मुंबई June 22, 2010
खरीफ सत्र में दलहन के रकबे में 10-12 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है। इसकी प्रमुख वजह है कि बड़े पैमाने पर किसान तिलहन की खेती से मुंह मोड़कर दलहन का रुख कर रहे हैं।
हालांकि कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 18 जून को समाप्त सप्ताह में 7 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई है और इस अवधि में बुआई का रकबा पिछले साल के 1.4 लाख हेक्टेयर की तुलना में घटकर 1.3 लाख हेक्टेयर रह गया है।
लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि जल्द ही रिकवरी हो जाएगी। इससे पिछले सप्ताह में बुआई का रकबा पिछले साल की तुलना में 18 प्रतिशत ज्यादा था। फसल वर्ष 2009-10 में कुल रकबा 231.6 लाख हेक्टेयर रहने की उम्मीद है, जिसमें खरीफ और रबी दोनों की फसलें शामिल हैं। दलहन की खेती खरीफ में 45 प्रतिशत और रबी में 55 प्रतिशत होती है।
2009-10 में दलहन की बुआई का क्षेत्रफल इससे पिछले के फसल वर्ष की तुलना में 5.63 प्रतिशत कम रहा। दाल आयातक संघ के अध्यक्ष केसी भरतिया दलहन के रकबे में बढ़ोतरी की तीन वजह बताते हैं। पहला- सरकार ने सभी दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है। यह बुआई के पहले हुआ है, जिससे किसान ज्यादा रकबे में बुआई के लिए प्रोत्साहित होंगे।
अरहर दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 30 प्रतिशत या 700 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है और यह 3000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। वहीं मूंग और उड़द के एमएसपी में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है और इसकी कीमतें क्रमश: 3170 और 2900 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं।
वाशी स्थित एक दाल कारोबारी हिम्मतभाई त्रिमूर्ति ने सरकार से अनुरोध किया है कि एमएसपी में और ज्यादा बढ़ोतरी की जानी चाहिए, जिससे किसान इसकी बुआई की ओर आकर्षित हों। दूसरे- दलहन की खुदरा कीमतों में पिछले साल जोरदार बढ़ोतरी हुई।
अरहर दाल 94 रुपये और उड़द की दाल 72 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई। अब कीमतें गिर गई हैं, फिर भी अरहर दाल 65-70 रुपये और उड़द की दाल 45-55 रुपये प्रति किलो बिक रही है। भरतिया का कहना है कि वैश्विक रूप से दलहन का उत्पादन कम है, इसलिए कीमतों में गिरावट की कोई उम्मीद नहीं लगती।
तीसरे- वैश्विक बाजार में दलहन की कीमतें ज्यादा हैं। इसका असर स्वाभाविक रूप से भारतीय बाजार पर पड़ रहा है। घरेलू उपभोक्ताओं ने अब उच्च कीमतों को स्वीकार कर लिया है, जिसका संकेत यह है कि उच्च कीमतों पर भी खपत में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसी स्थिति में भविष्य में भी कीमतों में कमी की कोई संभावना नहीं बनती है।
केयर रेटिंग के अर्थशात्री मदन सबनवीस ने कहा, 'अभी कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी कि किसान तिलहन से मुंह मोड़कर दलहन का रुख कर लेंगे।' उन्होंने कहा कि सरकार इस समय दलहन परियोजना पर ज्यादा खर्च कर रही है।
कोशिश है कि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जाए और वर्तमान क्षेत्रफल में ही उत्पादकता में बढ़ोतरी हो। पिछले साल हमने देखा था कि वर्तमान रकबे में ही बुआई पर ज्यादा उपज हुई थी, जिसका मतलब यह हुआ कि सरकार की योजना सही ढंग से चल रही है।
भारत में दाल का कुल उत्पादन 147 लाख टन है और औसत उत्पादकता 659 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। यह विकसित देशों से बहुत कम है, जहां उत्पादकता 1700-2000 किलो प्रति हेक्टेयर है। भारत को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए हर साल 30-40 लाख टन दलहन का आयात करना पड़ता है।
पिछले कुछ दिनों में कमी की वजह से दलहन की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं, जिससे निम्न मध्यम वर्ग में दाल की खपत में कमी आई है। उदाहरण के लिए जब अरहर की दाल 94 रुपये प्रति किलोग्राम पर थी तो एक उपभोक्ता, जो सामान्यतया 200 ग्राम दाल खाता था, उसने खपत कम करके 75-100 ग्राम कर दिया था।
भारत में दलहन की प्रति व्यक्ति सालाना खपत करीब 12 किलोग्राम है। देश में मांग की तुलना में दलहन की बहुत ज्यादा कमी है, जिसके चलते बड़े पैमाने पर आयात करना पड़ता है। दलहन आयात में लगातार बढ़ोतरी हुई है। जहां, 1998-99 में 4।6 लाख टन दलहन का आयात हुआ था, वहीं अब आयात बढ़कर 20 लाख टन पर पहुंच गया है। (बीएस हिंदी)
24 जून 2010
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