28 दिसंबर 2009
सफेद क्रांति को लगी नजर
महंगाई की मार झेल रहे लोगों पर अब महंगे दूध के रूप में गाज गिरी है। पहले से ही रसोई के बिगड़े बजट में और इजाफा हो गया है। हरे चारे के बढ़े दाम व डिमांड के मुकाबले कम हो रहे दूध के उत्पादन ने नौनिहालों का 'निवाला' दूर कर दिया है। दूध का रेट बढ़ने से इससे बनने वाले उत्पादों पर भी इसका असर पड़ सकता है। गुस्साई गृहणियां व खार खाए लोग कोसने के अलावा और कुछ कर नहीं पा रहे हैं तो सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। दविन्दर सिंह, जालंधर; 'सफेद क्रांति' पर इस समय महंगाई भारी पड़ रही है। किसान बढ़ती महंगाई के कारण कृषि के सहायक धंधों से मुंह फेरने लगे हैं। जिन किसानों ने डेयरी व्यवसाय को अपनाया भी है, वे भी बढ़ती महंगाई के कारण पशुओं को दिए जाने वाले पौष्टिक चारे में कटौती कर रहे हैं। नतीजन राज्य में दूध डिमांड के मुकाबले कम हो रहा है। इसी कमी से जूझ रही कंपनी वेरका दूध के बने प्रोडक्ट के मूल्य में लगातार बढ़ोतरी कर काम चला रही है। पैकेट बंद दूध बेचने वाली कंपनी वेरका के पास इस समय 12 फीसदी दूध की कमी है, जबकि शहरों में दूध विक्रेताओं के पास दूध की 25 फीसदी से भी ऊपर कमी दर्ज की जा रही है। डेयरी विभाग से जुड़े लोगों के मुताबिक एक तो सर्दी के कारण दूध का उत्पादन कम हो रहा है, दूसरा भूसे व खल के रेट में लगातार हो रही वृद्धि के कारण पशुओं को पौष्टिक आहार कम मिल रहे हैं, जिसका सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ रहा है। दोआबा क्षेत्र में लगातार पैकेट बंद दूध के उत्पादन में पैर पसारने वाले वेरका मिल्क प्लांट के अधिकारियों के मुताबिक केवल उन्हीं के पास उत्पादन के मुकाबले 12 फीसदी दूध की कमी है, जबकि पहले के मुकाबले दूध की डिमांड में दस फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मिल्कफेड के मुताबिक उनकी ओर से प्रतिदिन सोसायटियों के माध्यम से 11।5 लाख लीटर दूध की खरीद की जा रही है। इससे 7.5 लाख लीटर पैकेट बंद किया जाता है। मिल्कफेड के प्रबंधक एसके डूडेजा खुद मान चुके हैं कि पैकेट बंद दूध की डिमांड में 15 से 20 फीसदी बढ़ोतरी होने से उन्हें अन्य उत्पाद के लिए पर्याप्त दूध नहीं मिल रहा है। महंगी हुई चाय की चुस्की; दूध के रेट में वृद्धि ने चाय की चुस्की भी महंगी कर दी है। बाजारों में अब चाय की प्याली चार रुपये में बिक रही है। दूध से पहले चायपत्ती निर्माता कंपनियों ने करीब छह बार रेट बढ़ाकर चाय का स्वाद कड़वा किया हुआ है, अब दूध ने इसका जायका और बिगाड़ दिया है। पशुओं की खुराक में हो रही लगातार वृद्धि; डेयरी व्यवसाय से जुड़े कुंदन सिंह का कहना है कि इस समय बढ़ती महंगाई पशुओं के खाने पर भारी पड़ रही है। उनके मुताबिक इस समय सरसों की खल 15 सौ रुपये के करीब अपनी मंजिल तय कर चुकी है, जो पहले एक हजार रुपये के करीब थी। ऐसे ही बाजार में भूसा पांच सौ रुपये क्विंटल तक पहुंच चुका है और हरा चारा भी नहीं मिल रहा है। इस कारण डेयरी व्यवसाय से जुड़े लोग पशुओं को पूरा पौष्टिक आहार नहीं दे पा रहे हैं, जिस कारण दूध का उत्पादन लगातार कम हो रहा है। दूध का भाव; खुले बाजार में दूध बेचने वाले दोधी डेयरी से पूरी फैट निकाल व बिना निकाले इसे अलग-अलग रेट पर बेचते हैं। इस समय खुली मार्केट में दूध 23 रुपये से लेकर 28 रुपये किलोग्राम तक बिक रहा है। वहीं वेरका का आधा लीटर का पैकेट बंद लाल रंग अब 13 से 14 रुपये, हरा पैकेट 12 रुपये की बजाए 12.50 पैसे तथा पीला पैकेट 10 रुपये से 10.30 रुपये प्रति पैकेट हो गया है। पैकेट बंद दूध बेचने वाली बाबा कंपनी ने भी अपने दूध के पैकेट में वेरका के बराबर वृद्धि कर दी है। जुबां पर आया दद; दूध का दाम बढ़ने के बाद लोगों की बेचैनी देखी जा सकती है। पहले से ही महंगाई से त्रस्त लोगों की अब नींद उड़ गई है। गृहणी सीमा, परमजीत कौर व रुपिंदर कौर का कहना है कि रसोई का बजट सुधरने का नाम नहीं ले रहा। दिनों-दिन बढ़ती महंगाई के कारण पैसे की बचत तो दूर महीने के अंत में कर्ज लेना पड़ रहा है। बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा कर रहीं इन गृहणियां का दर्द इन बातों से साफ झलक रहा था। (दैनिक जागरण)
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