चंडीगढ़ June 15, 2010
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) गेहूं की भारी आपूर्ति और उठाव सुस्त पडऩे से दोहरी परेशानी झेल रहा है। पर्याप्त भंडारण के अभाव में एफसीआई मिलों को सस्ती दरों पर गेहूं बेचने पर विचार कर रहा है। 1 जून 2010 तक के आंकड़ों के मुताबिक 178 लाख टन अतिरिक्त गेहूं का भंडार एफसीआई के गले की फांस बना हुआ है। उत्तर भारत के बड़े गहूं उत्पादक राज्यों में भंडारण के लिए पर्याप्त जगह नहीं है और एफसीआई को किसी भी कीमत पर अतिरिक्त गेहूं के लिए इंतजाम करना है।सूत्रों के मुताबिक एफसीआई मिलों को छूट देने पर विचार कर रहा है। एफसीआई 1100 रुपये क्विंटल गेहूं की खरीद करता है। परिवहन और दूसरे तमाम खर्चों क साथ दक्षिण में कुल लागत 1400 रुपये क्विंटल पड़ती है। दक्षिण की मिलें सस्ता गेहूं चाहती हैं, ऐसे में एफसीआई गेहूं को बर्बाद होता देखने के बजाए दक्षिण की मिलों को सस्ती दरों पर गेहूं देने पर विचार कर रहा है। मॉनसून के जोर पकडऩे से पहले समय से गेहूं को पर्याप्य भंडारण सुविधा के साथ सूखे स्थान पर पहुंचाना जरूरी है, मगर यह दूर का सपना ही लग रहा है। खास तौर से उत्तर भारतीय राज्यों में निजी कंपनियों की ओर से भंडारण सुविधा विकसित किए जाने को लेकर निजी क्षेत्र से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिलने से सरकारी एजेंसियां दुविधा में हैं।170 लाख टन भंडारण सुविधा के मुकाबले एफसीआई को राजस्थान, पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में निजी कंपनियों की ओर से महज 12 लाख टन का प्रस्ताव मिला है। यह भी गोदाम न होकर खुले चबूतरे जैसे हैं। खुले चबूतरे पर भंडारण की लागत 300 से 600 रुपये प्रति टन आती है जबकि इसके मुकाबले गोदाम का खर्च 3500 रुपये प्रति टन आता है जिसमें मजदूरों का खर्च शामिल नहीं हैं। देश के कृषि वैज्ञानिक इस बात को लेकर काफी चिंतित हैं कि खाद्यान्न की उचित भंडारण व्यवस्था का इंतजाम करने में सरकारी एजेंसियों की विफलता के आगे गंभीर परिणाम हो सकते हैं। एफसीआई के अधिकारियों का कहना है कि ओपन प्लिंथ में गेहूं 3 साल तक रखा जा सकता है, लेकिन वैज्ञानिकों की राय इसके उलट है।गेहूं शोध संस्थान, करनाल के निदेशक डॉ। जग शेरॉन ने कहा कि वातावरण में 12 फीसदी से ज्यादा की नमी ओपन प्लिंथ में भंडारित गेहूं को खराब कर सकती है। उन्होंने कहा कि मॉनसून के दौरान उत्तर भारत में नमी का स्तर 75-80 फीसदी तक पहुंच जाता है। गेहूं एक हाइड्रोस्कोपिक खाद्यान्न है और वातावरण से नमी सोखता है। सरकारी एजेंसियां बरसात के बाद धूप में गेहूं सुखाती हैं। इसके बाद गेहूं को मिलों को बेचा जाता है जो इसे गर्म हवा से सूखाती हैं, पर वैज्ञानिकों की नजर में यह गेहूं खाने के लिहाज से सही नहीं होता।उन्होंने कहा, 'पर्याप्त भंडारण के अभाव में बारी-बारी से नमी और धूप के असर में आने से गेहूं जहरीला हो जाता है, इसलिए दुनिया भर में गेहूं के सुरक्षित भंडारण के लिए साइलो के इस्तेमाल का सुझाव दिया जाता है। अदाणी जैसी निजी कंपनियों ने पंजाब और हरियाणा में वैज्ञानिक भंडारण के लिए साइलो का इस्तेमाल किया है, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। डॉ. शेरॉन का कहना है कि हमारा देश हर साल अनाज की देख-रेख पर 5,000 करोड़ रुपये खर्च करता है, लेकिन वैज्ञानिक भंडारण पर कोई ध्यान नहीं है। (बीएस हिंदी)
17 जून 2010
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