मुंबई 06 02, 2010
पिछले एक महीने में जस्ते की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिली है। एक महीने में भाव करीब 17 फीसदी तक लुढ़क चुके हैं। बुधवार को लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में जस्ते की कीमतें मंगलवार के 1853 डॉलर प्रति टन के मुकाबले 1826 डॉलर प्रति टन रहीं। मई की शुरुआत में एलएमई में जस्ते की कीमतें 2208 डॉलर प्रति टन थीं। यूरो क्षेत्र के संकट ने सभी धातुओं के कारोबार को ग्रहण लगा दिया है। स्टील उत्पादकों की ओर से कीमतें कम किए जाने जस्ते में कमजोरी दिख रही है और इसकी मांग भी सुस्त पड़ रही है।बुधवार को भी धातु की कीमतों में एलएमई और चीन के शांघाई एक्सचेंज में गिरावट देखी गई। बेंचमार्क शांघाई जस्ते की कीमतें बुधवार को 5 फीसदी यानी 795 युआन फिसल गईं जो मंगलवार को अच्छे कारोबार के साथ 15,025 युआन प्रति टन पर बंद हुई थीं। औसतन 3,20,000 टन के दैनिक कारोबार के मुकाबले बुधवार को सुबह के सत्र में करीब 30 लाख टन यानी जस्ते के वैश्विक उत्पादन के करीब 20 फीसदी का कारोबार अकेले संघाई में हुआ। जस्ते का मुख्य इस्तेमाल स्टील पर चढ़ाने के लिए होता है। स्टील की वैश्विक कीमतों में गिरावट आने और यूरोपीय क्षेत्र के कर्ज संकट से जस्ते की कीमतों पर असर हुआ है। घरेलू वायदा बाजार में जस्ते की कीमतें हाल ही में 9 महीने के निचले स्तर 83।50 रुपये तक गई हैं। हालांकि, बुधवार को एमसीएक्स में कीमतों में कुछ सुधार देखने को मिला और यह 86.70 रुपये प्रति किलो रहीं।कैपिटल लाइन विश्लेषण के मुताबिक, 'हमें लगता है कि जून में कीमतों नकारात्मक रुझान के साथ नरम ही रहेंगी, लेकिन 2010 धातु के मामले में अच्छा साल नजर आ रहा है। साल की दूसरी तिमाही में स्टील, पीतल, कांसा और मिश्र धातु उद्योग की ओर से मांग यूरोपी और एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति पर निर्भर करेगी। भारत और चीन जैसे देशों में मौद्रिक सख्ती के चलते निकट अवधि में जस्ते की कीमतों पर दबाव बना रहेगा। हालांकि, जस्ते के बढ़ते अतिरेक का भी कीमतों पर असर होगा। स्टील की कीमतों में नरमी का असर भी आने वाले दिनों में जस्ते पर होगा। चीन सरकार ने हाल ही में रियल एस्टेट बाजार को थोड़ा स्थिर करने के लिए कदम उठाए हैं। वहीं, यूरो क्षेत्र के संकट ने जले पर नमक छिड़कने का काम किया है। पहली तिमाही में परिशोधित जस्ते का अतिरेक 2009 के अतिरेक के समान ही है और इससे सीमित दायरे के बाजार में नई सट्ïटा गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है।इंडिया इन्फोलाइन कमोडिटीज के विश्लेषक तरंग भानुशाली ने कहा, 'जस्ता उत्पादकों ने वैश्विक स्तर पर कीमतों में कटौती की है और ये भंडारों को भी खोल रहे हैं जिससे आगे भी कीमतों पर दबाव रहेगा। इसी बीच यूरो क्षेत्र और चीन से मांग में भी कमी आ रही है। (बीएस हिंदी)
03 जून 2010
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