मुंबई June 24, 2010
धान की बुआई वाले प्रदेशों में जून के तीसरे हफ्ते तक दक्षिण पश्चिम मॉनसून की धीमी रफ्तार का असर इस खरीफ सत्र में धान की बुआई पर होने की संभावना कम है।
इस साल अब तक की बारिश सामान्य से 5 फीसदी कम रही है और यह धान बुआई वाले क्षेत्रों में 6.5 फीसदी कम है। मगर, मॉनसून वर्षा के विस्तार के साथ कुल बुआई रकबे में बढ़त की उम्मीद है। इस सत्र में 1-2 फीसदी ज्यादा क्षेत्रफल में धान की बुआई हो सकती है, साथ ही उत्पादन भी 15 फीसदी तक बढ़ सकता है।
कृषि मंत्रालय के अनुमानों में 2010-22 में धान का रकबा 420 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है। पिछले साल धान का रकबा 361.2 लाख हेक्टेयर रहा था। विश्लेषकों के मुताबिक ये अनुमान काफी महत्वाकांक्षी हैं।
अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा, 'मॉनसून की शुरुआत काफी धीमी है, लिहाजा रकबे में मुश्किल से 1-2 फीसदी की बढ़त हो सकती है। हालांकि, उत्पादन 15 फीसदी तक बढ़ सकता है क्योंकि सत्र के बीच में अच्छी बारिश से चावल के दाने अच्छे होंगे।'
अमेरिकी कृषि विभाग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि इस साल सामान्य मॉनसून की वजह से भारत का चावल उत्पादन 16 फीसदी बढ़कर 990 लाख टन रह सकता है। पिछले साल कमजोर मॉनसून के चलते चावल का उत्पादन 12 फीसदी घटकर 875 लाख टन रहा था।
वहीं, 2008-09 में चावल का बंपर उत्पादन हुआ था। यह 992 लाख टन रहा था। धान बुआई का रकबा खरीफ सत्र में 80-85 फीसदी और रबी सत्र में 15-20 फीसदी के बीच रहा है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक खरीफ में धान का रकबा 18 जून 2010 को पिछले साल के मुकाबले 6.5 फीसदी घटकर 10.97 लाख हेक्टेयर रहा है।
पिछले साल इस समय ते 11.73 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। इस साल बारिश में अत तक 5 फीसदी की कमी से रकबा कम रहा है। धान की बुआई अभी शुरुआती चरण में है। हालांकि, राज्यों से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि इस बार खरीफ सत्र में केरल, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में पिछले साल के मुकाबले धान की बुआई ज्यादा रकबे में हो रही है।
इस साल धान की बुआई 10.97 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है जो पिछले हफ्ते के मुकाबले 3.75 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। उत्तर भारत के धान बुआई वाले ज्यादातर प्रदेशों में जून के अंतिम सप्ताह में बारिश शुरू हो जाती है जब किसान आमतौर पर धान के पौधों की बुआई शुरू कर देते हैं।
पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मॉनसून से पहले बीच-बीच में बारिश होने से किसानों को खेतों में धान के बीज बोने के लिए जरूरी नमी मिल गई। मगर, पौधों की बुआई के साथ पानी की जरूरत बढ़ती जाती है।
देश के एक प्रमुख चावल शोध संस्थान के विश्लेषक का कहना है, 'यह धान की बुआई के लिए अनुकूल समय है।' धान की फसल के लिए काफी पानी की जरूरत होती है। बंपर पैदावार के लिए लगातार 90-120 दिनों तक खेतों में 2-3 इंच पानी जमा रहने की जरूरत होती है।
भारतीय मौसम विभाग ने इस साल सामान्य बारिश आ अनुमान लगाया है और इसमें मामूली रूप से 5 फीसदी कमी की आशंका जताई है। हालांकि, मॉनसून विभाग के अनुमान ज्यादातर मौकों पर गलत साबित हुए हैं, लेकिन धान के रकबे में सुधार होगा।
अनाज, चावल और तिलहन व्यापार संघ (जीआरओएमए) के अध्यक्ष शरद मारू का कहना है, 'इस समय धान के रकबे का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी क्योंकि अभी पूरा सत्र बाकी है। धान की बुआई कुल बारिश और उसके विस्तार पर निर्भर करती है, लेकिन हम मान सकते हैं कि मॉनसून के आगे बढ़ने के साथ रकबा बढ़ेगा।'
धान का उत्पादन
साल उत्पादन उत्पादकता (लाख टन) (कि।ग्रा. प्रति हेक्टेयर)2003-04 885.3 20782007-08 966.9 22022008-09 991.5 21862009-10 876.60 2425स्त्रोत : कृषि मंत्रालय (बीएस हिंदी)
24 जून 2010
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