नई दिल्ली December 21, 2009
कोपेनहेगन की बैठक भले ही तमाम देशों पर बिना किसी बंधनकारी शर्त लागू किए खत्म हो गई हो, पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड ऐंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से मत्स्य पालन पर गहरा असर होने वाला है।
इससे विश्व की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से की जीविका और खाद्य आपूर्ति के लिए खतरा पैदा हो गया है। मत्स्यपालन करीब 52 करोड़ लोगों के लिए प्रोटीन और आय का जरिया है। इनमें से नीचे के 40 करोड़ लोगों को तो मछलियों के जरिए ही हर दिन का जरूरी जन्तु प्रोटीन और खनिज मिलता है।
गरीबी और बेरोजगारी की वजह से मछुआरे और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले कई समुदाय अनिश्चित और असुरक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं। नदियों और समुद्र के अत्यधिक दोहन और पारिस्थिकी तंत्र के नुकसान से उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
रोम में जारी एक वक्तव्य में एफएओ ने इस बात की ओर इशारा किया है कि तटीय और अंदरूनी दोनों ही इलाकों में मत्स्यपालन बुरे हालात में पहुंच चुका है। जलवायु परिवर्तन की वजह से पैदा होने वाली समस्याओं में यह एक बड़ी समस्या के रूप में उठ खड़ा हुआ है।
खासतौर से समुद्री क्षेत्रों में मत्स्य उत्पादन का आंकड़ा काफी नीचे जा सकता है क्योंकि यह पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रहा है। बहुत ज्यादा मछली मारने, आवास समस्या और कमजोर प्रबंधन के साथ जलवायु परिवर्तन उत्पादन पर काफी प्रभाव डाल सकता है।
एफएओ ने सावधान किया है कि, 'छोटे विकासशील द्वीपीय राष्ट्रों की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि यहां के लोग अपनी जन्तु प्रोटीन की जरूरतों की कम से कम 50 फीसदी के लिए मछली और जलीय जीवों पर निर्भर करते हैं।'
एफएओ के मुताबिक करीब 65 फीसदी मछली उत्पादन भीतरी इलाकों में होता है। इसमें से ज्यादातर इलाके एशिया के उष्ण और उपोष्ण देश हैं। अगले दशक तक समुद्र के जलस्तर में जो बढ़त होगी उसकी वजह से नदियों में लवणता का स्तर भी बढ़ेगा। इससे नदियों के मत्स्यपालन पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
रिपोर्ट में इस बात पर भी गौर किया गया है, 'बढ़ते तापमान का असर मछलियों के जीवनक्रिया पर भी होगा। ऊंचे तापमान पर उत्तकों तक कम ऑक्सीजन पहुंच पाता है। ऐसे में ताजा पानी और समुद्र दोनों में पाई जाने वाली जलीय प्रजातियों का क्षेत्र विस्तार बदल रहा है। समुद्र में तुलनात्मक रूप से गर्म पानी की प्रजातियां बढ़ रही हैं जबकि ठंडे पानी की प्रजातियां ध्रुवों की ओर सिमटती जा रही हैं।'
तापमान में बदलाव का मछलियों के प्रजनन चक्र पर भी असर हो सकता है। प्रजनन क्षमता, अंडों को सेने का समय और अंडों के आकार पर बढ़ते तापमान का प्रभाव पड़ सकता है। तापमान बढ़ने, पानी में लवणता अधिक होने, जलस्तर ऊंचा होने और लहरों में तीव्रता बढ़ने से मूंगा चट्टानों पर होने वाले प्रभाव पर पहले से ही चिंता जाहिर की जा रही है। (बीएस हिन्दी)
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