उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ जनवरी मध्य में जा सकता है कोर्ट
नई दिल्ली December 25, 2009
चीनी उद्योग ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) के हालिया संशोधन को चुनौती देने का मन बना लिया है।
यह संशोधन गन्ने की उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) प्रणाली लागू करने और कई अदालती फैसलों से बन आए 14 हजार करोड़ रुपये के लेवी मूल्य दायित्व से सरकार को मुक्त करने के लिए किया गया है।
इस अधिनियम के जरिए एफआरपी ने एसएमपी (वैधानिक न्यूनतम मूल्य) की जगह लेने वाला है। दूसरी ओर राज्यों को एसएपी (राज्य सिफारिश मूल्य) प्रणाली ही जारी रखने की अनुमति दी गई है। इस संशोधन से 31 मार्च 2008 को लेवी चीनी के मूल्य पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अप्रभावी हो गया है।
कानून विशेषज्ञों की राय है कि चूंकि इस संशोधन से फैसले के पहले वाली स्थिति लागू हो जाती है इसलिए इसे चुनौती दी जा सकती है। जानकारों के मुताबिक, इस संशोधन के जरिए लेवी चीनी का मूल्य तय करते वक्त अतिरिक्त लागत का समावेश न करने का मामला सुलझाए बगैर सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों को पलट दिया गया है।
एक सूत्र ने बताया, 'उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ इस संशोधन को चुनौती देने के लिए हाइकोर्ट में संभवत: रिट याचिका दायर करेगी।' विधेयक के अधिनियम बनते ही मध्य जनवरी में कभी भी याचिका दायर की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि इस महीने के शुरू में संसद के दोनों सदनों ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन और पुष्टि) विधेयक को मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करते ही यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा।
देश के 5 राज्य मसलन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु एसएपी घोषित करते हैं। दूसरी ओर महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और बिहार एसएमपी (अब एफआरपी) की घोषणा करते हैं। एसएपी प्राय: केंद्र सरकार द्वारा घोषित एसएमपी से बहुत अधिक होते हैं। इसकी घोषणा राजनीतिक लाभ को ध्यान में रखकर की जाती है।
केंद्र सरकार उद्योगों के कुल उत्पादन का पांचवा हिस्सा एसएमपी की दर पर खरीदती है। इसी चीनी को लेवी चीनी के रूप में जाना जाता है और इसका इस्तेमाल जनवितरण प्रणाली के जरिए वितरित करने में किया जाता है। (बीएस हिन्दी)
25 दिसंबर 2009
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