आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन का मामला
मुंबई December 25, 2009
उचित एवं लाभकारी कीमत (एफआरपी) पर और केंद्र की तरफ से जारी अध्यादेश को लेकर चाहे जो विवाद चल रहा हो, महाराष्ट्र के चीनी मिलें इसके प्रभाव से अछूती हैं।
ये भारत के कुल चीनी उत्पादन में 35 फीसदी का योगदान करती हैं। राज्य की 150 से भी ज्यादा सहकारी और 25 निजी मिलों ने 2008-09 में मौजूदा एसएमपी 1,070 रुपये प्रति टन से 800 रुपये ज्यादा का भुगतान किया है।
महाराष्ट्र के मिलों ने 2009-10 में भी नए एफआरपी 1,575 रुपये प्रति टन से औसतन 450 रुपये ज्यादा देने की घोषणा की है। महाराष्ट्र की नई एफआरपी पिछले साल के एसएमपी की तुलना में 46 फीसदी ज्यादा है। यह एसएमपी 1,077 रुपये थी।
राज्य में 2008-09 के दौरान मिलों ने गन्ना के लिए अंतिम रूप से औसतन 1,850 रुपये प्रति टन का भुगतान किया था। यह 2007-08 में दी गई कीमत से 702 रुपये ज्यादा है। 2007-08 में 1,148 रुपये की औसत कीमत चुकाई गई थी।
महाराष्ट्र में सहकारी चीनी मिलों के संघ के प्रबंध निदेशक प्रकाश नायकनवारे का कहना है कि महाराष्ट्र के गन्ना उत्पादकों को हमेशा ही एसएमपी की तुलना में ऊंची कीमतें मिली है।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार और संघ ने यह तय किया है कि राज्य में गन्ने का उत्पादन 63-65 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 97 टन प्रति हेक्टेयर करने के लिए एक बृहत कार्यक्रम चलाया जाएगा। इस समय तमिलनाडू में एक हेक्टेयर जमीन में 105 टन गन्ने का उत्पादन होता है।
2009-10 के अंत तक महाराष्ट्र का कुल चीनी उत्पादन 410 लाख टन गन्ने की पेराई से 48 लाख टन रहने की संभावना है। राज्य सरकार और संघ 2010-11 में चीनी का कुल उत्पादन 60 लाख टन रहने की उम्मीद कर रहे हैं। इसके लिए 525 लाख टन गन्ने की पेराई का लक्ष्य रखा गया है। इसके साथ ही राज्य सरकार घाटे में चल रही 31 इकाइयों को बेचने का भी निर्णय लिया है। इनका शुद्ध नुकसान करीब 850 करोड़ रुपये है। (बीएस हिन्दी)
25 दिसंबर 2009
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