नई दिल्ली December 20, 2009
कोयला क्षेत्र के लिए स्वतंत्र नियामक बनाने के लिए सरकार का प्रस्ताव अंतिम चरण में है। इस सिलसिले में कोयला मंत्रालय ने सभी जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर ली है।
कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'कोयला नियामक बनाने के लिए मसौदा तैयार कर लिया गया है। हमने इसे कानून मंत्रालय के पास भेज दिया है।'
मंत्रालय ने इसके पहले कोयला नियामक बनाने के लिए संबंधित मंत्रालयों से प्रस्ताव मांगा था। अधिकारी ने कहा, 'इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों ने अपनी राय दे दी है। हमने इसके मुताबिक कुछ बदलाव भी किए हैं।'
सूत्रों के मुताबिक कैबिनेट की अंतिम स्वीकृति के लिए इसे जल्द ही भेज दिया जाएगा। कोयले की ई-नीलामी में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, कीमतों के लिए दीर्घावधि का ध्यान रखते हुए नियमावली तैयार करने, कारोबारी मुनाफा तय करने और मौजूदा भंडारों के आवंटन में पारदर्शिता बढ़ाने के कोयला क्षेत्र के लिए अलग नियामक बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है।
ई-नीलामी के जरिए जहां कोयले की बिक्री में कमी आ रही है, वहीं कोयले की आपूर्ति दरों में भी भारी अंतर है। अलग से कोयला नियामक बनाने का यह भी मतलब है कि सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का एकाधिकार खत्म होगा ।
योजना आयोग की एकीकृत ऊर्जा नीति (आईईपी) के मुताबिक इस शुष्क ईंधन की कीमतें सालाना तय की जानी चाहिए, जो प्रस्तावित नियामक का एक काम होगा। आईईपी का मानना है कि सीआईएल का कोयले की आपूर्ति पर एकाधिकार, कोयले की कीमतें तय करने में मुख्य समस्या है।
वर्तमान में भारत में 49 करोड़ टन से ज्यादा कोयले का वार्षिक उत्पादन होता है। यह मांग की तुलना में 5 करोड़ टन कम है। अनुमानों के मुताबिक 2011-12 तक देश में कोयले की कुल जरूरत 70 करोड़ टन हो जाएगी।
तैयारी पूरी
कोयला नियामक बनाने के लिए मसौदा तैयार कर कानून मंत्रालय के पास भेजा गयाजल्द ही पहुंचेगा कैबिनेट की स्वीकृति के लिए (बीएस हिन्दी)
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