24 जून 2010
लागत बढ़ने और कर्ज में कटौती से चीनी कड़वी
कोलकाता/मुंबई।। इन दिनों चीनी मिलों के सितारे गर्दिश में हैं। चीनी के दाम घटने और लागत बढ़ने के बाद बैंकों की ओर से मिलने वाले कर्ज में भी कटौती होने लगी है। कुल मिलाकर ऐसे हालात से सेक्टर पर दोहरी मार पड़ रही है। फाइनेंसर उन्हीं मिलों को कर्ज दे रहे हैं जिनके पास को-जेनरेशन और डिस्टिलरी जैसे सहायक कारोबार हैं। मिल मालिकों को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर चीनी की कीमतें और गिरीं तो बैंक उनके कर्ज की सीमा कम कर देंगे। बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और रेणुका शुगर्स को कर्ज देने वाले सरकारी बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि कैश फ्लो और पीक लेवल की जरूरतों को देखते हुए बैंक कर्ज मंजूर करते हैं। आमतौर पर एक कंपनी के कैश फ्लो का मूल्यांकन पीक लेवल की जरूरतों के मुताबिक उनके तैयार उत्पादों से होता है जबकि चीनी मिलों की वित्तीय जरूरतों का मूल्यांकन पीक समय में होने वाले गन्ने की पेराई से होता है। अधिकारी ने बताया, 'उत्पादन में बढ़ोतरी के बाद भी अगर चीनी की कीमतों में कमी की संभावना बनती है तो बैंक एथनॉल ब्लेंडिंग, शराब कंपनियों को शीरे की बिक्री और को-जेनरेशन जैसे सहायक कारोबार के आधार पर मिलों के फ्यूचर कैश फ्लो का मूल्यांकन करते हैं।' इलाहाबाद बैंक ने चीनी सेक्टर को 444 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। कीमतों में कमी के बाद चीनी उद्योग को लेकर बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में सतर्कता बरतने का फैसला किया है। इलाहाबाद बैंक के एक अधिकारी ने बताया, 'सेक्टर को लेकर क्रिसिल के नजरिए को देखते हुए हमने फैसला किया कि कर्ज सिर्फ उन्हीं कंपनियों को मिलेगा, जिनके पास आमदनी के वैकल्पिक स्त्रोत मौजूद हैं।' देश की प्रमुख पीई फर्म राबो इक्विटी एडवाइजर्स के एमडी और चेयरमैन राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि पीई निवेश सिर्फ उन्हीं चीनी कंपनियों में होगा, जो इंटीग्रेशन की राह पर चल रही हैं। बलरामपुर चीनी के डायरेक्टर और सीएफओ किशोर शाह ने बताया, 'बही-खातों को अनियमितता से बचाने के लिए मौजूदा कारोबारी साल में बैंक, चीनी उद्योग को लेकर सख्ती बरत सकते हैं।' चीनी की बिक्री के जरिए नकदी बढ़ने की उम्मीद करने वाली चीनी मिलें घटती कीमतों से परेशान हैं। कामकाजी पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों से मिलने वाले कर्ज पर उनकी निर्भरता बढ़ गई है। उत्पादन लागत की तुलना में चीनी के दाम निचले स्तर जाने के बाद चीनी मिलों की कर्ज लेने की क्षमता पर बुरा असर पड़ा है। इन कारणों से महाराष्ट्र की चीनी मिलों की हालत बहुत खराब है। इन्हें 27 रुपए किलोग्राम की उत्पादन लागत से 3 रुपए पर कम पर चीनी की बिक्री करनी पड़ रही है। इससे मिलों के घाटे में जाने और इन्हें कर्ज देने वालों की रकम फंसने की आशंका पैदा हो गई है। महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी मिल संघ ने भी इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने बताया, 'चीनी के दाम घटने के बाद राज्य की मिलों पर दबाव काफी बढ़ गया है। उनके पास जल्द ही बैंक से मार्जिन कॉल आ सकती है।' महाराष्ट्र की कुल 165 मिलों में से आधी मिलें नकदी के लिए बैंकों पर निर्भर हैं। ठीकठाक नकदी रखने वाले मिलों को छोटी मिलों की तुलना में ज्यादा कर्ज मिलता है। (ई टी हिंदी)
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