नई दिल्ली June 07, 2010
देश की मिलें अब कच्ची चीनी के आयात पर भी शुल्क लगाने की मांग करेंगी। अब तक भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के जरिए चीनी मिलें परिशोधित सफेद चीनी पर 60 फीसदी आयात शुल्क के लिए दबाव बना रही थीं।इस्मा के अध्यक्ष और बलरामपुर चीनी मिल्स के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ने कहा, 'सफेद के साथ-साथ कच्ची चीनी पर भी भारी आयात शुल्क लगाने की जरूरत है। आयात शुल्क से मिलों को तुरंत कोई राहत तो नहीं मिलेगी, लेकिन मिलों को ऐसी कीमत मिलेगी जो गन्ने की कीमतों के हिसाब से होगी। यह कदम महत्वपूर्ण है। अभी तक चीनी उत्पादक परिशोधित चीनी पर ही शुल्क की मांग कर रहे थे। कुछ मिलें परिशोधन क्षमता बढ़ा रही हैं या कच्ची चीनी को परिशोधित करने के लिए नई परिशोधन इकाइयां स्थापित कर रही हैं। घरेलू और वैश्विक बाजारों में चीनी की गिरती कीमतों के साथ आने वाले सत्र में गन्ने की अच्छी पैदावार के अनुमानों को देखते हुए चीनी मिलें सुरक्षा चाहती हैं। सरावगी ने कहा कि चीनी के मौजूदा भाव उद्योग की ओर से गन्ना किसानों की दी जा रही कीमतों को नहीं दर्शाता है। इस बात पर गौर किया जाना जरूरी है कि चीनी के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तरप्रदेश में मिलों ने गन्ने के लिए किसानों को औसत रूप से 250 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत चुकाई है और उनकी उत्पादन लागत 3,300-3,400 रुपये क्विंटल थी। हालांकि, उनकी मौजूदा कमाई 2,700 रुपये प्रति क्विंटल रही है।सरावगी के मुताबिक, 'भारत में चीनी का अच्छा भंडार हो गया है। चालू सत्र में घरेलू उत्पादन 185 लाख टन रहने का अनुमान है। 50 लाख टन आयात और 30 लाख टन पुराना स्टॉक जोडऩे पर देश में चीनी की कुल उपलब्धता 265 लाख टन होती है। अक्टूबर में शुरू होने वाले अगले चीनी सत्र की शुरुआत हम 40 लाख टन के साथ करेंगे। अगले सत्र के उत्पादन अनुमान भी अच्छे हैं और उत्पादन 230 लाख टन के उपभोग स्तर से कम नहीं रहेगा। लिहाजा अब आयात गैरजरूरी है। चीनी का घरेलू उत्पादन घटने और कीमतों में तेजी के चलते पिछले साल सरकार ने कच्ची और सफेद दोनों तरह की चीनी के शुल्क मुक्त आयात की इजाजत दी थी।उत्तरप्रदेश में मिलों से निकली चीनी की कीमतें जनवरी में 4,300 रुपये क्विंटल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई थीं। सरकारी प्रयासों के बाद फरवरी से इसमें नरमी देखने को मिली है। सरकार ने चीनी के बिक्री कोटा और भंडार सीमा में बदलाव किए हैं। साथ ही चीनी की वैश्विक कीमतों में भी गिरावट रही है। फिलहाल कीमतें 2,700 रुपये क्विंटल चल रही हैं। चीनी की कीमतों को लेकर रुझान आगे भी गिरावट ही दर्शाते हैं।सरकार ने मई से चीनी की बिक्री के लिए मासिक कोटा दोबारा बहाल कर दिया है। साथ ही थोक उपभोक्ताओं को 10 दिन के बजाए 15 दिन की जरूरत के हिसाब से चीनी का भंडारण करने की अनुमति दे दी है, लेकिन इससे चीनी के कारोबार में बाजार धारणा में कोई सुधार नहीं हुआ है। बिड़ला ग्रुप ऑफ शुगर कंपनीज के सलाहकार और उत्तरप्रदेश चीनी मिल संघ के अध्यक्ष सी बी पटौदिया ने कहा, 'थोक उपभोक्ता अब भी चीनी के आयात को प्राथमिकता देंगे क्योंकि आयातित चीनी की कीमत 2,400 रुपये क्विंटल पड़ रही है जबकि घरेलू चीनी की बिक्री 2,700 रुपये क्विंटल पर हो रही है। (बीएस हिंदी)
09 जून 2010
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