मुंबई 12 21, 2009
तेल उद्योग के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने वायदा बाजार नियामक, वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) से तिलहन के वायदा कारोबार पर अंकुश लगाने की मांग की है।
उन्होंने कहा है कि तिलहन के वायदा सौदे वर्तमान के 6 माह की बजाय अधिकतम 2 माह के लिए होने चाहिए। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और नियामक को लिखे गए एक पत्र में एसईए ने तर्क दिया है कि 6 महीने के लिए होने वाले वायदा सौदों से अटकलबाजी बढ़ती है और इससे कीमतों में बढ़ोतरी होती है। यह भारतीय बाजार के लिए बढ़िया नहीं है।
एसईए के निदेशक बीवी मेहता ने कहा कि इस समय तिलहन की आपूर्ति कम है और इसे देखते हुए इसके बारे में किसी तरह की अटकलबाजी पर रोक लगाई जानी चाहिए।
अपनी मांग की पुष्टि करते हुए मेहता ने कहा, 'वनस्पति तेलों के आयात पर इस समय भारत की 28,000 करोड़ रुपये के बराबर की विदेशी मुद्रा का व्यय हो रहा है। इस पर लगाम लगाई जा सकती है। सरकार को कुछ अटकलबाजी हरकतों पर लगाम लगानी होगी, जो तिलहन के बीज को लेकर लगाई जा रही हैं। साथ ही बुआई के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी कर पैदावार में भी बढ़ोतरी करनी होगी।'
2008-09 के दौरान कुल तेल आयात 37 प्रतिशत बढ़कर 86.6 लाख टन हो गया है, जो 28,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है। इसके पहले साल 63.1 लाख टन तेल का आयात हुआ था, जिसकी कीमत 25,000 करोड़ रुपये थी।
इस साल (नवंबर-अक्टूबर) भारत में तेल की कुल खपत 155 लाख टन रहने की उम्मीद है, जबकि उत्पादन 65 लाख टन पर स्थिर रहने के आसार हैं। इस समय तेल मिलें अपनी क्षमता का 50 फीसदी ही काम कर रही हैं। (बीएस हिन्दी)
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