भुवनेश्वर September 08, 2009
जूट उद्योग को आज उस समय बड़ी राहत मिली जब आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने सरकारी खरीद एजेंसियों द्वारा खरीदी जाने वाली चीनी और खाद्यान की पैकेजिंग में जूट के बोरों के शत-प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को बरकरार रखा। यह फैसला सोमवार को सीसीईए की बैठक में लिया गया।
जूट पैकेजिंग मैटेरिलयल्स एक्ट (जेपीएमए) 1987 के तहत जूट के बोरों के लिए 100 फीसदी आरक्षण को बरकरार रखने के सरकार के इस फैसले के साथ ही इसके आरक्षण में 25 फीसदी की कटौती के कयासों पर विराम लग गया है।
इससे पहले केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय की अध्यक्षता वाली स्थाई सलाहकार समिति ने चीनी और खाद्यान की सरकारी खरीद में पैकेजिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले जूट के बोरों के कोटे में 25 फीसदी की कमी का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव का कच्चे जूट के कारोबार पर काफी बुरा असर पड़ा और इस महीने कच्चे जूट और इससे बनी वस्तुओं की कीमतों में काफी गिरावट आई।
जूट उद्योग इस प्रस्ताव का जमकर विरोध कर रहा था और उद्योग वाले लगातार सरकार से हस्तक्षेप की मांग कर रहे थे। पैकेजिंग में जूट के बोरों में क टौती के प्रस्ताव के बाद देश में चीनी उद्योग ने जूट के बोरों की खरीदारी जुलाई से बंद कर दी थी।
कच्चे जूट की कीमतें 1 अगस्त के 28,500 रुपये प्रति टन से गिरकर 20,500 रुपये प्रति टन ( इस साल 26 अगस्त तक) के स्तर पर आ गई थीं। जूट उद्योग की सर्वोंच्च इकाई इंडियन जूट मिल एसोसिएशन (आईजेएमए) ने यह कह कर इस इस प्रस्ताव का विरोध किया था कि इससे देश के 40 लाख जूट उत्पादक किसानों और 25 लाख जूट कामगारों के हित प्रभावित हो सकते हैं।
शुरुआत में आईजेएम ने तीन केंद्रीय मंत्रियों शरद पवार, ममता बनर्जी और प्रणब मुखर्जी से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की और फिर उसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पिछले महीने इस प्रस्ताव को खारिज करने का अनुरोध किया था। (बीएस हिन्दी)
09 सितंबर 2009
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