है। उन्होंने अपोलो टायर्स का उदाहरण देते हुए कहा कि उसके शुद्ध मुनाफे में 653 करोड़ की बढ़त हुई है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान अग्रिम लाइसेंस नीति के तहत बड़े पैमाने पर (1,52,000 टन) प्राकृतिक रबर का आयात किया गया। इन वर्षों के दौरान चीन से पुराने टायर का आयात बढ़ा है, जिसका घरेलू टायर उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। रबर के बड़े पैमाने पर आयात का असर रबर उत्पादकों पर भी पड़ रहा है। इस समय रबर आयात पर शुल्क घटाने और वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाए जाने की कोई तार्किक वजह नहीं है। भारत में कुल 9 लाख टन रबर का उत्पादन होता है, जिसमें केरल की हिस्सेदारी 92 प्रतिशत है। रबर की खेती से प्रत्यक्ष रूप से 10 लाख लोग जुड़े हुए हैं, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से इससे 60 लाख लोगों को रोजगार मिला है। एसोसिएशन का कहना है कि उत्पादन और खपत के बीच कोई असंतुलन नहीं है, जैसा कि रबर आधारित उद्योगों ने हाल के दिनों में कहा था। रबर, केरल की अर्थव्यवस्था की धुरी है। ज्ञापन में कहा गया है कि हाल के दिनों में केरल की अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर में रबर की अहम भूमिका है। (बीएस हिंदी)

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