22 दिसंबर 2009
खपत बढ़ने के साथ और महंगा हो सकता है कॉपर
अगले साल आर्थिक विकास की गति तेज होने से निर्माण गतिविधियां रफ्तार पकड़ने लगेंगी। इससे कॉपर के वैश्विक उत्पादन में करीब सात फीसदी का इजाफा हो सकता है। इस दौरान चीन और भारत में इसकी खपत बढ़ने की संभावना है। इंटरनेशनल कॉपर स्टडी ग्रुप (आईसीएसजी) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 के दौरान कॉपर कावैश्विक माइन उत्पादन 6.7 फीसदी बढ़कर 169 लाख टन हो सकता हैं। इस दौरान रिफाइंड कॉपर का उत्पादन करीब एक फीसदी बढ़कर 182 लाख टन होने की संभावना हैं। वहीं चालू वर्ष में रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक माइन कॉपर उत्पादन करीब तीन फीसदी अधिक रह सकता हैं। वर्ष 2009 के दौरान 158 लाख टन माइन कॉपर का उत्पादन हो सकता हैं, हालांकि इस वर्ष रिफाइंड कापॅर करीब 0.80 फीसदी घटकर 180 लाख रहने की संभावना है। वहीं दूसरी ओर पिछले साल के मुकाबले इस साल रिफाइंड कॉपर की मांग 1.6 फीसदी की गिरावट के साथ 177 लाख टन रह सकती है।इस दौरान कॉपर के तीन बड़े उपभोक्ता अमेरिका, यूरेपियन यूनियन और जापान में इसके उपयोग में 17 फीसदी की गिरावट आने की संभावना हैं। लेकिन आईसीएसजी के मुताबिक अगले साल प्रमुख कॉपर की खपत वाले देशों में इसकी मांग अधिक रहने की संभावना है। चीन में अगले कॉपर की खपत आठ फीसदी बढ़कर 58.3 लाख टन तक पहुंच सकती हैं। आईसीआरए मैनेजमेंट कंसल्टिंग सर्विस की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कॉपर की खपत 6 फीसदी बढ़कर 5.5 लाख टन होने की संभावना है। चालू वर्ष में यह 5.3 फीसदी बढ़कर 5.2 लाख टन हो सकती हैं। हालांकि आईसीएसजी के अनुसार कॉपर की वैश्विक खपत महज 0.26 फीसदी घटकर 176.7 लाख टन रहने का अनुमान है। भारत में कॉपर की प्रति व्यक्ति खपत महज 0.4 किलोग्राम है, चीन में यह चार किलोग्राम है। चालू वर्ष के दौरान 3.70 लाख टन रिफाइंड कॉपर का सरप्लस रहने की संभावना है। अगले साल यह आंकड़ा 5.40 लाख टन तक पहुंच सकता हैं।आर्थिक हालात सुधरने से साल भर में लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में कॉपर के दाम 3071 डॉलर से बढ़कर स्त्र9क्क् डॉलर प्रति टन और वहीं घरेलू बाजार में कॉपर के दाम 150 रुपये से बढ़कर 325 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। अगले साल के दौरान भी इसके मूल्यों में तेजी बरकरार रहेगी। इसकी वजह आर्थिक हालात सुधरने से भवन निर्माण के कार्य तेजी आने की संभावना है। साथ बिजली क्षेत्र में भी विकास होगा। दरअसल इसका इलैक्ट्रिकल और भवन निर्माण में सबसे अधिक किया जाता है। उल्लेखनीय है कि कॉपर की सबसे अधिक खपत इलैक्ट्रिकल में 42 फीसदी, भवन निर्माण में 28 फीसदी, ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी, कंज्यूमर प्रोडक्ट में 9 फीसदी और इंडस्ट्रियल मशीनरी में 9 फीसदी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन एशिया में 43 फीसदी होता है इसके बाद 32 फीसदी अमेरिका,19 फीसदी यूरोप में किया जाता है। (बिज़नस भास्कर)
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