चंडीगढ़ June 25, 2010
एक ओर जहां देश में खाद्यान्न महंगाई दर चिंता का कारण बनी हुई है, वहीं गेहूं का भंडारण भी समस्या की वजह बन गया है।
पंजाब के विभिन्न इलाकों में 120 लाख टन गेहूं गोदामों और खुले आसमान के नीचे पड़ा है, जिससे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की नींद हराम हो गई है। पंजाब में गेहूं का कारोबार प्रति माह करीब 8 लाख टन है।
इन आंकड़ों के मुताबिक राज्य अगले रबी सीजन तक करीब 50 लाख टन का भंडार खत्म कर सकेगा। उसके बाद भी करीब 70 लाख टन गेहूं बच जाएगा। इससे धान पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि खरीद एजेंसियों को धान के भंडारण के लिए गोदाम की जरूरत होगी, क्योंकि खुले चबूतरे पर धान का भंडारण नहीं किया जा सकता, जैसा कि गेहूं के मामले में किया गया।
एफसीआई से जुड़े सूत्रों के मुताबिक राज्य में 71.2 लाख टन भंडारण क्षमता की जरूरत है। निजी कारोबारियों को गोदाम बनाने का काम दिए जाने के लिए टेंडर जारी किए गए हैं, लेकिन निजी क्षेत्र की ओर से बेहतर प्रतिक्रिया नहीं मिली है। एफसीआई के अधिकारियों ने कहा कि वे इस तरह से अतिरिक्त खरीद को लेकर तैयार नहीं थे, क्योंकि 2 साल पहले तक स्थिति संकटपूर्ण नहीं थी।
उन्होंने कहा कि राज्य में अतिरिक्त गेहूं करीब 74.8 लाख टन था, लेकिन यह मात्रा बढ़कर 161 लाख टन हो गई, क्योंकि पिछले साल का भी 74.8 लाख टन गेहूं बचा रह गया। इस साल कुल गेहूं 178 लाख टन हो गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी प्राथमिक वजह है, जिसकी वजह से बाजार में बड़ी मात्रा में आवक हुई।
योजना आयोग ने भी राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि उसे गेहूं-चावल की बुआई का चक्र तोड़ना चाहिए, क्योंकि वहां पर भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है और राज्य का जल स्तर भी बहुत नीचे जा रहा है।
पंजाब में गेहूं और चावल को मिलाकर कुल भंडारण क्षमता 170 लाख टन है। साथ ही 65 लाख टन का भंडारण खुले चबूतरे पर किया जा सकता है। अभी भंडारण बढ़ाने की अनुमानित जरूरत 220 लाख टन की है। ऐसी स्थिति में किसी भी हाल में 50 लाख टन अनाज खुले में पड़ा रहेगा।
योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन के मुताबिक खाद्यान्न के भंडारण को लेकर समस्या है, लेकिन स्थिति अभी खतरनाक स्तर पर नहीं है। उन्होंने कहा- पंजाब और हरियाणा में भंडारण की क्षमता क म है, लेकिन इस समय जैसी स्थिति पहले नहीं आई थी।
बहरहाल इस संकट का निकट भविष्य में हल निकलता नहीं नजर आ रहा है। पंजाब में जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है, जिसकी वजह से निजी क्षेत्र के कारोबारी गोदाम बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। खाद्य निगम ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र से कुछ खास उम्मीद नहीं कर रहा है। यहां तक कि एफसीआई के प्रमुख शिराज हुसैन के उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद भी समस्या का कोई समाधान नहीं निकल सका है।
अर्थशास्त्री और स्थानीय लोग आरोप लगाते हैं कि खाद्यान्न खरीद एजेंसियां ही इस कुप्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं, जिसके चलते हजारों की संख्या में बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और समय से वितरण न होने की वजह से कई टन अनाज सड़ जाता है।
जब खाद्यान्न के वितरण के बारे में पूछा गया तो एफसीआई से जुड़े सूत्रों ने कहा कि निगम एक खरीद एजेंसी है और इसकी जिम्मेदारी रखरखाव और वितरण की है। उसे भारत सरकार से दिशानिर्देश मिलते हैं, जिसके मुताबिक काम होता है।
उन्होंने कहा कि कृषि मंत्रालय, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण के बारे में फैसले करते हैं और सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे गए अनाज का वितरण उसी के मुताबिक होता है। (बीएस हिंदी)
28 जून 2010
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