नई दिल्ली December 30, 2009
चीनी मिलों के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। इस बार संकट सरकार का पैदा किया हुआ है।
दरअसल सरकार ने दिसंबर 2007 में चीनी मिलों को 4,000 करोड़ रुपये का बिना ब्याज वाला कर्ज मुहैया कराया था लेकिन इस पर लगने वाले ब्याज का पूरा भुगतान बैंकों को नहीं किया है।
माना जा रहा है कि इस राशि पर लगभग 1,000 करोड़ रुपये (पिछले दो साल के लिए) का ब्याज बन रहा है लेकिन सरकार ने कुछ हफ्ते पहले ही बैंकों को इस मद में केवल 300 करोड़ रुपये जारी किए हैं। अब इसके नतीजे मिलों को भुगतने पड़ रहे हैं।
बैंक ब्याज की रकम की वसूली मिलों के खाते से कर रहे हैं और कुछ मामलों में तो बैंकों ने मिलों के कर्ज लेने की सीमा भी तय कर दी है। इससे चीनी मिलों के सामने मुश्किल आ गई है खासतौर से किसानों को गन्ना का भुगतान करने के मामले में।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के एक अधिकारी ने इस मसले पर कहा, 'इस महीने जो 300 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं वह एक साल के ब्याज के बराबर भी नहीं है। बैंक मिलों की कर्ज लेने की सीमा तय कर रहे हैं। बड़ी चीनी कंपनियों पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ रहा है लेकिन इससे निश्चित रूप से छोटी मिलों के सामने दुश्वारियां पैदा हो रही हैं। मिलों को अगले साल मार्च से मूलधन वैसे भी वापस करना है।'
वर्ष 2006-07 और 07-08 के दौरान रिकॉर्ड उत्पादन की वजह से चीनी कंपनियों को भारी नुकसान हुआ था और किसानों को गन्ने का भुगतान करने में आ रही मुश्किलों के मद्देनजर सरकार ने मिलों को यह बिना ब्याज वाला कर्ज मुहैया कराया था।
इस मामले में खाद्य मंत्रालय को हर तिमाही से पहले नोडल बैंकों को ब्याज का भुगतान करने की जिम्मेदारी दी गई थी। पिछले साल तक बिगड़ी हालत के बाद चीनी की कीमतों के आसमान छूने से चीनी कंपनियों की किस्मत के तारे भी बदल गए है। इन दिनों ये कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं।
सरकार ने ब्याज़ मुक्त कर्ज़ दिया था चीनी मिलों कोइस पर 2 साल में बना 1,000 करोड़ रुपये ब्याज़कर्ज़ देने वाले बैंकों को मिले केवल 300 करोड़ रुपयेपरेशान बैंक मिलों के खाते से वसूल रहे बकाया ब्याज़ (बीएस हिन्दी)
30 दिसंबर 2009
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