चीनी मिलों की आय में चालू वर्ष में आ चुकी है 80 फीसदी की उछाल
मुंबई December 28, 2009
देश की चीनी मिलों की चीनी उत्पादन से होने वाली आय में इस साल 80 फीसदी का इजाफा हुआ है।
उत्पादन में खासी कमी से चीनी के दाम इस साल काफी बढ़े हैं। हाल यह है कि मिलों को अभी प्रति किलो चीनी पर 6 से 10 रुपये मिल रहे हैं। चीनी उत्पादकों के मुताबिक, इतना मुनाफा उन्हें पहले कभी नहीं मिला और भविष्य में भी इतना शायद ही मिले।
चीनी की तेजी को अंतरराष्ट्रीय बाजारों से भी समर्थन मिल रहा है। बीते गुरुवार को सफेद चीनी के वायदा भाव ने फरवरी 1981 के बाद का उच्चतम स्तर छू लिया। इस तेजी की वजह डॉलर की कमजोरी और जिंस बाजार की तेजी रही। इस साल चीनी की वायदा कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं।
प्रमुख चीनी कंपनियों के अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि भारत में चीनी का उत्पादन इस साल (अक्टूबर से सितंबर का सीजन) 1.60 करोड़ टन रहने का अनुमान है। पिछले साल के उत्पादन 1.47 करोड़ टन से यह थोड़ा ज्यादा है। फिर भी इस साल की कुल मांग से उत्पादन की यह मात्रा 75 लाख टन कम रहेगी, ऐसा अनुमान है।
भारत पहले ही 50 लाख टन कच्ची चीनी आयात कर चुका है। यह आयात ज्यादातर ब्राजील और ताइवान से हुआ है। बढ़ती मांग को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि और चीनी आयात करनी पड़ेगी। एक अधिकारी ने बताया कि इस चलते वैश्विक बाजार में चीनी का रुख तेज है।
महाराष्ट्र के सहकारी चीनी मिलों के परिसंघ (एमएसएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे पहले ही सतर्क कर चुके हैं कि चीनी की कीमतें साल भर बाद यानी जनवरी 2011 से ही कम होना शुरू होंगी। उन्होंने कहा, 'देश में अगले सीजन में गन्ने का उत्पादन बढ़ने को लेकर हम आश्वस्त हैं। इससे अनुमान है कि 2010-11 सीजन में देश में 2.15 करोड़ टन चीनी उत्पादित होगी।'
पहले अग्रिम अनुमान के रूप में महाराष्ट्र की चीनी मिलों ने केंद्र सरकार द्वारा घोषित एफआरपी (157.5 रुपये प्रति क्विंटल) से ज्यादा भुगतान किया है। महाराष्ट्र की मिलें मौजूदा सीजन के अंत तक 250 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान करेंगी। पिछले साल की तुलना में यह 100 रुपये ज्यादा होगी।
हालांकि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें प्रति क्विंटल 210-215 रुपये का भुगतान कर रही हैं। पिछले साल यह महज 140 रुपये प्रति क्विंटल था। तमिलनाडु में 165-170 रुपये प्रति क्विंटल की दर से चीनी मिल भुगतान कर रहे हैं।
इस बीच अधिकारियों ने मांग की है कि सरकार चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करे। ताकि इसका कारोबार भी अन्य कृषि जिंसों के समान हो सकें और कीमतें नियंत्रित न हो। चीनी नियंत्रण आदेश (शुगर कंट्रोल ऑर्डर) में ताजा संशोधन के जरिए सरकार ने लेवी चीनी का कोटा दोगुना कर 10 से 20 फीसदी कर दिया है।
हालांकि इससे औसत वसूली 13 फीसदी कम हो जाएगी। एक अधिकारी ने बताया कि जनवितरण प्रणाली के जरिए लेवी चीनी वितरित करने में सरकार को कई महीने लगते हैं। इस दौरान बाजार में चीनी की कृत्रिम कमी हो जाती है और कीमतें बढ़ जाती हैं। चीनी सेक्टर को नियंत्रण मुक्त करने से इस तरह की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।
इस बीच चीनी परिसंघ उत्तर प्रदेश सरकार से जेएनपीटी और कांडला पोर्ट पर पड़ी 20 लाख टन कच्ची चीनी को महाराष्ट्र में रिफाइन करने की अनुमति देने की मांग रखने की योजना बना रहा है। इस चीनी को ब्राजील और ताइवान से उत्तर प्रदेश के लिए मंगाया गया है। (बीएस हिन्दी)
28 दिसंबर 2009
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