लखनऊ December 01, 2009
गन्ना मूल्य के मामले पर सूबे की माया सरकार के खिलाफ ईंट से ईंट बजा देने का ऐलान करने वाले भारतीय किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह टिकैत का मंगलवार को राजधानी घेरो कार्यक्रम फीका रहा।
टिकैत के साथ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचे हजारों उनके नेता ने विधानसभा कूच करने की जिद छोड़ कर सूने से रेलवे स्टेडियम में सभा कर अपने कार्यक्रम की औपचारिकता पूरी कर ली। किसानों की सभा में टिकैत ने कहा कि अगर सूबे की माया सरकार गन्ने का दाम 280 रुपये क्विंटल नहीं दिला सकती है तो गन्ना उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब भेजा जाएगा।
उनका कहना था कि केंद्र सरकार को तो किसानों ने झुका दिया और अब जो भी उनके सामने आएगा, उसे उनकी बात माननी ही होगी। टिकैत ने कहा कि किसान अपना आंदोलन शांतिपूर्वक चला रहे हैं और किसी से टकराव मोल लेना नहीं चाहते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि किसानों को कमजोर हरगिज न समझा जाए।
सरकार के चीनी मिलों के जोर-शोर से शुरू हो जाने के दावे का मखौल उड़ाते हुए भारतीय किसान यूनियन के नेताओं ने कहा कि खाना-पूरी करके मिलों को चालू तो किया गया पर अब गन्ना न मिलने के चलते वे बंद हो रही हैं। उनका कहना था कि बिना सही दाम मिलों को गन्ना नहीं मिलने वाला, सो वे भी अपनी जिद छोड़कर 280 रुपये का दाम दे दें और व्यापार करें।
भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने का दाम 280 रुपये किए जाने की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि दो साल पहले जब चीनी 15 रुपये किलो थी तो किसानों को 145 रुपये प्रति क्विंटल का दाम दिया गया था पर आज जब चीनी 40 रुपये जा पहुंची है तो किसानों को 195 रुपये देकर टरकाया जा रहा है।
टिकैत ने कहा कि चीनी के मौजूदा दाम के हिसाब से तो किसानों को कम से कम 350 रुपए प्रति क्विंटल गन्ने का दाम दिया जाना चाहिए। सभा के बाद भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के साथ आठ किसानों का एक प्रतिनिधि मंडल सरकार को ज्ञापन देने के लिए कूच कर गया।
मैडम मिलीं तक नहीं
भारतीय किसान यूनियन के गन्ना मूल्य को लेकर लखनऊ में आयोजित सभा के बाद राकेश टिकैत के नेतृत्व में किसानों के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री के संबोधित एक ज्ञापन उनके सचिवालय के अधिकारियों को सौंपा। सूबे की मुखिया की ओर से प्रतिनिधि मंडल से प्रमुख सचिव शैलेश कृष्ण और नेतराम ने मुलाकात की।
इधर राज्य की मुख्यमंत्री मायावती ने सभी मंडलायुक्तों को निर्देश दिया कि गन्ना किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य चीनी मिलों द्वारा प्रत्येक दशा में दिए जाने हेतु मंडलायुक्तों तथा गन्ना किसानों के प्रतिनिधियों तथा चीनी मिल मालिकों के मध्य पारस्परिक सहमति के आधार पर राय सरकार द्वारा घोषित राय परामर्शित मूल्य के अतिरिक्त दिए जा सकने वाले प्रोत्साहन को दिलाने के लिए पुन: प्रयास करें।
सच्चाई कुछ और ही है!
सरकार के दावों के विपरीत उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों की चिमनियों से धुआं निकलता नहीं दिख रहा है। उच्च अधिकारियों के दबाव में जैसे-तैसे मिलों में पेराई की शुरुआत होने की घोषणा तो कर दी गई पर हकीकत तो यह है कि अभी किसान मिलों को गन्ना नहीं दे रहे हैं।
राजधानी में गन्ना विकास विभाग में स्थापित कंट्रोल रूम की मानें तो इस समय सूबे में 81 चीनी मिलों में पेरायी की शुरुआत हो गई है पर जिलों से मिल रही सूचना के मुताबिक इनमें से 35 मिलें तो चल कर फिर से बंद हो गई हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 20, मध्य उत्तर प्रदेश की 10 और पूरब में पांच मिलें चलने के बाद फिर से बंद हो गई हैं। सबसे ज्यादा खराब हालत तो सहारनपुर मंडल की है, जहां अभी दो दिन पहले तक एक भी मिल नहीं चल सकी थी। सोमवार से वहां पर दो मिलों में पेराई का काम शुरू किया गया है। (बीएस हिन्दी)
03 दिसंबर 2009
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