हैदराबाद June 08, 2010
कपास उत्पादक राज्यों की सरकारों ने बीज कंपनियों के बीटी कपास के बीज की कीमतों में बढ़ोतरी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। बीज बनाने वालों ने सरकार से कहा था कि बीजी-1 किस्म की कीमतें 850 रुपये और बीजी-2 किस्म की कीमतें 1050 रुपये प्रति पैकेट की जानी चाहिए, क्योंकि मजदूरी और अन्य लागत में 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सरकार ने यह कहते हुए प्रस्ताव खारिज कर दिया है कि अगर बीज की कीमतें बढ़ती हैं तो किसानों की उत्पादन लागत में बढ़ोतरी होगी और पूरी विपणन श्रृंखला पर इसका असर पड़ेगा। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। भारत में बीज का बाजार बढ़कर 6500 करोड़ रुपये का हो गया है। कपास की हिस्सेदारी इसमें अकेले 2500 करोड़ रुपये की है, जिसमें 80-90 प्रतिशत बिक्री बीटी कपास की होती है। बीज कंपनियां आंध्र प्रदेश में बीजी-1 किस्म 650 रुपये और बीजी-2 किस्म के बीज की बिक्री 750 रुपये के भाव करती हैं। इसके एक पैकेट में 400 ग्राम बीज होता है। वहीं नॉन बीटी किस्म की बिक्री 300 रुपये प्रति पैकेट के भाव की जा रही है, जो दर पिछले साल भी थी। कंपनियों ने बीटी कपास की कीमतों पर नियंत्रण का भी विरोध किया है। उनका कहना है कि कीमतें तय नहीं की जानी चाहिए, बल्कि उसे बाजार के मुताबिक होना चाहिए। पायोनियर हाइब्रिड इंटरनैशनल सीड्स के कंट्री मैनेजर केवी सुब्बाराव ने कहा, 'बीटी कपास के बीज की कीमतें बाजार की गति के मुताबिक तय होना चाहिए। राज्य सरकारों का इस पर नियंत्रण नहीं होना चाहिए। कीमतें तय किए जाने से प्रतिस्पर्धा कम होगी और इससे बीज के खरीदारों को ज्यादा विकल्प नहीं होगा।एसोसिएशन आफ बायोटेक लेड इंटरप्राइजेज ने भी कहा कि बीटी कपास की कीमतें बाजार द्वारा नियंत्रित होनी चाहिए और राज्य सरकारों को उस पर नियंत्रण नहीं लगाना चाहिए। इस समय करीब 60 कंपनियां बीटी बीज का उत्पादन कर रही हैं और वे 300 से ज्यादा उत्पाद पेश कर रही हैं। अन्य बीजों की कीमतों में 50 से 100 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है, लेकिन बीटी कपास की कीमतें स्थिर हैं। इस सिलसिले में एसोसिएशन ने कई प्रतिनिधियों को सरकार के पास भेजा है, जिससे उन्हें कीमतों में बढ़ोतरी के लिए समझाया जा सके। बायोस्टाट एमएच सीड्स के कार्यकारी निदेशक राकेश चोपड़ा ने कहा कि बीज बनाने वाली कंपनियों के संगठन अभी भी इस कोशिश में लगे हैं कि कीमतों में बढ़ोतरी की जाए। उन्होंने कहा कि मॉनसून आने वाला है, सरकार को जल्द कीमतों में बढ़ोतरी के बारे में फैसला करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश के किसान कपास की खेती छोड़कर धान की ओर जा सकते हैं, गुजराज में दालों की ओर और कर्नाटक में किसान मक्के और धान की ओर आकर्षित हो सकते हैं, अगर कंपनियां किसानों को लाभकारी मूल्य पर कपास के बीज मुहैया नहीं कराती हैं। कंपनियां बीज उत्पादक किसानों से बीज खरीदती हैं और किसानों को ज्यादा दाम दिए जाने के नाम पर बीजों के ज्यादा दाम चाहती हैं। हाल ही में गुजरात सरकार ने बीटी कपास बीज विपणन कंपनियों से कहा था कि किसानों को बीज के और ज्यादा दाम का भुगतान करना चाहिए, , साथ ही बीज के दाम को पहले के स्तर पर बनाए रखना चाहिए। कैपिटल लाइन की सूचना के मुताबिक खरीफ की बुआई शुरू होने वाली है, ऐसे में विभिन्न राज्य सरकारें बीज की कीमतों पर नियंत्रण और प्रतिबंध लगाने में लगी हैं। बीज कंपनियां140 रुपये वितरण पर, 243 रुपये उत्पादन पर, 81 रुपये शोध पर और 86 रुपये विशिष्टता शुल्क पर खर्च करती हैं, जिससे कंपनी को बीजी-1 बीजों की तकनीक मिलती है। एनएसएआई के मुताबिक उत्तर भारत में बीटी कपास के बीजों की पहले ही कमी है। एनएसएआई ने हाल ही में हैदराबाद में हुई एक बैठक में कहा कि कपास बीज का उत्पादन घटकर 300 लाख पैकेट रह गया है, जो दो साल पहले 450 लाख पैकेट था। अगर बीज की वर्तमान कीमतें बनी रहीं तो अगले साल स्वाभाविक रूप से बीटी बीज की कमी हो जाएगी। (बीएस हिंदी)
09 जून 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें