कोच्चि June 08, 2010
देश के प्रमुख टायर निर्माताओं ने जून की शुरुआत से टायर की कीमतों में इस साल की तीसरी बढ़ोतरी कर दी है। सभी बड़ी टायर कंपनियों ने 3-4 फीसदी तक कीमतें बढ़ाई हैं जिससे वाहन मालिकों और परिवहन कंपनियों पर भारी बोझ पडऩे वाला है। टायर कंपनियों ने जनवरी में 4-7 फीसदी और मई में 3-4 फीसदी तक कीमत बढ़ोतरी की थी और अब जून में एक बार फिर दाम बढ़ा दिए गए हैं।प्रमुख टायर कंपनियों के प्रबंधकों का कहना है कि कच्चेमाल, खास तौर से प्राकृतिक रबर की कीमतों में भारी बढ़ोतरी होने के चलते टायर की कीमतों में बढ़ोतरी को टाला नहीं जा सकता था। रबर की कीमतों में चालू साल के पहले 5 महीनों में 25-30 फीसदी तक की तेज उछाल दर्ज की गई है और टायरों के दाम बढ़ाकर ही इसकी भरपाई की जा सकती है। प्रबंधकों का कहना है, 'हम लगातार तीसरी बार कीमतों में बढ़ोतरी नहीं करना चाहते थे, लेकिन हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है।अपोला टायर्स ने देशभर में कीमतों में 3।5 फीसदी की बढ़ोतरी की है जो 1 जून से लागू हैं। कंपनी में निर्माण और विपणन प्रमुख सतीश शर्मा ने बताया कि लागतों में बढ़ोतरी की पूरी भरपाई के लिए कीमतों में 20 फीसदी का इजाफा किया जाना था। मगर, एक बार में कीमतों में 20 फीसदी का इजाफा कैसे किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि इस साल अब तक कंपनी ने कीमतों में 10 फीसदी तक इजाफा कर दिया है। जनवरी-मार्च 2010 तिमाही में 13 फीसदी बढ़त के मुकाबले इस तिमाही कच्चामाल कीमत सूचकांक 15 फीसदी बढ़ा है। रबर की कीमतों में बढ़ोतरी ने कंपनियों पर गंभीर रूप से असर डाला है क्योंकि टायर निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले कच्चेमाल में 65 फीसदी हिस्सा रबर का ही होता है।जेके टायर्स के विपणन निदेशक ए एस मेहता ने बताया कि कंपनी ने चालू साल में टायर के दाम 11 फीसदी तक बढ़ाए हैं जिसमें जून से की गई 3.5 फीसदी की बढ़ोतरी भी शामिल है, लेकिन लागतों में बढ़ोतरी की पूरी भरपाई नहीं हो पाई है। मौजूदा मूल्य का हिसाब रबर की कीमत 140 रुपये प्रति किलो मानकर लगाया गया है, लेकिन फिलहाल प्राकृतिक रबर की कीमतें 170 रुपये किलो से भी ऊपर चल रही हैं। कच्चेमाल की बढ़ी कीमतों को पूरा करने के लिए टायर के दाम में 11-12 फीसदी की बढ़ोतरी की जानी चाहिए।प्राकृतिक रबर की कीमतों के साथ कार्बन ब्लैक और कैप्रोलैक्टम के दाम भी तेजी पर हैं जिससे टायर कंपनियों का मुनाफा घट रहा है। 2009-10 की अंतिम तिमाही में ज्यादातर प्रमुख टायर कंपनियों का मुनाफा कम हुआ था। उन्होंने कहा 50 फीसदी रबर का उपभोग गैर-रबर क्षेत्र में होता है और रबर पर आधारित कई छोटी और मझोली कंपनियां बड़ी मुश्किल में हैं। रबर पर आश्रित उद्योगों की ओर से बार-बार गुजारिश करने के बाद भी सरकार रबर उत्पादकों से राजनीतिक लाभ के चलते इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर रही है। कंपनियों को प्रकृतिक रबर की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए, लेकिन घरेलू बाजार मेंं मांग-आपूर्ति की खाई बढ़ती ही जा रही है। लिहाजा कंपनियों का कहना है कि 2,00,000 टन रबर के शुल्क मुक्त आयात की तत्काल जरूरत है। कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से कैप्रोलैक्टम के दाम भी बढ़े हैं जिससे नायलॉन टायर कॉड की निर्माण लागत भी बढ़ गई है।मेहता ने कहा कि टायर कंपनियों को अंतिम उपभोक्ताओं, खास तौर से परिवहन कंपनियों की ओर से कड़ा प्रतिरोध झेलना पड़ रहा है क्योंकि कीमतों में बढ़ोतरी नियमित अंतराल पर उन्हें परेशान कर रही है। ताजा इजाफे के बाद भी उत्पादन लागत में बढ़ोतरी की पूरी भरपाई काफी दूर है। लिहाजा प्राकृतिक रबर के आयात को लेकर सरकार के रवैये में किसी बड़े बदलाव के बिना टायर की कीमतों में आगे भी इजाफे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। (बीएस हिंदी)
09 जून 2010
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