कोलकाता December 29, 2009
सर्राफा की ऊंची कीमतों के बावजूद सोने के आभूषण यहां की शादी का सबसे जरूरी हिस्सा बने हुए हैं।
सवाल है कि देश की गहने की जरूरत कैसे पूरी हुई जब इस साल महज 220 टन सोना ही आयात किया गया, जबकि पिछले साल देश में 420 टन सोना आयात हुआ था।
देश के प्रमुख ज्वैलरी हाउस बीसी सेन ऐंड कंपनी के निदेशक अमित सेन कहते हैं, 'जवाब आसान है। लोगों के पास पहले से उपलब्ध 250 टन सोने का इस साल आभूषण बनाने के लिए पुनर्चक्रण हुआ। सोने की कीमत और पुनर्चक्रित होने वाले सोने की मात्रा का संबंध परस्पर होता है। पिछले साल जब सोने के दाम ज्यादा नहीं थे तब महज 150 टन पुराने सोने का ही इस्तेमाल हुआ।'
नए स्टैंडर्ड सोने का प्रति 10 ग्राम 17 हजार रुपये का भाव कई भारतीय परिवारों की क्रय क्षमता के बाहर है। पर यह बात हर किसी को पता है कि यहां हर तबके के परिवारों के पास कम से कम 20 हजार टन सोना है। पिछले कई पीढ़ियों से यह सोना जमा हो रहा है। ज्वैलरों का मानना है कि शादी के सीजन के दौरान उन्हें पुराने सोने से और अधिक गहने बनाने को मिलेंगे।
सेन के मुताबिक, 'उपभोक्ताओं के लिए बहुत हल्के गहने बनाने के लिए हमने अपने ज्ञान का भरपूर इस्तेमाल किया है ताकि खरीदारी होती रहे। हम अभी भी कैजुअल या फैशन वियर के लिए हल्के गहने बना सकते हैं।'
ज्वैलरों का कहना है कि यदि यहां की महिलाएं 18 के बजाय 14 कैरेट के गहने पहनना शुरू कर दें तो सोने के दाम पर थोड़ा अंकुश लग सकता है। लेकिन वे ऐसा पसंद नहीं करतीं क्योंकि इसकी चमक 22 कैरेट के उत्पादों जैसी नहीं होती।
सेन के अनुसार, 'अमेरिका और यूरोप में ऐसा चलन में है जबकि भारतीय महिलाएं ऐसा नहीं करतीं।' दुनिया में सालाना जितना सोना खपत होता है, उसका 60 फीसदी गहने बनाने में जाता है। हालांकि भारत में कुल आयातित सोने का करीब 90 फीसदी गहने बनाने में इस्तेमाल होता है। भारत में सोने का थोड़ा ही उत्पादन होता है और ज्यादातर जरूरत आयात से पूरी होती है। इस साल देश में सोने का आयात घटकर आधा हो गया है।
आभूषण निर्माताओं जिनकी आयात का मुख्य स्रोत गहने बनाने का मेहनताना होता है, में अब तक कोई कमी नहीं हुई है। ऐसा सोने के पुनर्चक्रण के चलते हो पाया है। हालांकि आभूषण निर्माताओं को भय है कि सोना इसी तरह महंगा बना रहा तो शादी-विवाह में इसकी मांग प्रभावित होगी।
भारतीयों ने ऊंची कीमतों के चलते सोने की खरीदार पहले ही कम कर दी है। धातु सलाहकार फर्म जीएफएमएस के मुताबिक चीन सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता बनकर उभरने जा रहा है। वहां निवेश के लिए ही सोने की मांग 83 टन की रही है। 2009 में चीन कुल 432 टन सोना उपभोग कर सकता है जबकि भारत में इसकी खपत 422 टन ही रह सकती है।
भारत में सोने की खपत का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। आरबीआई ने वैसे अक्टूबर में 200 टन सोने की खरीद की थी। अधिकारियों के मुताबिक, भारत से अलग चीन में पिछले 4 साल में सोने की मांग में जोरदार तेजी हुई है। शंघाई गोल्ड ऐंड ज्वेलरी ट्रेड एसोसिएशन ने भारतीय ज्वेलरों को बताया था कि चीन ग्रामीण इलाकों में सोने की खरीद को प्रोत्साहित कर रहा है।
एक बात नहीं नहीं भूलनी चाहिए कि चीन 2007 में दक्षिण अफ्रीका को पछाड़ दुनिया का सबसे बड़ा सोना उत्पादक बन गया था। इस बीच यहां की सरकार इस बात को लेकर चिंतित है कि उपभोक्ताओं को 22 कैरेट सोने का प्रलोभन दे ज्वैलर उन्हें कहीं कम कैरेट का सोना न दे दें।
खरा सोना
पुराने सोने को गलाकर बनाए जाते रहे गहने, बिकवाली रही तेजपिछले साल की तुलना में आधा हुआ सोने का आयातमहंगाई बढ़ने के चलते बिक्री बढ़ाने के लिए अपनाए तमाम हथकंडे (बीएस हिन्दी)
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