मुंबई June 27, 2010
चीनी मिलों के समर्थन में महाराष्ट्र सरकार ने मामले को केंद्र सरकार तक पहुंचाने का फैसला किया है। सरकार ने चीनी के आयात पर 60 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने, आयातित चीनी में से 20 प्रतिशत लेवी चीनी के नियम के तहत लाए जाने, केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी और लेवी कोटे को 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत किए जाने की मांग करेगी। महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य है और यहां कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत उत्पादन होता है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि इस मसले को केंद्र सरकार के सामने प्राथमिकता के आधार पर रखे जाने का फैसला किया गया है। चीनी की कीमतों में तेज गिरावट की वजह से आयात शुल्क और लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी किए जाने की खबरें आ रही हैं। जनवरी की शुरुआत में जहां चीनी की कीमतें 40 रुपये प्रति किलो थीं, अब थोक बाजार में दाम गिरकर 23 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। इससे चीनी मिलों का मुनाफा प्रभावित हुआ है। इस सिलसिले में तमाम बातचीत के बावजूद केंद्र सरकार की ओर से कोई अधिसूचना नहीं जारी हुई है। पिछले गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की चीनी मिलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी। चीनी की कीमतों में गिरावट की वजह से चीनी मिलें संकट में आ गई हैं, पहली बार ऐसा हो रहा है जब कोई राज्य सरकार चीनी उद्योग की समस्या हल करने के लिए सामने आई है और मिलों के मामले को केंद्र सरकार के सामने रखने का फैसला किया है। चीनी की कीमतों में तेज गिरावट से मिलों के घाटे में आने के मसले पर राज्य की चीनी मिलों के साथ महाराष्ट के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसमें मिल मालिकों ने चीनी के आयात पर 60 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने के पक्ष में दलील दी। मिलों ने चीनी क्षेत्र को सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त किए जाने का भी मसला उठाया। साथ ही लेवी चीनी का प्रतिशत कम किए जाने और लेवी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी किए जाने के लिए केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय के सामने मिलों का पक्ष रखने का अनुरोध किया गया। बैठक में मिलों ने 10 साल के कर्ज पर 5 साल का अधिस्थगन दिए जाने की भी मांग की, जैसा कि केंद्र सरकार ने 2006-07 में किया था। अधिस्थगन की मांग चीनी उद्योग को दिए गए 2500 करोड़ रुपये के कर्ज की किस्त लिए जाने पर की गई है। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा- राज्य की मिलें इस सयम मुनाफे की कमी की अनोखी समस्या में फंसी हैं। चीनी की कीमतों में अचानक गिरावट से मुनाफा घटा है और इस समय तो स्थिति यह है कि उत्पादन लागत से 400 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम मिल रहे हैं। इसे देखते हुए चीनी मिलों के संगठन फेडरेशन आफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज इन महाराष्ट्र ने कर्ज के भुगतान पर अधिस्थगन का तर्क दृढ़तापूर्वक रखा है, जैसा कि केंद्र सरकार ने 2006-07 में किया था। नाबार्ड और अन्य वित्तीय संस्थानों से 2500 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लिया गया है। मिलों का तर्क है कि अगर अधिस्थगन की अनुमति नहीं मिलती तो मिलों की वित्तीय हालत पर बहुत बुरा असर होगा। अधिकारी ने कहा कि मिलों द्वारा चीन खरीद कर में छूट दिए जाने की मांग राज्य सरकार ने खारिज कर दी है। (बीएस हिंदी)
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