बेंगलुरु June 17, 2010
देश में कॉफी की हाजिर कीमतों में तेजी के चलते कॉफी निर्यात निकट समय में प्रभावित हो सकता है।
कॉफी के अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में पिछले एक हफ्ते में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है और आपूर्ति में कमी के चलते अब तक के सर्वोच्च स्तर पर कारोबार हो रहा है। ब्राजील और वियतनाम जैसे बड़े उत्पादक देशों से आपूर्ति कम है। साथ ही बाजार में हेज फंड सट्टेबाजी भी कर रहे हैं जिससे कीमतों में अस्थिरता देखी जा रही है।
आईसीई वायदा में जुलाई डिलिवरी के लिए कॉफी के भाव हाल ही में 4 फीसदी चढ़कर 1.5095 डॉलर प्रति पौंड बंद हुए। पिछले एक हफ्ते में लीफ जुलाई रोबस्टा के भाव 18.2 फीसदी तक चढ़े हैं। लीफ जुलाई अरेबिका में भी 11 फीसदी की उछाल आ चुकी है।
भारतीय कॉफी बोर्ड के उपाध्यक्ष जबीर असगर का कहना है, 'दिसंबर-जून के दौरान आमतौर पर भारत से कॉफी का निर्यात शीर्ष पर होता है जिसके बाद इसमें कमी आने लगती है। जून के बाद निर्यात की मौजूदा धीमी गति के साथ बाजार में चल रही ऊंची कीमतों से आगे निर्यात में और कमी आ सकती है।'
हालांकि, उन्होंने कहा कि ब्राजील और वियतनाम से नई फसल के बाजार में आने से अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में निकट समय में कुछ गिरावट की गुंजाइश है। जनवरी से जून 2010 के दौरान भारत का कॉफी निर्यात पिछले साल के मुकाबले 48 फीसदी ज्यादा है। इस दौरान निर्यात 1,41,695 टन रहा है जबकि पिछले साल समान अवधि में निर्यात 95,662 टन रहा था।
देश का कॉफी निर्यात 2008 के 2,17,993 टन के मुकाबले 2009 में 13 फीसदी गिरकर 1,889,399 टन रह गया था। इस साल ज्यादा मांग के चलते कॉफी निर्यात में जोरदार वापसी की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, कीमतों में अंतर निर्यात लक्ष्य को बिगाड़ सकता है।
जबीर असगर ने कहा, 'फिलहाल मुख्य रूप से फंडों की खरीद के चलते बाजार में उतार-चढ़ाव है। ऊंची कीमतों की वजह से ज्यादातर कारोबारी फिलहाल सौदे करने से बच रहे हैं। किसी भी तरह का समझौता करने से पहले वे कीमतों में स्थिरता चाहते हैं।'
कुछ बाजार विश्लेषकों और कारोबारियों का कहना है कि कॉफी की घरेलू कीमतों में भी हाल फिलहाल में कमी देखी जा सकती है। हैदराबाद के एक कारोबारी सुरेश बाबू का कहना है, 'फिलहाल घरेलू बाजार में कॉफी की कीमतें वियतनाम और कोलंबिया जैसे दूसरे उत्पादक देशों के मुकाबले ज्यादा हैं। अंतरराष्ट्रीय वायदा भाव में 8 से 10 फीसदी गिरावट की उम्मीद की जा रही है, लिहाजा घरेलू बाजार में भी कीमतों में नरमी आनी चाहिए।'
कॉफी की अरेबिका किस्म का निर्यात आमतौर पर जनवरी से जून के बीच किया जाता है, ऐसे में इस तरह की कीमतों का असर रोबस्टा किस्म के निर्यात पर होने की आशंका है। जेआरजी वेल्थ मैनेजमेंट के विश्लेषक चौवड़ा रेड्डी ने बताया कि ऊंची कीमतों के चलते निर्यात में कमी आ सकती है क्योंकि विदेशी कारोबारी इस कीमत स्तर पर बाजार में उतरने से कतरा रहे हैं।
हालांकि रेड्डी ने कहा कि खुदरा बाजार में अभी भी असर नहीं हुआ है। लेकिन, कीमतों के निर्यात पर असर को लेकर कुछ कॉफी उत्पादकों का नजरिया थोड़ा अलग है। कर्नाटक के एक कॉफी उत्पादन अजय तिपैया का कहना है, 'फरवरी के मुकाबले कॉफी की घरेलू कीमतों में गिरावट आई है। साथ ही मौजूदा बढ़ोतरी और निर्यात पर इसके असर को लेकर कुछ कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी।'
उन्होंने यह भी कहा कि आपूर्ति में कमी होने से कीमतें मौजूदा स्तरों पर ही रह सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय कॉफी संघ के संशोधित उत्पादन अनुमानों में वैश्विक आपूर्ति में पहले के मुकाबले कमी का अनुमान है। अफ्रीका, केंद्रीय अमेरिका और मैक्सिको में फसल अच्छी न रहने से 2009-10 सत्र में कॉफी का उत्पादन 1।1 फीसदी घटकर 1206 लाख बोरी रहने का अनुमान है। एक बोरी का वजन 60 किलो होता है। (बीएस हिंदी)
18 जून 2010
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